कहा जाता है कि अगर दिल में इच्छा शक्ति मजबूत हो तो कुछ भी पाना नामुमकिन नहीं होता। इस दुनिया की कोई भी परेशानी या समस्या आसमान की ऊंचाइयों को छूने से नहीं रोक सकती है। यहां आपको एक ऐसी बेटी की कहानी बताने जा रहे हैं जो एक समय पांवों में चप्पल के बिना सड़कों की धूल फांकने को मजबूर थी और आज वह कीमती गाड़ियों में सफर करती है। ज्योति रेड्डी एक ऐसा ही नाम है जिसने अपनी मुश्किलों से लड़ते हुए सफलता की पराकाष्ठा को अपने नाम किया। ज्योति रेड्डी का परिवार ऐसा था कि दो वक्त की रोटी भी नसीब होना मुश्किल होता था। जब वह नौ साल की थीं तभी उनके पिता ने उन्हें और उनकी छोटी बहन को एक अनाथालय में भेज दिया था। उनका जन्म आंध्र प्रदेश के (अब तेलंगाना) वारंगल जिले के गुडेम जिले में हुआ था। वह अपने परिवार में पांच बच्चों में दूसरी सबसे बड़ी लड़की थीं और उनके पिता वेंकट रेड्डी एक किसान थे।
आज वह अमेरिका में एक सॉफ्टवेयर कंपनी की सीईओ हैं। ज्योति की यह सफलता असाधारण है। पिता ने उन्हें अनाथालय इसलिए भेज दिया था कि कम से कम वहां रहकर उनकी बेटी को दो वक्त की रोटी तो मिल जाएगी। उन्हें घर की याद सताती थी लेकिन वह ये समझ कर अनाथालय में रह रही थी कि मेरी मां ही नहीं है।’ ज्योति ने वहां कक्षा पांचवीं से लेकर दसवीं तक की पढ़ाई की। ज्योति उन दिनों को याद करते हुए बताती हैं, ‘उस वक्त अनाथालय में पानी की भारी कमी होती थी और वहां कोई टैप या नल भी नहीं होता था। इतना ही नहीं वहां बाथरूम की भी कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। मैं बाल्टी लेकर घंटों तक लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार किया करती थी। ताकी कुएं से पानी निकाल सकूं। वह ढाई किलोमीटर पैदल नंगे पांव चलकर सरकारी बालिका विद्यालय पढ़ने जाती थी। उन्हें अंग्रेजी माध्यम के स्कूल के बच्चों को देखकर लगता था कि ये बच्चे कितने खुशनसीब हैं जिनके पास अच्छी ड्रेस हैं और पैरों में पहनने के लिए जूते भी हैं।’ तमाम संघर्षों के साथ ही उनकी शादी 16 वर्ष में ही हो गई। ज्योती दो बच्चियों की मां बनीं। मुश्किलों के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और आगे बढ़ती रहीं। उन्होंने नेहरू युवा केंद्र के अंतर्गत चलने वाले सांयकालीन स्कूल में 120 रुपये प्रति माह की तनख्वाह में टीचर के तौर पर काम करना शुरू किया। वह रात में वह पेटीकोट सिलती थीं ताकि और अधिक पैसे कमा सकें। बाद में उन्होंने ग्रेजुऐशन और पोस्ट ग्रेजुएशन भी की। मार्च 2000 में उन्हें अमेरिका से नौकरी का आॅफर आया। उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को एक हॉस्टल में भेज दिया और वह अमेरिका निकल गईं। डेढ़ साल के संघर्ष के बाद वह भारत लौट आईं। उन्हें एक गुरू ने बताया कि वह अपना खुद का बिजनेस करने के लिए बनी हैं। जिसके बाद वह फिर से अमेरिका गर्इं और वीजा प्रोसेसिंग के लिए एक कंसल्टिंग कंपनी खोल ली। ज्योति की किस्मत अच्छी निकली और उन्होंने पहली बार में ही 40,000 डॉलर की बचत कर ली। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार शिखर की ओर बढ़ती गर्इं। आज ज्योति की कंपनी में 100 से अधिक लोग काम करते हैं और उनके पास अमेरिका के अलावा इंडिया में चार घर हैं। उनकी कंपनी का टर्नओवर 1.5 करोड़ डॉलर से अधिक है। ज्योति सफलता की बुलंदियों पर पहुंचने के बाद आज भी अपनी जड़ों को भूली नही हैं। वह गरीब और बेसहारा बच्चों की मदद करने में सबसे आगे रहती हैं। मेहनत और दृढ़ संकल्प का कोई विकल्प नहीं होता है। ज्योति रेड्Þडी की कहानी हर उस औरत के लिए प्रेरणा है जो तमाम संघर्षों के बाद भी आगे बढ़ना चाहती हैं। ज्योति ने दिखा दिया कि जीवन में कुछ भी नामुमकिन नहीं है।
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