अजीत मेंदोला
(New Delhi News) नई दिल्ली। पंजाब की लुधियाना पश्चिम सीट का होने वाला उप चुनाव घोषणा से पूर्व ही सुर्खियां बटोर रहा है। यह उप चुनाव सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए तो अहम हो ही हो गया।

कांग्रेस के लिए भी प्रतिष्ठा वाला माना जा रहा है।लुधियाना की यह सीट तब सुर्खियों में आई जब आम आदमी पार्टी ने दिल्ली का चुनाव हारते ही राज्यसभा सांसद और उद्योगपति संजीव अरोड़ा को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया।हैरानी इसलिए हुई कि चुनाव की घोषणा से पहले ही आप ने आनन फानन में अरोड़ा को अपना उम्मीदवार बनाया।इसका सीधा मैसेज यही गया कि मुख्यमंत्री भगवत मान ने अपने नेता अरविंद केजरीवाल की नई राजनीति के लिए राज्यसभा की सीट खाली करवाने का रास्ता चुना।

अरोड़ा के सरकारी आवास में ही रह रहे केजरीवाल

केजरीवाल चुनाव हारने के बाद अरोड़ा के सरकारी आवास में ही रह रहे हैं।हालांकि पार्टी इससे इनकार करती आई है केजरीवाल राज्यसभा जाएंगे।लेकिन जिस तरह के राजनीतिक घटनाक्रम अचानक पंजाब में हुए उससे यह पुख्ता माना जाने लगा है कि केजरीवाल राज्यसभा जाएंगे ही जाएंगे।लेकिन इसके लिए हर हाल में पहले अरोड़ा को उप चुनाव में जितवाना जरूरी होगा जिससे वह राज्यसभा से इस्तीफा दे पाएं।

अरोड़ा हल्के नेता नहीं माने जा रहे हैं ।बात तो यहां तक हो रही है कि अरोड़ा को चुनाव जितवा कर मंत्री भी बनाया जाएगा।आम आदमी पार्टी ने बहुत ही सोच समझ कर यह फैसला किया लगता है । क्योंकि लुधियाना का चुनाव तुरंत नहीं होना था।चुनाव आयोग हो सकता है अक्तूबर में बिहार चुनाव के साथ ही लुधियाना की तारीख घोषित करे।मतलब आम आदमी पार्टी के लिए तब तक लुधियाना में माहौल बनाने का पूरा मौका है।

लुधियाना का यह उप चुनाव मुख्यमंत्री मान और उनकी पार्टी आप के लिए राजनीतिक दृष्टि से मरण जीवन वाला बन चुका है।दिल्ली की हार के बाद आप पार्टी पंजाब को कतई कमजोर नहीं होने देना चाहती है।विधायक गुरुप्रीत गोगी के निधन से खाली हुई इस सीट को वह हर हाल में जीतने की कोशिश में जुट गई है।इसी के चलते सबसे पहले किसान आंदोलन को समाप्त करवाने का फैसला किया गया।

क्योंकि लुधियाना के व्यापारियों की मांग लंबे समय से लंबित थी।केंद्र की बीजेपी सरकार को घेरने के लिए आम आदमी पार्टी ने शुरू में किसान आंदोलन को खूब हवा दी थी,लेकिन अब खुद ही आंदोलन को जबरन खत्म करने जैसा फैसला करना पड़ा।इस बीच लुधियाना में कानून व्यवस्था सुधारने से लेकर तमाम ऐसे फैसले किए जा रहे हैं जिससे सीधे वोटर प्रभावित हो सके।केजरीवाल ने अभी से खुद प्रचार की जिम्मेदारी संभाल अपने लिए नई राजनीतिक पिच तैयार करनी शुरू कर दी है।

हालांकि इस सीट पर अकाली दल,बीजेपी भी उम्मीदवार उतारेंगे लेकिन असल मुकाबला कांग्रेस और आप के बीच ही होगा।दिल्ली की हार के बाद दोनों दलों ने एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है।हालांकि पिछला चुनाव हारने के बाद कांग्रेस की बहुत अच्छी स्थिति है नहीं।पार्टी ने दो साल से भी ज्यादा समय से दोनों अहम पदों पर जाट सिख ही बिठाए हुए हैं।प्रतिपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा हैं तो प्रदेश अध्यक्ष राजा वेडिंग हैं।कांग्रेस दावे ऐसे करती है कि सरकार गिरा देंगे।जबकि पार्टी में कई गुट बने हुए हैं।

वो तो आज कल नवजोत सिंह सिद्धू क्रिकेट कमेंट्री में व्यस्त हैं।इसलिए शांति बनी हुई है।लेकिन इन दो नेताओं के साथ चरणजीत सिंह चन्नी और सुखविंद्र सिंह रंधावा की नजरें भी प्रदेश की कुर्सी पर हैं।कांग्रेस अगर एक जुट हो चुनाव लड़ी तो आप की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।आप को भी अहसास है कि यह उप चुनाव नहीं जीता तो पार्टी के भीतर फिर तमाम तरह की गतिविधियां शुरू हो जाएंगी।इसलिए दिल्ली के पूर्व सीएम केजरीवाल खुद लुधियाना उप चुनाव की कमान अपने हाथ में रखे हुए हैं।केजरीवाल की भी राजनीतिक प्रतिष्ठा उप चुनाव से जुड़ गई है।पार्टी जीती तो वह फिर शान से राज्यसभा पहुंच केंद्र की राजनीति करेंगे।भले ही पार्टी कुछ भी कहे केजरीवाल का लक्ष्य राज्यसभा ही है।जिससे उन्हें सुविधाएं मिल सकें।

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