Aaj Samaj, (आज समाज),Legally News,नई दिल्ली:
9.बंजारा हिल्स शाखा में करोड़ों का घोटालाः पंजाब नेशनल के एजीएम सहित 4 को पांच साल की सश्रम कारावास की सजा*
हैदराबाद की अदालत ने हाल ही में पंजाब नेशनल बैंक की बंजारा हिल्स शाखा के एक पूर्व सहायक महाप्रबंधक (एजीएम) सहित 4 व्यक्तियों को ₹53.82 करोड़ की बैंक ऋण धोखाधड़ी में 5 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है।
अदालत ने पीएनबी के तत्कालीन एजीएम आरपी गर्ग, शीतल रिफाइनरीज लिमिटेड के तत्कालीन प्रबंध निदेशक जितेंद्र कुमार अग्रवाल, अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता सुधीर भूरारिया और मनीष भूरारिया को 75,000 रुपये के जुर्माने के साथ जेल की सजा सुनाई।
सीबीआई के एक बयान के अनुसार, अदालत ने निजी कंपनी पर 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
इसलिए, सीबीआई ने 19 फरवरी, 2016 को शीतल रिफाइनरीज लिमिटेड और उसके निदेशकों के खिलाफ बैंक धोखाधड़ी करने और पंजाब नेशनल बैंक को 53.82 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने के आरोप में मामला दर्ज किया।
सीबीआई ने 19 फरवरी 2016 को शीतल रिफाइनरीज लिमिटेड गगनपहाड़, रंगा रेड्डी जिला, तेलंगाना और इसके निदेशकों के खिलाफ कथित रूप से बैंक धोखाधड़ी करने और रुपये का नुकसान पहुंचाने के लिए मामला दर्ज किया। पंजाब नेशनल बैंक को 53.82 करोड़।
आरोपी ने कथित रूप से बैंक को झूठे दस्तावेज, बयान और जानकारी पेश की, जिसमें शेयर आवेदन राशि, क्रेडिट सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए झूठे स्टॉक स्टेटमेंट और गलत जानकारी के साथ ऑडिटेड बैलेंस शीट शामिल हैं।
इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया कि प्रासंगिक अवधि के दौरान, अभियुक्त ने 4 एलसी खोले, और एलसी में शर्तें समान नहीं थीं। तत्कालीन एजीएम ने बिलों की राशि और पुष्टि पत्रों के अंतर की जांच नहीं की है।
इसके अलावा, आरोपी एजीएम ने आईबीए द्वारा अनुमोदित ट्रांसपोर्टरों के माध्यम से माल परिवहन करने की शर्त नहीं लगाई है और आरोपी को लॉरी रसीद जमा करने की अनुमति दी है, जहां ट्रांसपोर्टर आईबीए की अनुमोदित सूची में नहीं था।
इसके अलावा, उन्होंने स्वीकृति प्राधिकारी के अनुमोदन के बिना एलसी नियमों और शर्तों में संशोधन किया, जिससे सौंपी गई शक्तियों से अधिक हो गया।
जांच के बाद, 23 सितंबर 2016 को हैदराबाद में नामित अदालत के समक्ष पंजाब नेशनल बैंक, शीतल रिफाइनरीज लिमिटेड के तत्कालीन सहायक महाप्रबंधक आर.पी. गर्ग, इसके एमडी और अन्य सहित 6 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था। इसबीच शीतल रिफाइनरीज लिमिटेड के सीएमडी का निधन हो गया, और उनके खिलाफ मामला ट्रायल कोर्ट द्वारा समाप्त कर दिया गया।
10 *माफिया मरहूम अतीक अहमद के बाद अब लॉरेंस बिश्नोई का नया पता गुजरात की साबरमती जेल*
बॉलिवुड अभिनेता सलमान खान को जान से मारने की धमकी देकर मीडिया की सुर्खियों में छाया गैंगस्टर लॉरेंस विश्नोई अब साबरमती जेल में दिन काटेगा। गुजरात पुलिस ने उसे ड्रग्स तस्करी के मामले में हिरासत में लिया था।
गुजरात के कच्छ जिले की नलिया कोर्ट में गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई को पेश किया। स्पेशल कोर्ट में सुनवाई के बाद गुजरात एटीएस ने गैंगस्टर की और रिमांड नहीं मांगने पर कोर्ट ने गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई को अहमदाबाद की साबरमती जेल भेजने का निर्देश दिया।
दरअसल, पिछले साल भारतीय तटरक्षक बल ने एक नौका पकड़ी थी। नाव में पाकिस्तान से करोड़ों की हेराइन भारत भेजी गई थी। इस मामले में लॉरेंस बिश्नोई का नाम आया था। गुजरात एटीएस इसी मामले में पूछताछ के लिए दिल्ली के तिहाड़ जेल से लॉरेंस को पाटियाला हाउस कोर्ट से ट्रांजिट रिमांड लेकर लाई थी। इसके बाद नलिया कोर्ट में लॉरेंस बिश्नोई की पेशी हुई थी।
गुजरात एटीएस को 14 दिन की रिमांड मिली थी। जेल सूत्रों के अनुसार लॉरेंस बिश्नोई को हाई सिक्योरिटी बैरक में रखा जाएगा। जेल में उसकी सुरक्षा के लिए पुख्ता बंदोबस्त किए जा रहे हैं।
इससे पहले हुई जांच में सामने आया था कि लॉरेंस की इशारे पर ही गुजरात के समुद्री तट पर नौका डिलीवरी के लिए आई थी। लॉरेंस ने पंजाब की जेल से कॉल की थी। गुजरात एटीएस को पूछताछ में कुछ अहम जानकारियां हाथ लगी हैं। । लॉरेंस बिश्नोई पर अभी 50 के करीब केस दर्ज हैं। लॉरेंस बिश्नोई ने हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान को मारने की धमकी देकर सनसनी फैला दी थी।
गुजरात में पिछले सालों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बड़ी मात्रा में ड्रग आने के मामले सामने आए हैं। एटीएस गुजरात के जरिए ड्रग की शेष भारत में तस्करी पर नकेल कसना चाहती है। तो उधर राष्ट्री सुरक्षा एजेंसी (NIA) भी लॉरेंस के साथ उसके गैंग से जुड़े लोगों पर एक्शन ले रही है।
11.महाराष्ट्र के शिंदे बनाम उद्धव विवाद पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला, कोर्ट के फ़ैसले से पहले महाराष्ट्र में बढ़ी सियासी हलचल
महाराष्ट्र के शिंदे बनाम उद्धव विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ बुधवार को फ़ैसला सुनाएगी। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने 9 दिनों तक दोनों पक्षों और राज्यपाल कार्यालय के वकीलों को सुना था। इस दौरान उद्धव कैंप के वकीलों ने शिंदे की बगावत और उनकी सरकार के गठन को गैरकानूनी बताया दूसरी तरफ शिंदे खेमे ने कहा कि विधायक दल में टूट के बाद राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट का आदेश देकर सही किया था।
मामले की सुनवाई के दौरान राज्यपाल कार्यालय के लिए पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था, “एक गठबंधन में चुनाव लड़ने के बाद दूसरे गठबंधन के साथ सरकार बनाने से शिवसेना में आंतरिक मतभेद था. यही पार्टी में टूट की वजह भी बना.”
कोर्ट ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि अगर शिवसेना में विधायकों ने नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह किया या आवाज उठाई, तो इस पर राज्यपाल ने क्यों दखल दिया? उन्होंने फ्लोर टेस्ट का आदेश क्यों दे दिया?
*आखिर क्या है पूरा मामला?
साल 2022 में शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में में विधायकों की बगावत के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देना पड़ा था। इस इस्तीफ़े के बाद एक नाथ शिंदे के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान जून और जुलाई, 2022 में कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी अगस्त में यह मामला संविधान पीठ को सौंपा गया था। 5 जजों की संविधान पीठ ने एम नाथ शिंदे कैंप के विधायकों की अयोग्यता, सरकार बनाने के लिए शिंदे को मिले निमंत्रण, नए स्पीकर के चुनाव जैसे कई मामलों पर उद्धव गुट की तरफ से उठाए गए सवालों पर विचार किया।
*स्पीकर के अधिकार पर उठा सवाल
इस मामले में सबसे पहली याचिका एकनाथ शिंदे ने ही दाखिल की थी।इस याचिका में दावा किया गया था कि विधानसभा के डिप्टी स्पीकर ने उनके गुट के विधायकों को अयोग्यता का जो नोटिस भेजा है, वह गलत है। शिंदे ने कहा था कि डिप्टी स्पीकर को पद से हटाने का प्रस्ताव पहले ही भेजा जा चुका था, ऐसे में संविधान पीठ के नबाम रेबिया मामले में आए फैसले के चलते वह विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही नहीं कर सकते।
*उद्धव ठाकरे के इस्तीफे से बदली स्थिति
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान डिप्टी स्पीकर के अधिकार पर विचार करने की बात करते हुए उन्हें फैसला लेने से रोक दिया था। इस बीच राजनीतिक घटनाक्रम महाराष्ट्र में लगातार बदलता रहा। तबराज्यपाल ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को सदन में बहुमत साबित करने के लिए कह दिया,लेकिन उद्धव ने बहुमत परीक्षण से पहले इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद राज्यपाल ने एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने का मौका दिया।शिंदे ने अपने समर्थक विधायकों और बीजेपी के सहारे सदन में बहुमत साबित कर दिया।
*उद्धव कैंप की संविधान पीठ में मुख्य दलीलें?
उद्धव कैंप की तरफ से वरिष्ठ वकीलों अभिषेक मनु सिंघवी, कपिल सिब्बल और देवदत्त कामत ने बहस की। उद्धव कैंप ने कहा कि पार्टी की तरफ से बुलाई गई बैठक में शामिल न होकर शिंदे समर्थक विधायकों ने व्हिप का उल्लंघन किया, इसलिए वह विधायक बने रहने के अयोग्य हो गए थे, लेकिन कोर्ट के दखल के चलते उनकी सदस्यता बनी रही।
और बाद में राज्यपाल ने इसी आधार पर बहुमत परीक्षण के लिए कह दिया, यह गलत था।बहस के अंत में उद्धव पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने यह भी कहा था कि गठबंधन के आधार पर बनी सरकार की किसी एक पार्टी में हुई टूट फ्लोर टेस्ट का आधार नहीं हो सकती थी। राज्यपाल को इसका फ्लोर टेस्ट आदेश तभी देना चाहिए था, जब कोई पार्टी समर्थन वापस ले लेती।
*शिंदे गुट की संविधान पीठ में दलील
शिंदे खेमे का पक्ष वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल, हरीश साल्वे, मनिंदर सिंह और महेश जेठमलानी ने रखा था।शिंदे कैंप के वकीलों ने जवाब में कहा कि अपनी पार्टी के विधायकों के बहुमत का समर्थन गंवा चुके उद्धव ठाकरे गैरकानूनी तरीके से सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रहे थे। जबकि शिंदे विधायक दल के नेता थे। उनकी जानकारी के बिना विधायक दल की बैठक बुला ली गई।इसमें 49 में से सिर्फ 16 विधायक शामिल हुए। इस बैठक में न जाना अयोग्यता का आधार तो कतई नहीं हो सकता।विधायकों का बहुमत पहले ही मुख्य सचेतक को बदल चुका था।पद से हटाए जा चुके सचेतक के व्हिप का कोई कानूनी महत्व नहीं था। शिंदे पक्ष के वकील नीरज किशन कौल ने बोम्मई मामले के फैसले का भी हवाला देते हुए कहा था “बोम्मई फैसला साफ कहता है कि पार्टी में टूट पर भी राज्यपाल बहुमत परीक्षण का निर्देश दे सकते हैं.”
*राज्यपाल कार्यालय ने संविधान पीठ में क्या कहा?
राज्यपाल कार्यालय के लिए वरिष्ठ वकील और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए थे। राज्यपाल कार्यालय की तरफ से कहा गया कि सरकार के बहुमत पर संदेह होने पर उसे फ्लोर टेस्ट के लिए कहना संविधान के अनुच्छेद 175 (2) के तहत राज्यपाल का कर्तव्य है। उन्होंने यही किया था। अगर वह ऐसा नहीं करते तो दूसरा कदम यही हो सकता था कि वह अनुच्छेद 356 के तहत राज्य (महाराष्ट्र) में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर देते।
अब स्थितियां बदल चुकी है
एक नाथ शिंदे की बगावत से लेकर और उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद अब महाराष्ट्र की राजनीतिक परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। इस वक्त बीजेपी के समर्थन से शिंदे की बहुमत वाली सरकार महाराष्ट्र में है।चुनाव आयोग भी फैसला दे चुका है कि शिंदे की शिवसेना ही असली शिवसेना है।हालांकि एकनाथ शिंदे सरकार को तभी खतरा हो सकता है जब संविधान पीठ यह तय कर दे कि जिस समय शिंदे और उनके विधायकों ने सरकार बनाई, उस समय वह विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य थे। अगर संविधान पीठ उन्हें अयोग्य करार देती है तो एकनाथ शिंदे की सरकार और उनके राजनीतिक पर संकट खड़ा हो जाएगा और
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर जोड़ तोड़ की सियासत तेज होगी।
12. इमरान खान पर तोशाखाना मामले में आरोप तय, पाकिस्तान में हालात बेकाबू पंजाब और खैबरपख्तूनख्वाह सेना के हवाले*
अल-कादिर ट्रस्ट मामले के संबंध में इस्लामाबाद उच्च न्यायालय (आईएचसी) परिसर से राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी) द्वारा गिरफ्तार किए जाने के एक दिन बाद बुधवार को पीटीआई के अध्यक्ष इमरान खान को तोशखाना मामले में आरोपित किया गया है। इस बीच पाकिस्तान के तमाम शहरों में हिंसा लगातार बढ़ती जा रही हैं। पाकिस्तान के पंजाब और खैबर पख्तूनख्वाह को सेना के हवाले कर दिया गया है। यह भी बताया जाता है कि इमरान खान के वकीलों ने गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। लेकिन खबरों पर पाबंदी और इंटरनेट बैन किए जाने से पाकिस्तान में क्या हो रहा है इस बारे में सही जानकारी नहीं मिल पा रही है।
इससे पहले एनएबी अदालत ने पीटीआई अध्यक्ष की 14 दिन की रिमांड की मांग वाली एनएबी की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। दोनों सुनवाई इस्लामाबाद पुलिस लाइन में हुई, जिसे कड़ी सुरक्षा के बीच सोमवार देर रात “एक बार की व्यवस्था” के रूप में अदालत स्थल का दर्जा दिया गया था।
अतिरिक्त और जिला सत्र न्यायाधीश हुमायूं दिलावर ने तोशखाना मामले से संबंधित सुनवाई की अध्यक्षता की।
पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) ने पीटीआई प्रमुख के खिलाफ आपराधिक कानून के तहत कार्यवाही की मांग की थी। ईसीपी ने पिछले साल सत्तारूढ़ गठबंधन के सांसदों द्वारा दायर एक संदर्भ पर मामले पर अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
संदर्भ में आरोप लगाया गया है कि इमरान ने प्रधान मंत्री के रूप में अपने समय के दौरान तोशखाना से रखे गए उपहारों के विवरणों को “जानबूझकर छुपाया” था – एक भंडार जहां विदेशी अधिकारियों से सरकारी अधिकारियों को दिए गए उपहार रखे जाते हैं और उनकी कथित बिक्री से आय होती है।
इस बीच, नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो की अदालत ने इमरान की 14 दिन की रिमांड के लिए नैब के अनुरोध पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई की अध्यक्षता न्यायाधीश मोहम्मद बशीर ने की।
पीटीआई अध्यक्ष के वकील ख्वाजा हैरिस ने अनुरोध का विरोध किया और कहा कि यह मामला ब्यूरो के दायरे में नहीं आता है। उन्होंने आगे कहा कि एनएबी ने जांच रिपोर्ट भी साझा नहीं की थी।
खुली अदालत में सुनवाई का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा, “सभी को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है।” उन्होंने आगे कहा कि अल-कादिर ट्रस्ट की भूमि पर एक भवन का निर्माण किया गया है, जहां लोग मुफ्त शिक्षा प्राप्त करते हैं।
उन्होंने कहा कि एक “कानूनी व्यक्ति”, जो एक सार्वजनिक कार्यालय धारक नहीं है, का मतलब ट्रस्ट का प्रभारी होना है। उन्होंने कहा कि इमरान अब सार्वजनिक पद पर नहीं हैं।
इस बीच एनएबी के अभियोजक ने अदालत को बताया कि गिरफ्तारी के समय इमरान को वारंट दिखाया गया था। उन्होंने इमरान के वकील को आश्वासन भी दिया कि जरूरी दस्तावेज मुहैया कराए जाएंगे।
उन्होंने कहा, “यह एक भ्रष्टाचार का मामला है जिसकी यूके की राष्ट्रीय अपराध एजेंसी ने जांच की है,” उन्होंने कहा कि प्राप्त धन पाकिस्तान सरकार को स्थानांतरित करने के लिए था। सरकार के बजाय, जो धन प्राप्त हुआ था, उसे बहरिया टाउन में स्थानांतरित कर दिया गया था। दूसरी ओर, पीटीआई प्रमुख ने एनएबी के संस्करण का खंडन किया और अदालत को बताया कि उन्हें गिरफ्तारी वारंट तब दिखाया गया था जब उन्हें ब्यूरो के कार्यालय ले जाया गया था न कि उनकी गिरफ्तारी के समय।
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