Laos-India Importance, (आज समाज), नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाओस से आज भारत लौट रहे हैं और शायद भारत के कई लोग इस बात से बेखबर होंगे कि चीन-म्यामांर से घिरा छोटा सा देश लाओस भारत के लिए रणनीतिक रूप से कितना अहम है।
जनसंख्या महज 77 लाख के लगभग
बता दें कि लाओस की कुल जनसंख्या महज 77 लाख के लगभग है, पर दक्षिण पूर्व एशिया में यह एकमात्र लैंडलॉक कंट्री है। रणनीतिक दृष्टि से लाओस इसलिए अहम है क्योंकि इस देश की सीमा उत्तर-पश्चिम में चीन व म्यांमार, पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम में थाईलैंड, पूर्व में वियतनाम और दक्षिण-पूर्व में कंबोडिया से लगती है। चीन और म्यांमार से घिरे होने की वजह भारत के लिए लाओस का महत्व बढ़ जाता है।
व्यवसायिक दृष्टि से भी लाओस महत्वपूर्ण
दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी भौगोलिक स्थिति के चलते भी लाओस हमेशा व्यवसायिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा है। यही वजह है कि इसपर न तो कभी फ्रांस ने कब्जा किया न कभी जापान ने लाओस पर कब्जा करने की हिमाकत की। वर्ष 1953 में जब लाओस आजाद हुआ, तब चीन ने वहां अपना प्रभाव आजमाना शुरू किया। हालांकि ड्रैगन अपने मंसूबों पर कामयाब नहीं हो पाया।
सम्मेलन में भाग लेने दो दिन के दौरे पर गए थे पीएम
गौरतलब है कि इस बार लाओस आसियान की अध्यक्षता कर रहा है और पीएम मोदी इसी सप्ताह गुरुवार को 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और 21वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए दो दिवसीय लाओस दौरे गए थे। इस दौरान मोदी की कई राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात हुई। वे अमेरिकी विदेश मंत्री व अन्य देशों के बड़े नेताओं से मिले।
पंडित नेहरू ने भी किया था दौरा
1953 में आजाद होने के बाद फरवरी 1956 में भारत-लाओस के बीच रिश्ते बने थे। मतलब साफ है कि लाओस की आजादी के तीन वर्ष बाद ही भारत ने लाओस की रणनीतिक आवश्यकता को देखते हुए उसके साथ संबंध स्थापित कर लिए थे। भारत के लिए लाओस के महत्व का इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि 1954 में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी लाओस का दौरा किया था। वहीं भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी 1956 में लाओस यात्रा पर गए थे।
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