Aaj Samaj (आज समाज), Legal News 21 July 2023 , नई दिल्ली :
1*ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे को कोर्ट की मंजूरी, हिंदू पक्ष की बड़ी जीत*
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सर्वेक्षण में मस्जिद और उसके आसपास के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व का आकलन करने की संभावना है। अदालत का उद्देश्य साइट के ऐतिहासिक संदर्भ और चल रहे कानूनी विवाद पर इसके निहितार्थ को समझना है।
* ज्ञानवापी की पृष्ठभूमि
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण स्थल है। ऐतिहासिक वृत्तांतों के अनुसार, मस्जिद का निर्माण 17वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा मूल काशी विश्वनाथ मंदिर के स्थान पर किया गया था, जो भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र हिंदू मंदिर है। मस्जिद के निर्माण के दौरान मंदिर की मूल संरचना आंशिक रूप से नष्ट हो गई थी।
* कानूनी विवाद
दशकों से, यह स्थल अपने स्वामित्व और नियंत्रण को लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच विवाद का विषय रहा है। हिंदू समूहों ने दावा किया है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण मूल काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने के बाद किया गया था, और वे उस स्थान पर मंदिर की बहाली की मांग कर रहे हैं। दूसरी ओर, मुस्लिम समूहों ने इन दावों का विरोध किया है और मस्जिद के संरक्षण के लिए तर्क दिया है।
*एएसआई सर्वेक्षण
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) एक सरकारी संगठन है जो भारत के ऐतिहासिक स्मारकों और स्थलों की खोज, उत्खनन और संरक्षण के लिए जिम्मेदार है। इस विवाद के संदर्भ में, एएसआई को इसके पुरातात्विक महत्व का आकलन करने और इसके निर्माण से संबंधित ऐतिहासिक साक्ष्य इकट्ठा करने के लिए ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का व्यापक सर्वेक्षण करने के लिए कहा गया है।
*वुज़ुखाना
कोर्ट ने वुजुखाने को एएसआई सर्वे से इसलिए बाहर रखा है क्यों कि कोर्ट कमिशन की जांच के दौरान वुजुखाने में एक शिवलिंगनुमा काले पत्थर की आकृति मिली थी। जिसे हिंदू पक्ष ने आदिदेश्वर शिव लिंग बताया है। इसी शिवलिंग की सीध में परिसर के बाहर नंदी का विग्रह भी है। मुस्लिम पक्ष इस आकृति को फव्वारा कहता है। यह विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने विवाद हल होने तक वुजुखाने को सील करवा दिया है और किसी शख्स के आने-जाने की पाबंदी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वुजुखाने की सुरक्षा का दायित्व जिला प्रशासन और पुलिस को सौंप दिया गया है।
02. बंगाल के हावड़ा में महिला प्रत्याशी को निवस्त्र कर गाँव में घुमाने का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, पत्र याचिका में स्वत: संज्ञान लेने की मांग की
बंगाल के हावड़ा में ग्राम सभा की महिला प्रत्याशी को टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा निवस्त्र कर गाँव में घुमाने की घटना पर वकील विनीत जिंदल ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कारवाही की माँग की।
जिंदल ने मुख्य न्यायधीश से इस मामले में स्वत: संज्ञान लेने की मांग की है।
इस पत्र में वकील जिंदल ने लिखा है की “आपका बंगाल के हावड़ा जिले के दक्षिण पंचाला में हुई हालिया घटना की ओर दिलाना चाहते हैं, जहां एक महिला ग्राम सभा उम्मीदवार पर टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा शारीरिक हमला और छेड़छाड़ की गई थी। महिला प्रत्याशी का आरोप है कि पंचायत चुनाव के दिन दबंगों ने उसे निर्वस्त्र कर पीड़ित महिलाओं को गांव में घुमाया। आरोप उसी ग्राम सभा के टीएमसी उम्मीदवार और उनके समर्थकों पर हैं, उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज है लेकिन मामले में कार्रवाई और जांच बेहद चिंता का विषय है क्योंकि आरोपी सत्ता में पार्टी से संबंधित हैं।
पत्र में आगे लिखा है की “हमने देखा है कि माननीय सीजेआई ने मणिपुर में हुई गंभीर और शर्मनाक घटना पर ध्यान दिया है जहां एक वीडियो में दो महिलाओं को गुंडों द्वारा परेड कराया गया था और माननीय सीजेआई ने केंद्र सरकार को इस घटना पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया है और सुनिश्चित करें कि भविष्य में ऐसी कोई घटना न हो,”। जिंदल ने पत्र में यह भी लिखा है की
बंगाल में जो घटना हुई वह भी मणिपुर की तरह ही शर्मनाक और अमानवीय है।यह कृत्य पूरे देश के लिए शर्मनाक है और अगर कड़ी कार्रवाई नहीं की गई तो भविष्य में इस तरह की घटना बढ़ सकती है,”।
दरअसल एक ग्राम पंचायत की महिला प्रत्याशी ने तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर छेड़छाड़ और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है।
यह पूरी घटना आठ जुलाई की बताई जा रही है, जिस दिन राज्य में पंचायत चुनाव का मतदान हुआ था। महिला प्रत्याशी का आरोप है कि तृणमूल कार्यकर्ताओं ने उसे निर्वस्त्र कर पूरे गांव में घुमाया। यह घटना हावड़ा जिले के पांचला इलाके की है। मामले में पांचला थाने में एफआइआर दर्ज हो चुका है। महिला ने अपनी शिकायत में तृणमूल प्रत्याशी हेमंत राय, नूर आलम, अल्फी एसके, रणबीर पांजा संजू, सुकमल पांजा समेत कई लोगों के नाम हैं।
03.अलगाववादी नेता यासीन मलिक की व्यक्तिगत पेशी पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी, चार हफ्ते बाद होगी मामले की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अलगाववादी नेता यासीन मलिक की कोर्ट में व्यक्तिगत पेशी पर गहरी नाराजगी जताई। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब वर्चुअल तरीके से पेशी हो सकती है तो फिर जेल से यासीन को क्यों लाया गया ? इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा जब अदालत ने यासीन को पेश करने का आदेश नहीं दिया है।
वही एसजी तुषार मेहता ने कहा यासीन मलिक व्यक्तिगत तौर पर पेश आए है, जबकि गृह मंत्रालय का आदेश है कि वह जेल से बाहर नहीं आ सकते। इतना ही नहीं तुषार मेहता ने कहा कि गृह मंत्रालय ने अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 268 के तहत यासीन मलिक को जेल से बाहर नहीं ले जाने का आदेश पारित किया था।
वही मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने निजी कारणों का हवाला देते हुए खुद को सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। जिसके बाद इस मामले को अब मुख्य न्यायधीश पास भेजा गया है।अब चार हफ्ते बाद मामले की सुनवाई होगी।
दरअसल, 1990 में वायुसेना अधिकारियों की हत्या के मामले में जम्मू-कश्मीर की एनआइए कोर्ट ने मलिक को क्रॉस एग्जामिनेशन के लिए पेश करने को कहा है। सीबीआई इसका विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंची है।
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