
Kerala CM On SC Verdict On Tamil Nadu Governor, (आज समाज), तिरुवनंतपुरम: केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का स्वागत किया है जिसमें कहा गया कि तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों को रोके रखना और उन्हें राज्य विधानमंडल द्वारा पुनः अधिनियमित किए जाने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रखना कानून की दृष्टि से अवैध और त्रुटिपूर्ण है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
सीएम विजयन ने इस बात पर दिया जोर
सीएम विजयन ने अपने बयान में आज इस बात पर जोर दिया कि तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर अनिश्चितकालीन रोक लगाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला संघीय व्यवस्था और विधायिका के लोकतांत्रिक अधिकारों को बरकरार रखता है। उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई बार स्पष्ट कर चुका है कि राज्यपालों को कैबिनेट की सलाह के अनुसार काम करना चाहिए।
फैसला शक्तियां हड़पने की प्रवृत्ति के खिलाफ एक चेतावनी
केरल के सीएम ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के फैसले में विधेयकों को पारित करने के लिए एक विशिष्ट समय सीमा तय की गई है। उन्होंने कहा, शीर्ष कोर्ट का यह फैसला राज्यपालों द्वारा विधायिका की शक्तियों को हड़पने की प्रवृत्ति के खिलाफ एक चेतावनी भी है। यह लोकतंत्र की जीत है।
केरल : विधेयक 23 महीने तक अटके रहे
पिनाराई विजयन ने कहा, हम ऐसी स्थिति में हैं जहां विधायिका द्वारा पारित विधेयक 23 महीने तक अटके रहे और अनिश्चित रहे। उन्होंने कहा, केरल इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। यह फैसला केरल द्वारा उठाए गए ऐसे मुद्दों की प्रासंगिकता और महत्व को रेखांकित करता है। इससे पहले, केरल के पूर्व राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और राज्य सरकार के बीच राज्य विधायिका द्वारा पारित विधेयकों को सुरक्षित रखने को लेकर टकराव हुआ था।
राज्यपाल को विधानमंडल की सलाह से काम करना चाहिए
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि तमिलनाडु के राज्यपाल को राज्य विधानमंडल की सहायता और सलाह से काम करना चाहिए। शीर्ष अदालत का यह आदेश तमिलनाडु सरकार की उस याचिका पर आया है जिसमें राज्यपाल द्वारा विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर अपनी सहमति न देने के लिए कहा गया था। पीठ ने कहा कि राज्यपाल के पास राज्य विधानमंडल द्वारा भेजे गए विधेयकों पर वीटो लगाने का अधिकार नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यपाल को उस समय विधेयक पर अपनी सहमति देनी चाहिए जब वह राज्य विधानसभा द्वारा पुनर्विचार के बाद उनके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। वह केवल तभी सहमति देने से इनकार कर सकते हैं जब विधेयक अलग हो। शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि 10 विधेयकों को उस तिथि से मंजूरी दे दी गई मानी जाएगी जिस दिन उन्हें विधानमंडल द्वारा पुनर्विचार के बाद राज्यपाल के समक्ष फिर से प्रस्तुत किया गया था।
आरक्षित करने की कार्रवाई अवैध और मनमानी
फैसले में कहा गया, राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित करने की कार्रवाई अवैध और मनमानी है, इसलिए इस कार्रवाई को रद्द किया जाता है। राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों के लिए की गई सभी कार्रवाइयों को रद्द किया जाता है। 10 विधेयक राज्यपाल के समक्ष पुन: प्रस्तुत किए जाने की तिथि से ही स्पष्ट माने जाएंगे। इसमें यह भी कहा गया कि राज्यपाल को मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक होना चाहिए तथा राजनीतिक विचारों से प्रेरित नहीं होना चाहिए, बल्कि संवैधानिक शपथ से प्रेरित होना चाहिए। पीठ ने कहा कि उन्हें उत्प्रेरक होना चाहिए, अवरोधक नहीं। साथ ही उन्होंने कहा कि राज्यपाल को किसी भी तरह की बाधा उत्पन्न न करने के प्रति सचेत रहना चाहिए।
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