पुत्र की सुरक्षा तथा दीर्घायु की कामना से श्री गणेश संकट चौथ का पर्व माघ माह की कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन गणेश जी का पूजन किया जाता है। इस व्रत से संकट व दुख दूर रहते हैं और इच्छाएं व मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। महिलाएं निर्जल व्रत रखकर सायंकाल फलाहार लेती हैं और दूसरे दिन प्रातः सकठ माता पर चढ़ाए गए पकवानों को प्रसाद के रुप में ग्रहण करती हैं और वितरित करती हैं। तिल को भून कर गुड़ के साथ कूट कर पहाड़ बनाया जाता है। पूजा के बाद सब कथा सुनते हैं।
चंद्र दर्शन का समय
पूजा विधि-
31 जनवरी रविवार को संकष्टी चतुर्थी में चंद्रोदय 8 बजकर 40 मिनट पर होगा. इस कारण सकट चतुर्थी रविवार को मनाई जाएगीण् चतुर्थी तिथि रविवार को शाम 8 बजकर 24 मिनट से आरंभ होकर अगले दिन यानि 1 फरवरी को शाम 6 बजकर 24 मिनट तक रहेगीण् ऐसे में चंद्रोदय की स्थिति 31 जनवरी को ही बनेगी.
संकल्प के लिए हाथ में तिल तथा जल लेकर यह मंत्र बोलें- गणपति प्रीतये संकष्ट चतुर्थी व्रत करिश्ये । चंद्रोदय पर गणेश जी की प्रतिमा पर गुड़ तिल के लडडुओं का भेगा लगाएं व चंद्र का पूजन करें। ओम् सोम सोमाय नमः मंत्र से चंद्र को अर्ध्य दें। इस व्रत से संकट दूर होते हैं।
चन्द्रोदय : रात्रि 08 बजकर 27 मिनट है
चतुर्थी तिथि :31 जनवरी 2021 को रात्रि 08 बजकर 24 मिनट से शुरू
1 फरवरी 2021 को शाम 06 बजकर 24 मिनट पर समाप्त
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करें।
उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
एक चौकी लें उसे गंगाजल से उसे शुद्ध करें।
चौकी पर साफ पीला कपड़ा बिछाएं।
चौकी पर गणेश जी की मूर्ति को विराजमान करें।
भगवान गणपति के सामने धूप-दीप प्रज्वलित करें।
उसके बाद तिलक करें।
भगवान गणेश को पीले-फूल की माला अर्पित करें।
भगवान गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें।
गणेश जी को बेसन के लड्डू का भोग लगाएं।
गणेश जी की आरती करें।
शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत को पूरा करें।
व्रत कथा-
प्राचीन काल में एक कुम्हार का बर्तन बनाकर आवां अर्थात अग्नि की भट्ठी नहीं पकती थी। उसने राजा के पुरोहित से कारण पूछा तो उसने कहा कि यदि आवां में एक बच्चे की बलि देंगे तो वह पक जाएगा। राजा का आदेष हुआ और हर परिवार से एक बच्चे को ले जाया जाने लगा। एक वृद्धा के एकमात्र पुत्र की बारी आई तो वह घबरा गई कि सकठ के दिन उसे पुत्र वियोग सहना पड़ेगा। वृद्धा को एक उपाय सूझा। उसने सकठ की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर पुत्र से कहा कि वह भगवान का नाम लेकर आवां में बैठ जाना। सकठ माता रक्षा करेंगी। माता श्री ने सकठ माता की आराधना की और कुम्हार की भटठी एक रात में ही पक गई तथा उसका पुत्र भी जीवित और सुरक्षित आ गया। तब से आज तक माता सकठ की पूजा एवं व्रत का विधान चला आ रहा है।
वर्तमान में यह व्रत पुत्र की हर प्रकार से रक्षा व दीर्घायु के लिए रखा जाता है। आधुनिक समय में यह पर्व पुत्र रक्षा हेतु एक सांकेतिक व प्रतीकात्मक पर्व है। और प्राचीन काल हो या आधुनिक युग ? पुत्र की सुरक्षा कौन माता नहीं चाहेगी?
स्नानागार में थीं, शिव जी को गणेश जी ने घर में प्रवेश से रोका, इस पर भोलेनाथ और गणेश जी में भयंकर युद्ध हुआ. क्रोध में शिवजी ने त्रिशूल से बाल गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया. गणेश की चीत्कार से पार्वती बाहर आईं और सारा दृश्य देखकर दुःखी हो गईं. शिव जी से पुत्र को जीवित करने का आग्रह करने लगीं. इस पर नंदी ने एक दूसरे उलट दिशा में सो रहे हथिनी के शिशु के सिर को लाकर शिवजी को दिया. हाथी के शिशु के सर को गणेश जी के धड़ से लगाकर शिवजी ने उन्हें जीवित किया.
मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिषाचार्य, 098156-19620