Aaj Samaj (आज समाज), Law Commission Report, नई दिल्ली: विधि आयोग ने देशद्रोह कानून को जरूरी बताया है। देश के 22वें विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी ने 152 साल पुराने इस कानून के उपयोग पर आधारित केंद्र सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए को हटाने का कोई उपयुक्त कारण नहीं है और इसे आईपीसी में बनाए रखने की जरूरत है।
उपयोग की उत्पत्ति का पता लगाने का अध्ययन किया
न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी ने रिपोर्ट में कहा, हमने राजद्रोह से संबंधित कानून और भारत में इसके उपयोग की उत्पत्ति का पता लगाने का अध्ययन किया और इसके आधार पर हम सिफारिश करते हैं कि धारा 124-ए के अंतर्गत देने वाली सजा को आईपीसी के आर्टिकल छह के तहत अन्य अपराधों के साथ समानता में लाया जाए। इसके अलावा, देशद्राह कानून के दुरुपयोग के संबंध में विचारों को ध्यान में रखते हुए, आयोग ने सिफारिश की है कि इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा आवश्यक दिशानिर्देश जारी किए जाएं।
संसद के मानसून सत्र में बिल ला सकती है केंद्र सरकार
आयोग ने आजादी से पहले और आजाद भारत दोनों में राजद्रोह के इतिहास, विभिन्न न्यायालयों में राजद्रोह पर कानून, और विषय वस्तु पर सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट्स के विभिन्न निर्णयों का भी विश्लेषण किया है। एक मई को केंद्र सरकार ने राजद्रोह कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि संसद के मानसून सत्र में बिल लाया जा सकता है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट अगस्त के दूसरे हफ्ते में सुनवाई करेगा। एडिटर्स गिल्ड आॅफ इंडिया, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा समेत पांच पक्षों की तरफ से देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई थी। मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आज के समय में इस कानून की जरूरत नहीं है।
अंग्रेजों के जमाने से चल रहा था लॉ, एससी ने कर दिया था स्थगित
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे देशद्रोह कानून को स्थगित कर दिया था। अपने आदेश में कोर्ट ने कहा था कि जब तक आईपीसी की धारा 124-ए की री-एग्जामिन प्रोसेस पूरी नहीं हो जाती, तब तक इसके तहत कोई मामला दर्ज नहीं होगा।
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