देश में इस समय कोरोना का कहर है। अपनों ने अपनों का साथ छोड़ दिया है। इस कोरोना काल में रिश्ते तार तार हुए। लेकिन इन सब नकारात्कता के बीच दो महिलाओं ने मानवता की मिसाल पेश की। दरअसल गाजियाबाद में एक गरीब रिक्शा चालक की मौत की दिल को झकझोर कर रख देने वाली दास्तान सामने आई है। मामला विजय नगर इलाके का है जहां पर गरीब रिक्शा चालक की मौत के बाद उसकी बीमार पत्नी और बेटी की मदद के लिए कोई भी आगे नहीं आया। गरीब का शव काफी देर तक अंतिम संस्कार का इंतजार करता रहा। हालांकि दो महिलाएं बाद में मसीहा बनकर आईं। जिन्होंने ऐसा फर्ज निभाया, जिसके बाद यह साबित होता है, कि ये महिलाएं किसी कोरोना योद्धा से कम नहीं है।
बीमार होने से हुई थी मौत
विजय नगर इलाके में रहने वाला रिक्शा चालक रामू पिछले लंबे समय से फेफड़े की बीमारी से जूझ रहा था। 2 महीने से लॉक डाउन में काम नहीं होने की वजह से परिवार काफी परेशान था। इसी दौरान उसकी रविवार को मौत हो गई। रामू की दिव्यांग पत्नी रोती रही। उसने पड़ोस का दरवाजा खटखटाया। लेकिन कोई मदद के लिए नहीं आया। सबको डर इस बात का था कि कहीं रामू की मौत कोरोना से तो नहीं हुई है। रामू की मासूम बेटी भी जगह-जगह गुहार लगाती रही, कि कोई श्मशान घाट ले जाने के लिए उनकी मदद कर दे। लेकिन कुछ नहीं हुआ। मामला सोशल मीडिया पर फैलने लगा, तो ममता नाम की महिला तक जानकारी पहुंची। ममता ने मौके पर पहुंचकर एक अन्य महिला को साथ लिया, और रामू के शव को नेशनल हाईवे तक लेकर पहुंची। लेकिन एक बार फिर से मानवता शर्मसार हुई। कोरोना के डर से कोई वाहन चालक नहीं रुका, जिससे रामू के शव को श्मशान घाट ले जाने के लिए घंटों लग गए। दोनो महिलाओं ने ही मशक्कत करके शमशान घाट तक शव को पहुंचाया।
महिलाओं ने करवाया अंतिम संस्कार
आमतौर पर हिंदू रीति रिवाज में देखा जाता है कि घर के पुरुष ही अंतिम संस्कार करते हैं। महिलाएं अंतिम संस्कार में कम ही जाती हैं। लेकिन यहां पर महिलाओं ने डटकर परिस्थिति का सामना किया। रामू के परिवार से ना होने के बावजूद, पूरे अंतिम संस्कार प्रक्रिया का यह महिलाएं हिस्सा बनी। उन्होंने मानवता के साथ साथ सामाजिक फर्ज भी अदा किया।
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