कुछ तस्वीरें सहेजने के लिए होती हैं। सहेजना इसलिए जरूरी होता है कि वो आपको बहुत कुछ याद दिलाती हैं। प्रधानमंत्री मोदी और इसरो प्रमुख डॉ. के सिवन की यह भावुक तस्वीर हमें भी सहेजनी चाहिए। एक देश का टीम लीडर कैसा होना चाहिए, यह तस्वीर उसकी एक झलक है। यह आप में वो ऐतिहासिक क्षण है जिसे हर किसी को गौर से देखना चाहिए। अपनी आंशिक असफलता पर रोते हुए इसरो प्रमुख डॉ. सिवन को जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहारा और हौसला दिया है वह अपने आप में बहुत कुछ कहता है। मिशन में शामिल वैज्ञानिकों के लिए निश्चित तौर पर यह दुख का पल था, लेकिन देश के प्रधानमंत्री की मौजूदगी और उनके द्वारा दी गई हौसलाआफजाई ने वैज्ञानिकों के लिए बुस्टअॅप डोज का काम किया है।
हमारा देश अतिमहत्वाकांक्षाओं वाला देश है। जिन लोगों को जीएसएलवी और पीएसएलवी का मतलब भी नहीं पता वो अपना ज्ञान देने में जुटे हैं। वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इसरो मुख्यालय में उनकी उपस्थिति पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं। वो सवाल कर रहे हैं कि आखिर प्रधानमंत्री वहां क्यों मौजूद थे। उनके वहां उपस्थित रहने के कारण वैज्ञानिक ठीक से लैंडिंग नहीं करवा पाए। प्रधानमंत्री की आलोचना में अपना सारा ज्ञान उड़ेलने वाले और हर बात के लिए मोदी को जिम्मेदार बताने वाले शायद इस चंद्रयान मिशन को रिमोट से चलने वाला वीडियो गेम मानते हैं। उनके मन में शायद यह बात है कि इसरो में बैठे वैज्ञानिक नीचे से रिमोट कंट्रोल से गेम खेल रहे थे और मोदी के वहां जाने से उनका रिमोट कंट्रोल से ध्यान भटक गया। विक्रम लैंडर ठीक से लैंड न हो सका। हद है आलोचना की। लोगों को मंथन करना चाहिए कि मोदी की आलोचना कर चंद्रयान जैसे असंभव मिशन के महत्व को क्या वो कम नहीं कर रहे हैं। इस तरह के मिशन की सफलता और असफलता में सेकेंड भर का अंतर होता है। इसरो चीफ ने भी मिशन के अंतिम पंद्रह मिनट बेहद खास और खतरनाक माने थे। पर उन सबको इस बात पर गर्व था कि हमारे प्रधानमंत्री सहित पूरा देश इस वक्त जाग रहा है और मिशन की सफलता की दुआएं कर रहा है। आप जरा मंथन करिए, क्या यह इसरो का पहला मिशन था? नहीं इससे पहले भी इसरो ने ऐसी-ऐसी उपलब्धियां हासिल की है जो इतिहास में पहले नहीं हुई। पर मिशन मंगल और मिशन चंद्रयान के अलावा तमाम ऐसी उपलब्धियों की चर्चा पब्लिक डोमिन में नहीं हुई। सैकड़ों मिशन फेल हुए। सैकड़ों सफल हुए। पर जरा सोचिए इस तरह की चर्चा सिर्फ आज ही क्यों हुई। क्यों आज देश के करोड़ों बच्चों ने इसे लाइव देखने के लिए अपनी नींद खराब की। क्यों देश भर के चुनिंदा बच्चे इसरो मुख्यालय में मौजूद रहे। यही बच्चे आने वाले दिनों में भारतीय विज्ञान के क्षेत्र में इतिहास रचने को तैयार रहेंगे। आज छोटे से छोटा बच्चा इस मिशन की चर्चा कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी और मीडिया की घंटों अनवरत कवरेज ने इसे देशव्यापी इवेंट के रूप में बदल दिया था। यह अपने आप में अद्वितिय था।
ज्ञान देने वालों से जरूर पूछा जाना चाहिए कि क्या उन्हें पता है कि चंद्रयान-1 कब लॉन्च हुआ था और इसके बारे में उन्हों क्या देखा या सुना है। उनसे पूछा जाना चाहिए कि जब भारतीय वैज्ञानिकों ने देश में बने पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी पीएसएलवी रॉकेट को 1994 में लॉन्च किया था तो कितने लोगों को भारतीय वैज्ञानिकों की इस असाधारण उपलब्धि के बारे में जानकारी मिली थी। कैसे यही पीएसएलवी भारत समेत दुनिया के सबसे भरोसेमंद रॉकेट में शुमार हो गया, क्या इसकी चर्चा कभी हुई। भारत ने 2001 में जब स्वदेशी तकनीक से बने नए जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी जीएसएलवी रॉकेट से जीसैट-1 उपग्रह लॉन्च कर दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया था, तब कितने लोगों ने भारतीय वैज्ञानिकों को बधाई संदेश भेजा था।
2008 में भारत ने जब अपने सबसे भरोसेमंद पीएसएलवी से देश के पहले मून मिशन चंद्रयान-1 को लॉन्च किया था, तब कितने ज्ञानियों ने इस उपलब्धि की चर्चा की थी। जब भारतीय वैज्ञानिकों ने नवंबर 2013 को अपना पहला मार्स आॅर्बिटर मिशन (मंगलयान) लॉन्च किया था, तब इसरो पूरी दुनिया में ऐसी पहली स्पेस एजेंसी बन गई थी, जिसने पहले प्रयास में ही मंगल पर पहुंचने में सफलता हासिल कर ली थी। क्यों नहीं उस वक्त बधाइयों का सिलसिला भारतीय वैज्ञानिकों को मिला। इतना ही नहीं इसरो के वैज्ञानिकों ने 2017 में एक ऐसी उपलब्धि हासिल की थी जिसने पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया था। बहुत कम लोग जानते होंगे कि इसरो ने 15 फरवरी 2017 को पीएसएलवी-सी 37 से भारत सहित कई दूसरे देशों के 104 उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में लॉन्च किया था। इतनी ज्यादा संख्या में एक साथ सैटेलाइट लॉन्च करने वाला भारत इकलौता देश है। भारतीय वैज्ञानिकों की यह ऐसी उपलब्धि है जिसे आज तक कोई पार नहीं कर सका है। क्या इन उपलब्धियों की चर्चा नहीं होनी चाहिए थी? क्या हमारे वैज्ञानिक इसके हकदार नहीं हैं कि उनके साथ उनका प्रधानमंत्री बैठ कर उनकी उपलब्धियों को देश दुनिया को बताए।
ज्ञान देने वाले लोगों ने इस देश व्यापी इवेंट में प्रधानमंत्री की मौजूदगी पर कुतर्क देना शुरू किया है। पर हमें इस बात पर गर्व करना चाहिए कि हमारे प्रधानमंत्री अगर सेना के सर्जिकल स्ट्राइक में भी रात भर जागकर हर एक पल पर नजर रख सकते हैं तो अपने वैज्ञानिकों के साथ रात भर जागकर उनके सुख दुख, उपलब्धियों और नाकामयाबियों में भी खड़ा रह सकते हैं। शर्म आनी चाहिए उन्हें जो प्रधानमंत्री की उपस्थिति को इस मिशन की असफलता के साथ जोड़ रहे हैं। इस तरह का पहला प्रयोग नासा ने किया था कि अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि जागृत करने के लिए वहां के स्पेस सेंटर से लॉन्च होने तमाम अभियानों को लाइव देखने के लिए लोगों को आमंत्रित किया जाए। हाल ही में भारत में इसरो ने भी ऐसी ही व्यवस्था की। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में एक बड़ा स्टेडियम तैयार किया गया है जहां से हमारे देश के बच्चे और अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि रखने वाले लोग लाइव देख सकें। चंद्रयान की लॉन्चिंग को देखने के लिए भी करीब दो हजार लोगों को आमंत्रित किया गया था। आने वाले दिनों में इसकी क्षमता और बढ़ाई जाएगी। यह प्रयास सिर्फ इसलिए है कि हमारा देश भी विज्ञान को नजदीक से समझें। बच्चों में अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति रुचि जगे। किसी के वहां बैठने या पहुंचने से वैज्ञानिकों पर कोई असर नहीं होता है। सबकुछ कंप्यूटरीकृत होता है। कंप्यूटर गेम या रिमोट कार की तरह इसे आॅपरेट नहीं किया जाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो सेंटर में वैज्ञानिकों को हौसला न खोने की सलाह दी और उनकी पीठ थपथपाई। यह मिशन बेशक सफलता के इतने करीब पहुंचकर चूक गया हो, लेकिन पूरा देश इसरो और हमारे वैज्ञानिकों के जज्बे को सलाम कर रहा है। प्रधानमंत्री के सामने इसरो प्रमुख डॉ. के सिवान अपने आंसू रोक नहीं पाए। उन्हें रोता देख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें गले लगाकर उनकी पीठ थपथपाई और ढाढस दिया। इस क्षण के गवाह बने बंगलूरू के पुलिस कमिश्नर भास्कर राव प्रधानमंत्री मोदी की नेतृत्व क्षमता के मुरीद हो गए। भास्कर राव ने इस घटना को ट्विटर पर शेयर किया। उन्होंने लिखा है कि पुलिस कमिशनर होने के नाते, मैं उस पल का गवाह बना जब प्रधानमंत्री दुखी डॉ. सिवन को ढाढस बंधा रहे थे, बेहतरीन नेतृत्व, संकट के समय शांत बने रहना, वैज्ञानिक समुदाय में फिर विश्वास लाना और देश की प्रगति के लिए आशा का निर्माण करना… मैंने आज बेहद अनमोल सबक सीखा…। इसीलिए मैंने मंथन की शुुरुआत में लिखा है ऐसी तस्वीरों को सहेजने की जरूरत है, क्योंकि हर व्यक्ति अपने घर में, परिवार में, समाज में किसी न किसी तरीके से लीडर है। एक लीडर को अपने सहयोगियों के साथ किस तरह खड़ा रहना चाहिए यह तस्वीर इस बात की ऐतिहासिक गवाह है।
(लेखक आज समाज के संपादक हैं )
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ज्ञान देने वालों से जरूर पूछा जाना चाहिए कि क्या उन्हें पता है कि चंद्रयान-1 कब लॉन्च हुआ था और इसके बारे में उन्हों क्या देखा या सुना है। उनसे पूछा जाना चाहिए कि जब भारतीय वैज्ञानिकों ने देश में बने पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी पीएसएलवी रॉकेट को 1994 में लॉन्च किया था तो कितने लोगों को भारतीय वैज्ञानिकों की इस असाधारण उपलब्धि के बारे में जानकारी मिली थी। कैसे यही पीएसएलवी भारत समेत दुनिया के सबसे भरोसेमंद रॉकेट में शुमार हो गया, क्या इसकी चर्चा कभी हुई। भारत ने 2001 में जब स्वदेशी तकनीक से बने नए जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी जीएसएलवी रॉकेट से जीसैट-1 उपग्रह लॉन्च कर दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया था, तब कितने लोगों ने भारतीय वैज्ञानिकों को बधाई संदेश भेजा था।
2008 में भारत ने जब अपने सबसे भरोसेमंद पीएसएलवी से देश के पहले मून मिशन चंद्रयान-1 को लॉन्च किया था, तब कितने ज्ञानियों ने इस उपलब्धि की चर्चा की थी। जब भारतीय वैज्ञानिकों ने नवंबर 2013 को अपना पहला मार्स आॅर्बिटर मिशन (मंगलयान) लॉन्च किया था, तब इसरो पूरी दुनिया में ऐसी पहली स्पेस एजेंसी बन गई थी, जिसने पहले प्रयास में ही मंगल पर पहुंचने में सफलता हासिल कर ली थी। क्यों नहीं उस वक्त बधाइयों का सिलसिला भारतीय वैज्ञानिकों को मिला। इतना ही नहीं इसरो के वैज्ञानिकों ने 2017 में एक ऐसी उपलब्धि हासिल की थी जिसने पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया था। बहुत कम लोग जानते होंगे कि इसरो ने 15 फरवरी 2017 को पीएसएलवी-सी 37 से भारत सहित कई दूसरे देशों के 104 उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में लॉन्च किया था। इतनी ज्यादा संख्या में एक साथ सैटेलाइट लॉन्च करने वाला भारत इकलौता देश है। भारतीय वैज्ञानिकों की यह ऐसी उपलब्धि है जिसे आज तक कोई पार नहीं कर सका है। क्या इन उपलब्धियों की चर्चा नहीं होनी चाहिए थी? क्या हमारे वैज्ञानिक इसके हकदार नहीं हैं कि उनके साथ उनका प्रधानमंत्री बैठ कर उनकी उपलब्धियों को देश दुनिया को बताए।
ज्ञान देने वाले लोगों ने इस देश व्यापी इवेंट में प्रधानमंत्री की मौजूदगी पर कुतर्क देना शुरू किया है। पर हमें इस बात पर गर्व करना चाहिए कि हमारे प्रधानमंत्री अगर सेना के सर्जिकल स्ट्राइक में भी रात भर जागकर हर एक पल पर नजर रख सकते हैं तो अपने वैज्ञानिकों के साथ रात भर जागकर उनके सुख दुख, उपलब्धियों और नाकामयाबियों में भी खड़ा रह सकते हैं। शर्म आनी चाहिए उन्हें जो प्रधानमंत्री की उपस्थिति को इस मिशन की असफलता के साथ जोड़ रहे हैं। इस तरह का पहला प्रयोग नासा ने किया था कि अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि जागृत करने के लिए वहां के स्पेस सेंटर से लॉन्च होने तमाम अभियानों को लाइव देखने के लिए लोगों को आमंत्रित किया जाए। हाल ही में भारत में इसरो ने भी ऐसी ही व्यवस्था की। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में एक बड़ा स्टेडियम तैयार किया गया है जहां से हमारे देश के बच्चे और अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि रखने वाले लोग लाइव देख सकें। चंद्रयान की लॉन्चिंग को देखने के लिए भी करीब दो हजार लोगों को आमंत्रित किया गया था। आने वाले दिनों में इसकी क्षमता और बढ़ाई जाएगी। यह प्रयास सिर्फ इसलिए है कि हमारा देश भी विज्ञान को नजदीक से समझें। बच्चों में अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति रुचि जगे। किसी के वहां बैठने या पहुंचने से वैज्ञानिकों पर कोई असर नहीं होता है। सबकुछ कंप्यूटरीकृत होता है। कंप्यूटर गेम या रिमोट कार की तरह इसे आॅपरेट नहीं किया जाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो सेंटर में वैज्ञानिकों को हौसला न खोने की सलाह दी और उनकी पीठ थपथपाई। यह मिशन बेशक सफलता के इतने करीब पहुंचकर चूक गया हो, लेकिन पूरा देश इसरो और हमारे वैज्ञानिकों के जज्बे को सलाम कर रहा है। प्रधानमंत्री के सामने इसरो प्रमुख डॉ. के सिवान अपने आंसू रोक नहीं पाए। उन्हें रोता देख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें गले लगाकर उनकी पीठ थपथपाई और ढाढस दिया। इस क्षण के गवाह बने बंगलूरू के पुलिस कमिश्नर भास्कर राव प्रधानमंत्री मोदी की नेतृत्व क्षमता के मुरीद हो गए। भास्कर राव ने इस घटना को ट्विटर पर शेयर किया। उन्होंने लिखा है कि पुलिस कमिशनर होने के नाते, मैं उस पल का गवाह बना जब प्रधानमंत्री दुखी डॉ. सिवन को ढाढस बंधा रहे थे, बेहतरीन नेतृत्व, संकट के समय शांत बने रहना, वैज्ञानिक समुदाय में फिर विश्वास लाना और देश की प्रगति के लिए आशा का निर्माण करना… मैंने आज बेहद अनमोल सबक सीखा…। इसीलिए मैंने मंथन की शुुरुआत में लिखा है ऐसी तस्वीरों को सहेजने की जरूरत है, क्योंकि हर व्यक्ति अपने घर में, परिवार में, समाज में किसी न किसी तरीके से लीडर है। एक लीडर को अपने सहयोगियों के साथ किस तरह खड़ा रहना चाहिए यह तस्वीर इस बात की ऐतिहासिक गवाह है।
(लेखक आज समाज के संपादक हैं )
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