Aaj Samaj (आज समाज), Kovind Committee Report, नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने एक देश-एक चुनाव पर अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। गुरुवार को सौंपी 18,626 पन्नों की रिपोर्ट में समिति ने पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ करवाने की सिफारिश की है।
त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में नए सिरे से चुनाव
समिति ने कहा है कि इसके बाद 100 दिन के अंदर दूसरे चरण में स्थानीय निकायों (नगर पालिकाओं और पंचायतों ) के चुनाव करवाए जा सकते हैं। वहीं समिति की सिफारिश है कि त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी घटना की स्थिति में नए सदन के गठन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं। समिति की रिपोर्ट में पिछले 191 दिनों के हितधारकों, विशेषज्ञों और अनुसंधान कार्य के साथ व्यापक परामर्श का नतीजा शामिल है।
पहले से योजना बनाने की भी सिफारिश
समिति ने एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, कर्मचारियों और सुरक्षा बलों संबंधी जरूरतों के लिए पहले से योजना बनाने की भी सिफारिश की है। साथ ही निर्वाचन आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से एकल मतदाता सूची व मतदाता पहचान पत्र तैयार करेगा।
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने के उद्देश्य से समिति ने सिफारिश की है कि राष्ट्रपति आम सभा के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तारीख को अधिसूचना द्वारा जारी कर सकते हैं। चुनाव आयोग इस अनुच्छेद के प्रावधान को लागू करें और अधिसूचना की उस तारीख को नियुक्त तिथि कहा जाएगा। इससे पहले, समिति के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर इस बात की पुष्टि की थी कि समिति 2029 में एक साथ चुनाव कराने का सुझाव देगी। साथ ही इससे संबंधित प्रक्रियात्मक और तार्किक मुद्दों पर चर्चा करेगी।
पहले की तरह अब भी एक साथ चुनाव संभव
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रिपोर्ट में 1951-52 और 1967 के बीच तीन चुनावों के डाटा का इस्तेमाल किया गया है। यहां तर्क दिया गया है कि पहले की तरह अब भी एक साथ चुनाव करना संभव है। बताया गया कि एक साथ चुनाव कराना तब बंद हो गया था जब कुछ राज्य सरकारें अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही गिर गई थीं या उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था, जिससे नए सिरे से चुनाव कराने की आवश्यकता पड़ी।
बार-बार चुनाव का पड़ता है भारी बोझ
समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रारंभ में हर 10 साल में दो चुनाव होते थे और अब हर साल कई चुनाव होने लगे हैं। इससे सरकार, व्यवसायों, श्रमिकों, न्यायालयों, राजनीतिक दलों, चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और बड़े पैमाने पर नागरिक समाज पर भारी बोझ पड़ता है।
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