Legally News : गैंगस्टर टिल्लू ताजपुरिया की तिहाड़ जेल में हत्या,रोहणी कोर्ट शूट आउट का था आरोपी, ख़बर पूरी पढ़े विस्तार से

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हाईकोर्ट में सुनवाई
हाईकोर्ट में सुनवाई

Aaj Samaj, (आज समाज),Legally News,नई दिल्ली: 

गैंगस्टर टिल्लू ताजपुरिया की तिहाड़ जेल में हत्या,रोहणी कोर्ट शूट आउट का था आरोपी

रोहिणी कोर्ट शूटआउट के मुख्य आरोपी गैंगस्टर टिल्लू ताजपुरिया को आज सुबह तिहाड़ जेल के अंदर हत्या कर दी। जेल अधिकारियों के मुताबिक, घटना सुबह करीब साढ़े छह बजे हुई। उसे दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल ले जाया गया और उसी क्षण मृत घोषित कर दिया गया। दिल्ली पुलिस के एडिशनल डीसीपी वेस्ट डिस्ट्रिक्ट अक्षत कौशल ने कहा, ‘आज सुबह डीडीयू अस्पताल से दो विचाराधीन कैदियों के बारे में सूचना मिली, जिन्हें तिहाड़ जेल से अस्पताल लाया गया था।सुनील उर्फ टीलू उनमें से एक था जिसे बेहोशी की हालत में लाया गया था। उन्होंने बाद में मृत घोषित कर दिया है। रोहित, अन्य व्यक्ति अब खतरे से बाहर है।

पुलिस ने कहा कि योगेश टुंडा नाम का एक कैदी जेल नंबर 8 में बंद था, जहां प्रतिद्वंद्वी गिरोह के अन्य सदस्यों ने जेल नंबर 9 में बंद टिल्लू पर हमला किया था। अधिकारी ने कहा कि, “योगेश उर्फ टुंडा और दीपक उर्फ तीतर ने टिल्लू ताजपुरिया पर वार्ड की लोहे की ग्रिल तोड़कर हमला किया, जिससे दोनों गिरोह एक ही वार्ड में अलग हो गए।” पिछले साल 24 सितंबर को रोहिणी कोर्ट नंबर 207 में 2 शूटरों ने शूटआउट के दौरान जितेंद्र गोगी की गोली मारकर हत्या कर दी थी।इसके अलावा, सूत्रों ने कहा, रोहिणी गोलीबारी से एक दिन पहले, (निशानेबाजों) उमंग और जगदीप ने मुरथल में राकेश ताजपुरिया नाम के एक बदमाश से हथियार ले लिए। साथ ही सूत्रों ने बताया कि, “फिर उसी दिन उमंग और जगदीप ने एम्स के पास एक शख्स से वकीलों की ड्रेस ले ली। इस बीच टिल्लू जेल से व्हाट्सएप कॉल के जरिए दोनों के लगातार संपर्क में था।

झारखण्ड विधान सभा में नमाज के लिए कक्ष किस आधार पर बनाया गया, हाईकोर्ट में अगली सुनवाई 18 मई को

झारखण्ड हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा है कि विधानसभा परिसर के भीतर नमाज के लिए अलग से स्थान का निर्माण क्यों किया गया है। कोर्ट के इस सवाल पर सरकारी वकील ने कहा कि इसी सावल पर एक कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी की रिपोर्ट जल्द ही आ जाएगी।

विधानसभा में कथित मुस्लिम अपीजमेंटपर विपक्षी दल भी आलोचना कर चुके हैं। आज मंगलवार को   झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्र की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने भी विधानसभा में नमाज कक्ष के रूप में एक रूम को नोटिफाइड किए जाने को चुनौती देने वाली अजय कुमार मोदी की जनहित याचिका पर सुनवाई की। साथ ही मौखिक रूप से पूछा है कि यह व्यवस्था किस आधार पर की गई।

मामले में झारखंड विधानसभा की ओर से अधिवक्ता अनिल कुमार ने कोर्ट को बताया कि देश के अलग-अलग राज्यों के विधानसभा से नमाज कक्ष को लेकर एक रिपोर्ट मंगाई गई है। उनकी रिपोर्ट के आधार पर कानूनी पक्ष को देखते हुए इस संबंध में बनी कमेटी अपना रिपोर्ट देगी। यह देखा जा रहा है कि देश के किन किन राज्यों के विधानसभा में नमाज कक्ष की व्यवस्था है। हाई कोर्ट ने मामले में झारखंड विधानसभा को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई 18 मई निर्धारित की है। पिछली सुनवाई में महाधिवक्ता राजीव रंजन की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि याचिकाकर्ता के आग्रह को देखते हुए एक कमेटी बनाई गई है। रिपोर्ट जल्द आने की संभावना है।

फांसी सजा दिए जाने का तरीका बदलने पर विचार कर रही सरकार, सुप्रीम कोर्ट को अटॉर्नी जनरल ने बताया*

भारत सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह देश में मौत की सजा पाए दोषियों को फांसी देने के तरीका बदलने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने पर विचार कर रहा है। केंद्र के इस जबाव पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब इस मामले की सुनवाई ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद की जाएगी।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पर्दीवाला की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की दलीलों को ध्यान में रखते हुए कि कहा कि चूंकि सरकार विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने के उनके सुझाव पर विचार कर रही है और विचार-विमर्श चल रहा है। इसलिए इस पर आगे तभी सुनवाई हो पाएगी जब रिपोर्ट आ जाए।

आर वैंकटरमणी ने कहा कि प्रस्तावित पैनल के लिए नामों को अंतिम रूप देने से संबंधित प्रक्रियाएं हैं और वह कुछ समय बाद इस मुद्दे पर जवाब दे पाएंगे।

पीठ ने कहा, “विद्वान अटार्नी जनरल ने कहा है कि एक समिति नियुक्त करने की प्रक्रिया विचाराधीन थी। उपरोक्त के मद्देनजर, हम (ग्रीष्मकालीन) अवकाश के बाद एक निश्चित तारीख देंगे।”

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च को कहा था कि वह यह जांचने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने पर विचार कर सकती है कि क्या मौत की सजा के दोषियों को फांसी की सजा आनुपातिक और कम दर्दनाक थी और उसने केंद्र से “बेहतर डेटा” की मांग की थी। कार्यान्वयन।

दरअसल, वकील ऋषि मल्होत्रा ने 2017 में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें मौत की सजा के दोषी को फांसी देने की मौजूदा प्रथा को खत्म करने और इसे लैथल इंजेक्शन या गोली मार कर सजा-ए-मौत या किसी अन्य ऐसे तरीके से सजा देने की मांग की थी जिससे दोषी को कम से कम पीड़ा हो।

मोदी सरनेम डिफेमेशनः राहुल गांधी को गुजरात HC से राहत नहीं, सजा पर रोक लगाने से इंकार, फैसला सुरक्षित

मोदी सरनेम मानहानि मामले में राहुल गांधी को गुजरात हाई कोर्ट से मंगलवार को कोई राहत नहीं मिली है। गुजरात हाई कोर्ट के जज जस्टिस हेमंत पृच्छक ने राहुल गांधी को कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा उनकी याचीका पर ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद फैसला दिया जाएगा।

राहुल गांधी की ओर से पेश हुए वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कई बार जोर डालकर कहा कि कोर्ट मामले में जो चाहे वो फैसला आज ही देदे। इस पर सरकारी वकील ने आपत्ति जताई और कहा कि पिटीशनर ने कुछ आपत्तियां की हैं उनका रिकॉर्ड आना बाकी है इन हालात में फिल्हाल कोई भी आदेश पारित उचित नहीं होगा। इस पर हाईकोर्ट ने कहा है कि सभी संबंधित पक्षों से रिकॉर्ड तलब किए गए हैं। अंतिम फैसला रिकॉर्ड्स को देखने के बाद ही दिया जा सकता है।

राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी के बार-बार जोर डालने पर जस्टिस पृच्छक ने  ने मौखिक तौर पर कहा कि वो चार मई के बाद बाहर है इसलिए अब फैसला छु्ट्टियों के बाद ही संभव  है।

इससे पहले अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिए थे कि सेशन कोर्ट चाहता तो सजा को सस्पेंड कर सकता था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। जिससे उनके मुवक्किल की संसद सदस्यता चली गई। अगर उनकी संसद सदस्यता बहाल नहीं होती है तो जिस संसदीय क्षेत्र से वो जीत कर आए हैं उस क्षेत्र की जनता का प्रतिनिधित्व संसद में नहीं हो पाएगा। अभिषेक मनु सिंघवी ने इस मामले को संवेदनशीलता और नैतिकता से जोड़ कर गुजरात हाईकोर्ट को प्रभावित करने की कोशिश की तो वहीं तमाम ऐसे सवाल उठाए जिससे यह साबित हो रहा था कि निचली अदालतों ने राहुल गांधी के साथ अन्याय किया है।

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह एक मामूली मामला और कोर्ट को इस पर अपना फैसला दे देना चाहिए। इस पर जस्टिस पृच्छक ने सिंघवी को अब्दुल्ला आजम के केस याद दिलाया और कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट 15 साल पुराने धरना प्रदर्शन में मामले में सजा याफ्ता अब्दुल्ला आजम की याचिका पर फैसला ग्रीष्म कालीन छुट्टियों के बाद के लिए सूचीबद्ध किया है तो यह केस तो उससे बड़ा है। अंत में गुजरात हाईकोर्ट के जज जस्टिस हेमंत पृच्छक ने परिस्थितियां फैसला सुनाने योग्य नहीं है इसलिए पिटीशनर को कोई अंतरिम प्रोटेक्शन नहीं दी जासकती, फैसला ग्रीष्मकालीन छुट्टियों के बाद सुनाया जाएगा।