हॉरर फिल्मों में हम स्लीप वॉकिंग की घटनाओं को देख चुके हैं लेकिन यह दरअसल किसी भी आम इंसान की समस्या हो सकती है। जी हां, दरअसल यह एक मेडिकल सिचुएशन होता है जिसे सोनामबुलिज्म भी कहा जाता है। ऐसी स्थिति में इंसान नींद में उठकर बैठ जाता है और कई बार तो चलने भी लगता है। कई बार स्लीप वॉकिंग की वजह से गंभीर दुर्घटनाएं भी हो सकती हैं। ऐसे में अगर इसका सही समय पर उपचार कराया जाए तो इसे ठीक किया जा सकता है
क्या है लक्षण
मायोक्लीनिक के अनुसार, स्लीपवॉकिंग के लक्षण आमतौर पर रात में देखने को मिलती है। यह गहरी नींद में जाने के बाद शुरू होती है और कई मिनट तक इसके लक्षण रह सकते हैं। इसके लक्षण की बात की जाए तो बिस्तर से उठना और इधर उधर घूमने लगना, बिस्तर पर बैठ जाना और अपनी आंखें खोलकर रखना, दूसरों के साथ किसी तरह की प्रतिक्रिया या बातचीत न करना, जागने के बाद थोड़े समय के लिए विचलित या भ्रमित होना आदि रहता है।
क्या है स्लीप टेरर
कई बार स्लीपवॉकिंग के दौरान लोग एक्स्ट्रीम कंडीशन में चले जाते हैं और कई बार तो हिंसक हो जाते हैं। सोते वक्त डेली रुटीन की एक्टिवीटज करने लगना जैसे कि कपड़े पहनना, बात करना या भोजन खाना आदि, घर छोड़कर बाहर चले जाना, नींद में कार चलाना, यहां वहां पेशाब करना, सीढ़ियों या खिड़की से नीचे गिर जाना आदि।
ऐसा हो तो क्या करें
वैसे तो स्लीप वॉकिंग एक सामान्य मेडिकल कंडीशन होता है लेकिन अगर यह स्लीप टेरर में बदलने लगे तो डॉक्टर की सलाह जरूरी हो जाती है।
स्लीपवॉकिंग के ये हैं वजह –स्लीपवॉकिंग को रोकने के लिए सोने का टाइम सेट करना और पर्याप्त नींद लेना बहुत जरूरी है।
-इसके अलावा जहां तक हो सके तनाव, चिंता से बचें और इसके लिए योगा मेडिटेशन आदि को लाइफस्टाइल में शामिल करें।
-सुबह जल्दी उठें और रात को जल्दी सोने की आदत डालें।
-डेली वर्कआउट करें और वॉक आदि करें।
-कैफीन युक्त पदार्थ का अधिक सेवन करने से बचें।
-सोते वक्त रूम की सभी लाइट को बंद करें।