Kedarnath By-Election: धामी,भट्ट और बलूनी की प्रतिष्ठा दांव पर

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Kedarnath By-Election: धामी,भट्ट और बलूनी की प्रतिष्ठा दांव पर
Kedarnath By-Election: धामी,भट्ट और बलूनी की प्रतिष्ठा दांव पर

Uttarakhand By- Elections News, अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: उत्तराखंड की केदारनाथ सीट पर हो रहा उप चुनाव बीजेपी के लिहाज से खासा महत्वपूर्ण माना जा रहा है। क्योंकि केदारनाथ धाम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीधी आस्था जुड़ी हुई है। दूसरा केदारनाथ की सीट सनातन धर्म की प्रतीक भी है। ऐसे में बीजेपी इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत लगाए हुए है।

प्रदेश के नेताओं के लिए चुनाव मरण जीवन वाला बन चुका है, क्योंकि बीजेपी को पिछली बार उत्तराखंड में ही एक अन्य सनातन धर्म की आस्था से जुड़ी बद्रीनाथ सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। इस सीट पर जुलाई में उप चुनाव हुआ था जिसमें बीजेपी को कांग्रेस ने हरा दिया था। यही नहीं इससे पूर्व लोकसभा चुनावों में बीजेपी हिन्दू आस्था वाली अयोध्या जैसी सीट भी नहीं जीत पाई थी। इन हार से बीजेपी को बड़ा झटका लगा था। विपक्ष ने मुद्दा बना बीजेपी को निशाने पर ले लिया था।

हालांकि चार माह बाद हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनाव परिणामों ने बाजी पलट दी। बीजेपी ने हरियाणा में जहां तीसरी बार सरकार बनाई वहीं जम्मू कश्मीर में अच्छा प्रदर्शन किया। यहां पर हिंदू आस्था से जुड़ी वैष्णो देवी सीट जीतने बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे को फिर ताकत मिली है। लेकिन केदारनाथ के चुनाव का अपना अलग महत्व है। यहां की जीत का अलग संदेश जायेगा। बीजेपी के लिए जीत इसलिए भी जरूरी है कि क्योंकि हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण धाम बद्रीनाथ वाली सीट पर उसे हार मिल चुकी है।

पार्टी ने उस हार से सबक ले इस बार संगठन को महत्व देते हुए संगठन में सक्रिय प्रदेश महिला मोर्चे की आशा नौटियाल को मैदान में उतारा है।कांग्रेस ने पूर्व विधायक मनोज रावत को मौका दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के साथ सांसद अनिल बलूनी की भी इस सीट से प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है।बद्रीनाथ की हार ने तीनों नेताओं पर सवाल खड़े किए थे। मुख्यमंत्री धामी और भट्ट के नेतृत्व में पार्टी जुलाई में हुए उपचुनाव में बद्रीनाथ के साथ मंगलोर की सीट भी हारी थी।

Member of Parliament Anil Baluni

हालांकि मंगलोर की सीट बीएसपी के विधायक के निधन से खाली हुई थी। मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर बीजेपी के लिए जीत मुश्किल थी।लेकिन बद्रीनाथ की हार से बीजेपी को बड़ा झटका लगा। क्योंकि बीजेपी ने अपने विधायकों की संख्या बढ़ाने के लिए कांग्रेस के विधायक राजेंद्र भंडारी में सेंध लगा उन्हें अपने साथ शामिल किया था।भंडारी के इस्तीफे के चलते उप चुनाव हुआ था। बीजेपी ने भंडारी को ही अपना उम्मीदवार बनाया था,लेकिन कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला ने उन्हें हरा दिया।

इस हार से दिल्ली भी सकते में आ गई।क्योंकि अयोध्या के बाद बद्रीनाथ की हार से हिंदुत्व के मुद्दे पर भी सवाल उठने लगे थे।हार की वजह प्रदेश नेताओं का चुनाव को हल्के में लेना और कांग्रेस से आए भंडारी को टिकट देना बना बताया जाता है।इसके साथ भंडारी को बीजेपी में लाने का आपरेशन सांसद बलूनी ने गोपनीय तरीके से किया था,इसका पता प्रदेश के नेताओं को बाद में चला।इससे बीजेपी में खींचतान बढ़ी थी। जनता ने तोड़फोड़ की राजनीति पसंद नहीं किया।

केदारनाथ की सीट पर बीजेपी विधायक शैलारानी रावत के निधन के चलते चुनाव हो रहा है।दोनों दल इस सीट पर गुटबाजी से जूझ रहे हैं।शैलारानी कांग्रेसी थी।विधानसभा चुनाव से पूर्व वह बीजेपी में आई थी।उनके निधन के बाद उनकी बेटी ऐश्वर्या रावत इस सीट पर दावेदारी कर रही थी।उन्होंने वहां पर बकायदा यात्रा भी निकाली।उम्मीद थी बीजेपी सहानुभूति के लिए उन्हें टिकट देगी। लेकिन पार्टी ने अपनी पुरानी कार्यकर्ता आशा नौटियाल को टिकट दे चौंका दिया।कांग्रेस की तरफ से पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत कोशिश में थे। लेकिन गुटबाजी के चलते वह पिछड़ गए और पूर्व विधायक मनोज रावत टिकट पाने में सफल रहे।

बीजेपी में ऊपरी तौर पर उतनी गुटबाजी नहीं है जितनी की कांग्रेस में।बीजेपी को अपने नाराज दावेदारों को लेकर ही चिंता है।कांग्रेस में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल, हरीश रावत,प्रदेश अध्यक्ष करण मेहरा तमाम गुट हैं।प्रदेश नेताओं को ही हार जीत का श्रेय मिलेगा।बीजेपी में मुख्यमंत्री धामी,प्रदेश अध्यक्ष भट्ट, सांसद बलूनी से लेकर प्रदेश की पूरी बीजेपी केदारनाथ की सीट पर ताकत लगाए हुए है।

प्रदेश बीजेपी के नेता जानते है कि केदारनाथ की हार को आलाकमान बहुत गंभीरता से लेगा।इसका खामियाजा कई दिग्गज भुगतेंगे।क्योंकि विपक्ष को प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ बड़ा मुद्दा मिल जाएगा।केदारनाथ में ध्रुवीकरण की राजनीति का कोई मतलब नहीं है क्योंकि वहां पर अगड़ी जातियों का बर्चस्व है।बीजेपी राहुल गांधी की पिछड़ों की राजनीति को मुद्दा बना जरूर कांग्रेस को मुश्किल में डाल सकती है।हालांकि राज्य सरकार तमाम घोषणाएं कर वोटरों को राजी करने का जतन भी कर रही है।

दूसरी तरफ कांग्रेस शैलारानी की बेटी को टिकट न दिए जाने को मुद्दा बना सहानुभुति का कार्ड खेल रही है।इसके साथ चार धाम यात्रा के दौरान अव्यवस्था को भी कांग्रेस ने मुद्दा बनाया हुआ है।20 नवंबर को केदारनाथ सीट पर वोटिंग होगी।परिणाम वाले दिन पता चलेगा बीजेपी अपनी सीट बचा पाई या कांग्रेस ने फिर चौंकाया।

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