Karnataka High Court : महाबलेश्वर का पुजारी वही होगा ज़िसके दादा-परदादा पुजारी रहें हों- कर्नाटक हाईकोर्ट

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कर्नाटक हाईकोर्ट
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Aaj Samaj (आज समाज), Karnataka High Court , नई दिल्ली :

7* शादी के एक दिन बाद ही कपल ने दाखिल की तलाक की याचीका, गुजरात हाई कोर्ट ने दाखिल की याचीका

गुजरात के सूरत से हैरान करने वाला मामला सामने आया है। कपल के शादी को केवल एक दिन हुए था लेकिन दोनों के बीच ऐसा कुछ हुआ कि थे लड़की मायके चली गई। उसके बाद से दोनों ने एक-दूसरे साथ न रहने पर अड़िग हो गए। इतना ही नही इस कपल को महज एक दिन की शादी को तोड़ने के लिए उन्हें एक बार पारिवारिक अदालत और दो बार गुजरात हाई कोर्ट में जाना पड़ा। हालांकि तमाम कोशिशों के बाद भी दोनों का तलाक मंजूर नहीं हुआ है। हालांकि कपल अब एक बार फिर फैमिली कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है। इससे पहले फैमिली कोर्ट ने उनका आवेदन खारिज कर दिया था क्योंकि उनकी शादी को एक साल भी नहीं हुए थे। फैमिली कोर्ट एक इस आदेश के खिलाफ कपल ने हाई कोर्ट में याचीका दाखिल की।

न्यायमूर्ति वी डी नानावती ने अपने फैसले में पारिवारिक अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और तलाक के मुकदमे को बहाल कर दिया। हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट को तलाक की अर्जी पर एक साल की अवधि पूरी होने के बाद फैसला करने का निर्देश दिया था।

हालांकि दंपति ने फैमिली कोर्ट से अनुरोध किया कि छह महीने की कूलिंग अवधि से छूट देकर उनकी तलाक याचिका पर विचार किया जाए। हालांकि, परिवार अदालत ने छूट पर विचार करने के लिए मामले को दो महीने के लिए स्थगित कर दिया था। जिसके बाद दंपति ने फिर हाईकोर्ट का रुख किया।

न्यायमूर्ति इलेश वोरा ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कपल के वकील को एक बार फिर परिवार अदालत का दरवाजा खटखटाने की सलाह दी, जो छह महीने की कूलिंग अवधि की छूट की अनुमति देता है।

दरअसल कपल आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते हैं। 12 फरवरी, 2022 को सूरत में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार दोनों ने शादी की थी। दोनों एक रात साथ रहे लेकिन अलग-अलग सोए। अगले ही दिन दुल्हन अपने पति को छोड़कर अपने माता-पिता के पास लौट आई। इस जोड़े ने अलग होने का फैसला किया और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन किया।

8*महाबलेश्वर का पुजारी वही होगा ज़िसके दादा-परदादा पुजारी रहें हों- कर्नाटक हाईकोर्ट*

बेंगलुरु के केआर पुरम में श्री महाबलेश्वरस्वामी मंदिर में पुजारी (आर्काक) के रूप में नियुक्ति के लिए दाखिल याचिका पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने फ़ैसला दिया है कि मंदिर का पुजारी वही नियुक्त हो सकता है जिसके दादा-परदादा भी मंदिर के पुजारी रहे हों। इस आदेश के साथ ही मंदिर के पुजारी नियुक्त किए जाने के लिए एम.एस. रवि दीक्षित और एम.एस. वेंकटेश दीक्षित की याचिका को हाईकोर्ट ने ख़ारिज कर दिया
इससे पहले मंदिर प्राधिरकरण ने तब इस आधार पर अभ्यावेदन को खारिज करने का आदेश पारित किया कि ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है जो यह इंगित करता हो कि याचिकाकर्ता की पिछली तीन पीढ़ियां मंदिर के पुजारी के कार्यों का निर्वहन कर रही थीं।

प्राधिकरण ने आगे स्पष्ट किया था कि चूंकि पुजारीत्व केवल याचिकाकर्ता के मातृ पक्ष पर पाया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं ने अधिवक्ता नारायण शर्मा के माध्यम से इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें यह स्थापित करने का पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया था कि उनका पुरोहितत्व वंशानुगत था और वे पुजारी के रूप में नियुक्त होने के हकदार थे।उन्होंने कहा कि उनके पिता को उनके नाना के बाद पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया था और इसलिए, वे इसके हकदार थे।

दूसरी ओर, अतिरिक्त सरकारी वकील डीएस शिवानंद ने अदालत को बताया कि चूंकि मंदिर के पुजारी का पता याचिकाकर्ताओं के मातृ पक्ष में लगाया गया था, इसलिए उन्हें पुजारी के रूप में नियुक्ति के लिए विचार नहीं किया जा सकता है।

अदालत ने पहले कहा कि चुनौती के तहत आदेश से पता चला कि याचिकाकर्ताओं को सुना गया था।
गुण-दोष पर, अदालत ने कहा कि वंशानुगत पुरोहिताई के दावे को साबित करने के लिए, याचिकाकर्ताओं के पूर्वजों के लिए, उनके पैतृक परदादा तक, मंदिर में पुजारी का पद धारण करना अनिवार्य था।

अदालत ने कहा, ‘यह विवाद में नहीं है कि वंशानुगत आर्ककशिप का दावा करने के लिए, यह आवश्यक होगा कि न केवल याचिकाकर्ताओं के पिता, बल्कि उनके दादा और परदादा को भी श्री महाबलेश्वरस्वामी मंदिर में अर्चक की भूमिका निभानी चाहिए थी.’
चूंकि केवल याचिकाकर्ताओं के पिता ने पुजारी की भूमिका निभाई थी, इसलिए अदालत ने फैसला सुनाया कि वे वंशानुगत पुरोहिती का दावा नहीं कर सकते हैं और परिणामस्वरूप, याचिका को खारिज कर दिया।

9* कलकत्ता उच्च न्यायालय से पेगासस सहित दूसरे सॉफ्टवेयर को राहत,गोपनियता भंग करने के आरोप लगाने वाली याचिका खारिज,

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दायर उस जनहित याचिका (पीआईल) , पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें पेगासस जैसे उपकरण और स्पाईवेयर पर नागरिको की गोपनीयता पर हमला करने का आरोप लगाया गया था। याचिकाकर्ता सुजीत कुमार दत्ता द्वारा दायर जनहित याचिका पर आदालत सुनवाई कर रही थी।

याचिका मे आरोप लगाया था की राज्य के अधिकारी अवैध रूप से नागरिको की गोपनीयता पर हमला कर रहे हैं।
याचिका मे ये भी कहां गया कि नागरिको की गोपनियता में दखल देने के लिए अधिकारी पेगासस और इसी तरह के अन्य आधुनिक सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिससे उनके जीवन कि स्वतंत्रता का अधिकार और गोपनियता के अधिकारो

का उलंघन हो रहा था ऐसे में न्यायालय को इसमे हस्तक्षेप करना चाहिए। मामले की सुनवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम और हिरणमय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने कहा “की याचिका अस्पष्ट हैं,
इसलिए हम याचिका पर विचार करना उचित नहीं समझते हैं। हालांकि, हम याचिकाकर्ता को उपयुक्त अधिकारियों के समक्ष
ज्ञापन देने की स्वतंत्रता देते हैं, यदि उसकी व्यक्तिगत गोपनीयता पर हमला किया जाता है तो… उच्च न्यायालय ने यह भी कहां
जितनी भी याचिका में शिकायत दर्ज कराई गई है, वह पूरी तरह से अस्पष्ट हैं और इसमे आशंका को साबित करने के लिए कोई प्रुफ नहीं है, यह कहते हुए उच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया….

10*दाऊद से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दोषी सरदार खान को मुंबई की अदालत ने दे दी जमानत, मगर नहीं होगी रिहाई*

1993 के मुंबई बम धमाकों के मामले में दोषी ठहराए गए सरदार खान को मंगलवार को भगोड़े अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम और उसके सहयोगियों से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में एक विशेष अदालत ने जमानत दे दी।
महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और एनसीपी नेता नवाब मलिक भी मनी लॉन्ड्रिंग मामले के प्रमुख आरोपियों में से एक हैं।
धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामलों की सुनवाई  कर रहे विशेष न्यायाधीश आरएन रोकाडे ने सरदार खान को जमानत दी।सरदार खान को  जमानत 2,00,000 रुपये के निजी मुचलके पर मंजूर की गई।
ऐसा बताया जाता है कि सरदार खान, औरंगाबाद में केंद्रीय कारागार से फिल्हाल रिहा नहीं हो सकता क्योंकि वह बम विस्फोट मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है।प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अनुसार, सरदार खान ने मलिक को दाऊद की बहन हसीना पारकर के साथ सौदा करने में मदद की थी।

दाउद इब्राहीम की बहन हसीना पार्कर के मुख्य आरोपी मलिक को ईडी ने पिछले साल फरवरी में गिरफ्तार किया था। वह न्यायिक हिरासत में है और फिलहाल यहां एक निजी अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है।राकांपा के वरिष्ठ नेता और हसीना पार्कर मदद के आरोपी  की जमानत अर्जी बंबई उच्च न्यायालय में लंबित है। उन्हें विशेष पीएमएलए अदालत ने पहले जमानत से वंचित कर दिया था।

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