नई दिल्ली। कोविड-19 संक्रमण की दर पिछले 15 दिनों में आधी रह गई है। सुविधायें लगातार बढ़ रही हैं। दिल्ली एनसीआर वासियों को किसी न किसी तरह मौत के मुंह में जाने से बचाना है। इसके लिए चाहे दिन में काम करना पड़े या रात में या फिर 24 घंटे, रुकेंगे नहीं। इसके लिए चाहे केंद्र की भाजपा सरकार से मदद लें या दिल्ली की आम आदमी सरकार से, या फिर सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं से। इन सभी के साथ सामंजस्य बनाने के बीच अगर किसी मरीज की मदद के लिए कोई मैसेज आ जाये, तो उसकी कैसे सम्मान सहित मदद करेंगे मगर क्रेडिट किसी चीज का नहीं लेंगे। नाम नहीं चाहिए, सिर्फ काम करना है। इस सोच पर अगर देश में कोई अफसर, वास्तविक लोक सेवक की तरह काम कर रहा है, तो वह हैं दिल्ली के मुख्य सचिव विजय देव।
हिमाचल के मूल निवासी विजय देव ने आईआईटी दिल्ली से बीटेक और फिर एमबीए किया। वह 1987 बैच में आईएएस बने। अब दिल्ली के मुख्य सचिव हैं। वह केंद्र की भाजपा हो या दिल्ली की आम आदमी पार्टी के झगड़े से दूर एक अनुशासित अधिकारी की तरह सिर्फ काम करते हैं। दिल्ली के उप राज्यपाल, मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार तीनों से सामंजस्य बनाकर अपनी टीम के अभिवावक बन चुपचाप नतीजे देते हैं। महामारी की दोनों लहरों के दौरान वह सिर्फ काम में लगे रहे। वह शक्ति के विकेंद्रीकरण पर जोर देते हैं। टीम को संरक्षण मगर उससे नियमित समबद्ध काम चाहते हैं। इसके लिए वह तल्ख भी होते हैं मगर फिर पीठ थपथपाकर हौसला भी बनाते हैं।
रात दो बजे तक वह आपदा और जरूरतमंदों की मदद का जायजा लेते हैं। दिल्ली सचिवालय से लेकर घर तक वह जुटे रहते हैं। सुबह सात बजे से ही फिर लग जाते हैं। खुद कोविड संक्रमित हुए मगर हार नहीं मानी। न रुके, न आराम किया, जुटे रहे। जायजा लेते रहे। सही नीतियां बनाईं और जहां किसी भी स्तर पर गलतियां हो रही थीं, उन्हें सम्मान के साथ समझाया और सुधार कराया। नतीजतन दिल्ली ने महामारी से जीतने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। कोविड की संक्रमण दर आधी यानी 17.8 फीसदी रह गई है। रिकवरी रेट इतना अच्छा हुआ है कि दिल्ली के सभी अस्पतालों में अब बेड उपलब्ध हो गये हैं। अब इसका क्रेडिट चाहें जो ले, उन्हें कोई चाह नहीं। जब उनके काम की प्रशंसा करिए तो सिर्फ इतना कहते हैं कि यह हमारे हमारे प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, एलजी साहब और मुख्यमंत्री की सकारात्मक सोच की सफलता है। टीम ने मेहनत की है। सामाजिक संस्थाओं और सभी राजनीतिक दलों का सहयोग मिला है। इसमें मेरा कोई योगदान नहीं, हम तो लोकतंत्र में लोक सेवक हैं। संविधान हमें लोकसेवक की संज्ञा देता है, वही हमारी पहचान है।