Congress Leader Rahul Gandhi, अजीत मेंदोला, आज समाज), नई दिल्ली: आखिरकार राहुल गांधी ने प्रतिपक्ष के नेता पद की जिम्मेदारी संभाल सभी तरह की कयास बाजियों पर विराम लगा दिया है। इससे एक बड़ा मैसेज तो यह चला ही गया कि अब वह किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी संभालने को लेकर पीछे नहीं हटेंगे। मौका मिलने पर अब पीएम पद की भी जिम्मेदारी संभाल सकते हैं।
कांग्रेस ने विपक्ष को दिया मैसेज
कांग्रेस ने विपक्ष को भी मैसेज दे दिया है कि राहुल ही नेता हैं। उनका नेतृत्व जिन्हें मंजूर हो वह साथ रह सकते हैं।राहुल के नेतृत्व को लेकर यूपीए के भीतर कई बार विरोध के स्वर उठे थे।टीएमसी नेत्री ममता बनर्जी ने खुद विरोध किया था।लेकिन अब बदले हालात में अभी टीएमसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है,लेकिन स्पीकर के चुनाव के फैसले में झटका जरूर दिया। राहुल के पहली बार जिम्मेदारी संभालने के बाद यह संदेश भी चला गया है कि इंडिया गठबंधन के मुखिया भले ही मल्लिकार्जुन खरगे हों,लेकिन फैसले राहुल के ही चलेंगे।
शुरूआती हफ्ते में फैसले करते दिखाई दिए राहुल
18 वीं लोकसभा की शुरूआती हफ्ते में फिलहाल राहुल गांधी ही विपक्ष के नेता के रूप में फैसले करते दिखाई भी दिए।हालांकि लोकसभा के अध्यक्ष पद के चुनाव पर उनके फैसले को लेकर सवाल जरूर उठे हैं। उनका यह फैसला अति उत्साह में लिया गया माना जा रहा है। इस फैसले के चलते इंडी गठबंधन में मतभेद भी दिखे। टीएमसी ने अपनी नाराजगी जता वोटिंग की खिलाफत कर अपनी ताकत का अहसास भी कराया। टीएमसी के दखल के चलते ओम बिड़ला ध्वनि मत से स्पीकर चुने गए।
राहुल ने के सुरेश को उतारने का एक तरफा फैसला लिया
सूत्रों का कहना है कि टीएमसी आम सहमति चाहती थी, लेकिन राहुल ने के सुरेश को उतारने का एक तरफा फैसला ले लिया। राहुल के लिए आगे भी टीएमसी को साधना बड़ी चुनौती होगी।यही नहीं राहुल गांधी के लिए अपने मुद्दों पर टीएमसी के साथ उद्धव ठाकरे की शिवसेना हर समय राजी रखना भी आसान नहीं होगा।यूं भी राहुल के सामने अब पहली चुनौती महाराष्ट्र में ठाकरे को सीट शेयरिंग के लिए राजी करने की ही आने वाली।
तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव राहुल गांधी की बड़ी परीक्षा
तीन माह बाद महाराष्ट्र के साथ हरियाणा, झारखंड के भी चुनाव हैं। एक चर्चा यह भी है कि बिहार के चुनाव भी इसी साल हो सकते हैं। राहुल गांधी की बड़ी परीक्षा इन्ही राज्यों के चुनावों में ही होनी है।बाकी राज्यों में गठबंधन को लेकर कोई परेशानी नहीं है,लेकिन महाराष्ट्र में गठबंधन के साथ सीट बंटवारा आसान नहीं रहने वाला है। समझा जा रहा है कि राहुल गांधी ने 18 वीं लोकसभा में संविधान और नीट को बड़ा मुद्दा चुनाव वाले राज्यों को ध्यान में ही रख कर बनाया है।
सरकार ने आपातकाल को आगे कर कांग्रेस को परेशानी में डाला
हालांकि सरकार ने आपातकाल को आगे कर कहीं ना कहीं कांग्रेस को परेशानी में डाला है। लेकिन कांग्रेस अभी संविधान के मुद्दे को छोड़ेगी लगता नहीं है। हालांकि राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान कांग्रेस के नेताओं के भाषण से आगे की राजनीति का पता चलेगा। लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस ने संविधान को लेकर सरकार पर हमला बोला तो फिर आपातकाल को लेकर सरकार जवाब देने में पीछे नहीं हटेगी।
संविधान की आड़ में आरक्षण की राजनीति को आगे बढ़ाना मंशा
राहुल और विपक्ष की रणनीति से ऐसा लगा कि संविधान की आड़ में आरक्षण की राजनीति को आगे बढ़ाना चाहते हैं।इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस और विपक्ष को हिंदी बेल्ट में जो भी सीट मिली हैं उसमें आरक्षण और जाति की राजनीति ने काम किया।लेकिन कांग्रेस और विपक्ष को यह भी देखना होगा कि आरक्षण के साथ साथ बीजेपी की गलत रणनीति और भीतर घात की वजह से भी उन्हें जीतने का मौका मिला।खास तौर पर राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार की बड़ी वजह भीतरघात भी सामने आई है।इन दोनों राज्यों के चुनाव परिणामों ने जहां भाजपा को बहुमत से रोका वहीं कांग्रेस के गठबंधन को ताकत दी।
चुनाव परिणामों से ताकत के साथ आत्मविश्वास भी बढ़ा
एक दशक से लगातार हार से जूझ रहे राहुल गांधी को भी चुनाव परिणामों से ताकत के साथ आत्मविश्वास भी बढ़ा है।यही वजह रही कि इस बार 18 वीं लोकसभा के पहले दिन से ही वह अलग जोश में दिखाई दिए।एक दम नए राहुल के रूप में वे सामने आए। हर तरह की बैठकों में भाग ले सरकार पर दबाव बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे है।पार्टी में उनके विरोधी भी उनके बदले रुख से उत्साहित हैं। उनकी बहन प्रियंका गांधी को नेतृत्व संभालने वाली आवाजें शायद अब दब जाएंगी।
वायनाड उपचुनाव जीत लोकसभा पहुंच जाएंगी प्रियंका गांधी
हालांकि प्रियंका गांधी ने अपनी तरफ से केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ट्वीट के माध्यम से हमला जारी रखा हुआ है। वो भी 6 माह बाद वायनाड के उपचुनाव को जीत लोकसभा में पहुंच जाएंगी। तब देखना होगा संसद में उनकी क्या भूमिका होती है।लेकिन इतना तय है कि राहुल के ताकतवर होने से कांग्रेस की केंद्र और राज्यों की राजनीति पर भी असर पड़ेगा।समाप्त