आज समाज डिजिटल Surya Grahan 2023 : साल 2023 का पहला सूर्य ग्रहण 20 अप्रैल को लगेगा। वैज्ञानिको के अनुसार इस बार 3 सूर्य ग्रहण देखने को मिलेंगे, जिनका अपना ही अलग और खास महत्व है। साल 2023 का सूर्य ग्रहण वैशाख अमावस्या के दिन लगेगा जिसे वैज्ञानिकों ने हाईब्रिड सूर्य ग्रहण बताया है। हाइब्रिड सूर्य ग्रहण आंशिक, पूर्ण और कुंडलाकार सूर्य ग्रहण का मिश्रण है ।
अंशिक सूर्य ग्रहण:
जब चंद्रमा सूर्य के छोटे हिस्से के सामने आकर उसकी रोशनी को प्रभावित करता है तो उसे आंशिक सूर्यग्रहण कहते हैं।
पूर्ण सूर्य ग्रहण:
वहीं जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा एक ही सीध में होते हैं, तब पृथ्वी का एक भाग पूरी तरह से अंधेरे में डूब जाता है। इस स्थिति को पूर्ण सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
कुंडलाकार सूर्य ग्रहण:
वहीं जब चंद्रमा सूर्य के बीचों-बीच आकर उसके प्रकाश को रोकता है, जिससे बीच में अंधेरा और बाहरी गोले पर रोशनी की केवल एक रिंग दिखाई देती है तो उसे वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं। इसे रिंग आॅफ फायर भी कहा जाता है।
सूर्य ग्रहण का समय
साल 2023 का पहला ग्रहण भारतीय समयानुसार सुबह 7:04 से आरंभ होगा जो दोपहर 12:29 पर समाप्त होगा। इस तरह सूर्य ग्रहण की अवधि 5 घंटे 24 मिनट की होगी। यह सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा और इस कारण इस सूर्य ग्रहण का सूतक काल यहां मान्य नहीं होगा।
सूर्य ग्रहण मेष राशि में लगेगा और गुरु मेष राशि में आकर सूर्य के साथ युति बनाएंगे। साथ ही पंचांग के अनुसार ग्रहण वैशाख अमावस्या के दिन लगने वाला है, जिसे बहुत ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
हाइब्रिड सूर्य ग्रहण ऐसी स्थिति जो लगभग 100 साल में एक बार देखने को मिलती है। ऐसा तब होता है जब चंद्रमा की धरती से दूरी ना तो बहुत ज्यादा होती है और ना ही बहुत कम होती है।
यह सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा। यह सूर्य ग्रहण कंबोडिया, चीन, अमेरिका, माइक्रोनेशिया, मलेशिया, फिजी, जापान, समोआ, सोलोमन, बरूनी, सिंगापुर, थाईलैंड, अंटार्कटिका, आॅस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, वियतनाम, ताइवान, पापुआ न्यू गिनी, इंडोनेशिया, फिलीपींस, दक्षिण हिंद महासागर और दक्षिण प्रशांत महासागर जैसी जगहों पर ही दिखाई देगा।
क्या है ग्रहण के पीछे की पौराणिक कथा
हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार , ग्रहण का संबंध राहु और केतु ग्रह से है। दरअसल, समुद्र मंथन के जब देवताओं और राक्षसों में अमृत से भरे कलश के लिए युद्ध हुआ था। तब उस युद्ध में राक्षसों की जीत हुई थी और राक्षस कलश को लेकर पाताल लोक में चले गए थे। तब असुरों से अमृत कलश लेने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी अप्सरा का रूप धारण किया।
इसके बाद जब भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पिलाना शुरू किया तो स्वभार्नु नामक राक्षस ने धोखे से अमृत पी लिया था और देवताओं को जैसे ही इस बारे में पता लगा उन्होंने भगवान विष्णु को इस बारे में बता दिया। इसके बाद भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।
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