Aaj Samaj, (आज समाज),karnataka court ,नई दिल्ली:
8. PM Modi के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में वकीलों का हंगामा, कोर्ट परिसर स्थांतरित करने पर जताया विरोध*
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में वकील ने जिला प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और कोर्ट की कार्यवाही को बंद रखा। वकीलों का आरोप है कि जिला प्रशासन अब न्यायालय को कचहरी के बजाय संदहा में शिफ्ट किया जा रहा है। वकीलों ने कहा कि कचहरी को इस तरह से कहीं और शिफ्ट नहीं किया जा सकता।
बताया जा रहा है कि जिला प्रशासन द्वारा गाजीपुर-चौबेपुर मार्ग पर 20.59 हेक्टेयर जमीन चिह्नित की हुई है और जिला न्यायालय को शहर से बाहर शिफ्ट कर दिया जाएगा। यहां पर कोर्ट की नई बिल्डिंग योजनाबद्ध तरीके से बनाई जाएगी।
इस पर वकीलों ने आरोप लगाया कि उनके परिसर से सटे हुए बनारस क्लब को अवैध रूप से बनाया गया है। उस क्लब की भूमि को अधिग्रहित करके जिला प्रशासन वाराणसी कचहरी का विस्तार किया जाए न कि उनकी कचहरी को शहर से बाहर शिफ्ट करें। अगर ऐसा होता है तो सभी वकीलों को मुसीबत का सामना करना पड़ेगा।
सोमवार को वाराणसी के सभी वकीलों ने कार्य का बहिष्कार किया, जिसकी वजह से पूरी न्यायिक प्रक्रिया सोमवार को ठप रही। वकीलों ने चेतावनी दी कि है अगर जिला प्रशासन अपने फैसले को वापस नहीं लेता है तो वह अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाएंगे।
केंद्र बार एसोसिएशन बनारस द्वारा वाराणसी जिला जज को भी एक लेटर लिखा। जिसमें कहा गया कि केंद्र बार एसोसिएशन बनारस की आपात बैठक बुलाकर इस मसले पर चर्चा की।
9.बाल यौन उत्पीड़न के आरोपों की सुनवाई करने वाले जजों का दिल संवेदनशील और दिमाग सतर्क होना चाहिए
दिल्ली हाईकोर्ट कहा है कि बाल यौन उत्पीड़न के मामलों में सुनवाई करते समय न्यायाधीशों के पास “संवेदनशील दिल” और “सतर्क दिमाग” दोनों होने चाहिए। अदालत ने कहा, “ बुनियादी ढांचा और सुविधाएं राज्य द्वारा प्रदान की जा सकती हैं, सहानुभूति, सतर्कता और सावधानी न्यायाधीश की व्यक्तिगत जिम्मेदारी है।” अदालत ने 2008 में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी की याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायालय ने यह टिप्पणी की।
दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने बाल यौन उत्पीड़न मामलों में न्यायाधीशों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है। अदालत का कहना है कि एक न्यायाधीश की संवेदनशीलता बाहरी रूप से उत्पन्न नहीं की जा सकती है, लेकिन देश के नागरिकों की सेवा करने के लिए उनके कर्तव्य के हिस्से के रूप में विकसित की जानी चाहिए। ” हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी संजीव कुमार नाम के आरोपी की अपील याचिका की सुनवाई के दौरान की। संजीव कुमार को साल 2008 में एक 12 वर्षीय लड़की से बलात्कार का दोषी ठहरा कर सजा सुना दी गई थी।
संजीव कुमार ने निचली अदालत के आदेश खिलाफ अपील दायर की और अब आकर उसका फैसला आया। अदालत ने इस संबंध में पीड़िता द्वारा दिए गए कई विरोधाभासी बयानों का हवाला देते हुए संजीव कुमार की दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया।
अदालत ने बचाव पक्ष के विटनेस के तौर पर मकाउंसलर की गोपनीय रिपोर्ट को शामिल करने से इंकार कर दिया, क्योंकि इससे बाल पीड़िता की निजता का उल्लंघन हुआ। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य उचित संदेह से परे और अपराध सिद्ध करने के लिए अपर्याप्त थे। यौन उत्पीड़न के मामलों में न्यायाधीशों द्वारा संवेदनशील और सतर्क दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
10.*राहुल गांधी के खिलाफ अब कर्नाटक की अदालत में मानहानि का आपराधिक मामला दर्ज*
कर्नाटक में मतदान से कुछ घण्टे पहले बीजेपी ने एक बार फिर अदालत का दरवाजा खटखटाया है और और राहुल गांधी समेत कांग्रेस पार्टी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज करवाया है। हालांकि का कांग्रेस ने भी चुनाव आयोग से भारतीय जनता पार्टी की शिकायत की है।
बीजेपी के प्रदेश सचिव केशव प्रसाद ने बताया कि कांग्रेस पार्टी ने बीती पांच मई को अखबारों में जो विज्ञापन दिया था, उसके खिलाफ हमने शिकायत दर्ज कराई थी। भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि विज्ञापन से भारतीय जनता पार्टी की छवि धूमिल हुई है, इसलिए हमने कांग्रेस पार्टी को नोटिस भेजा है। शिकायत के बाद चुनाव आयोग ने भी कांग्रेस पार्टी को नोटिस भेजा था लेकिन अभी तक कांग्रेस ने इस मामले में कुछ नहीं किया है इसलिए अब हमने उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज कराया है। राहुल गांधी ने उस विज्ञापन को ट्वीट किया था, इसलिए राहुल गांधी को इस मामले में पार्टी बनाया गया है।
वहीं कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष रामालिंगा रेड्डी ने बताया कि हमने चुनाव आयोग से शिकायत की है और जयानगर में निष्पक्ष चुनाव कराने की मांग की है। कांग्रेस नेता ने कहा कि दो-तीन दिन से सभी बुरे तत्व जयानगर इलाके में हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवार सीके रामामूर्ति विधानसभा में गरीब लोगों को धमका रहे हैं। बेंगलुरु के आधे दबंग लोग जयानगर इलाके में रहते हैं।
दरअसल कांग्रेस ने प्रदेश के अखबारों में एक विज्ञापन दिया था, जिसमें भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए ‘भ्रष्टाचार रेट कार्ड’ लिखा गया था। इस पर भारतीय जनता पार्टी ने आपत्ति जताते हुए इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की थी। चुनाव आयोग ने इसे लेकर कांग्रेस की प्रदेश ईकाई को नोटिस भी जारी किया था। इसके बाद चुनाव आयोग ने एक एडवाइजरी भी जारी की थी, जिसमें चुनाव के दिन या चुनाव से एक दिन पहले अखबारों में कोई भी विज्ञापन प्रकाशित करवाने पर रोक लगा दी थी।
11*गुजरात के बर्खास्त आईपीएस ने सुप्रीम कोर्ट से कहा जस्टिस एमआर शाह को उसकी याचिका पर सुनवाई से अलग किया जाए*
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की उस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें न्यायमूर्ति एमआर शाह को उनके मामले की सुनवाई से अलग करने की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की एक पीठ भट्ट की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें 1990 के हिरासत में मौत के मामले में उनकी सजा को चुनौती देने वाली गुजरात उच्च न्यायालय में दायर आपराधिक अपील में अतिरिक्त सबूत जोड़ने की मांग की गई थी। 15 मई को सेवानिवृत्त हो रहे न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि सुनवाई से खुद को अलग करने का आदेश कल सुनाया जाएगा।
भट्ट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने न्यायमूर्ति शाह से इस तथ्य पर विचार करते हुए सुनवाई से खुद को अलग करने का अनुरोध किया कि उन्होंने गुजरात उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के रूप में एक ही प्राथमिकी से उत्पन्न उनकी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए भट्ट के खिलाफ कड़ी निंदा की थी। कामत ने कहा कि परीक्षण यह नहीं है कि न्यायाधीश वास्तव में पक्षपाती है या नहीं बल्कि यह है कि क्या पार्टी के मन में उचित आशंका है कि पूर्वाग्रह की संभावना है।
कामत ने भट्ट के खिलाफ न्यायमूर्ति शाह द्वारा पारित आदेशों का हवाला देते हुए कहा, “न्याय न केवल किया जाना है, बल्कि होता हुआ दिखना भी है…न्यायिक औचित्य की मांग होगी कि आपका आधिपत्य (जे. शाह) इस मामले की सुनवाई न करे।” कामत ने खंडपीठ में न्यायमूर्ति शाह के सहयोगी, न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार को इस आधार पर एसएनसी-लवलिन मामले की सुनवाई से अलग कर दिया था कि उन्होंने इस मामले को केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में निपटाया था।
कामत ने कहा कि गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति शाह ने देखा था कि भट्ट अपनी डिस्चार्ज याचिका से निपटने के दौरान मुकदमे में देरी करने का प्रयास कर रहे थे। वर्तमान मामले में भी, जहां भट्ट अतिरिक्त सबूत पेश करने की मांग कर रहे हैं, आरोप यह है कि वह सुनवाई में देरी करने का प्रयास कर रहे हैं।
गुजरात राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने सुनवाई से अलग होने की याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि भट्ट के कई अन्य मामलों को न्यायमूर्ति शाह ने निपटाया है और उनमें से किसी भी मामले में सुनवाई से खुद को अलग करने का अनुरोध नहीं किया गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि कोई चुनिंदा तरीके से सुनवाई से अलग नहीं हो सकता।
12.’द केरल स्टोरी’ फ़िल्म के निर्माता ने सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल की याचीका, पश्चिम बंगाल में फिल्म पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग की
‘द केरल स्टोरी’ के निर्माता ने पश्चिम बंगाल में फिल्म पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को याचीका दाखिल की है। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा द केरल स्टोरी फ़िल्म पर बैन लगाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनोती दी है।
दरअसल पश्चिम बंगाल सरकार ने सोमवार को ‘द केरल स्टोरी’ फ़िल्म पर प्रतिबंध लगा दिया है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को राज्य सचिवालय में यह घोषणा की। ममता बनर्जी के आरोप लगाते हुए कहा कि “बीजेपी कश्मीर फाइल्स की तर्ज पर बंगाल में एक फिल्म की फंडिंग कर रही थी।” बंगाल के मुख्यमंत्री ने राज्य के मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया है कि फिल्म को राज्य में चल रहे स्क्रीन से हटा दिया जाए। ममता बनर्जी ने कहा कि निर्णय “बंगाल में शांति बनाए रखने” और घृणा अपराधों और हिंसा को रोकने के लिए किया गया है।
वही तमिलनाडु में थियेटर मालिकों ने ‘द केरला स्टोरी’ की स्क्रीनिंग नहीं करने का फैसला लिया है। कई ऑनलाइन टिकट बुकिंग प्लेटफॉर्म ने पहले ही इसे चेन्नई में लिस्टिंग से हटा दिया है। थिएटर मालिकों ने मीडिया को बयान में कहा कि फिल्म के प्रदर्शन से मल्टीप्लेक्स में दूसरी फिल्मों पर असर पड़ सकता है। थिएटर ओनर्स एसोसिएशन के एक वरिष्ठ सदस्य ने लीगली स्पकिंग को बताया कि कानून और व्यवस्था की चिंताओं के कारण हमलोगों ने यह कदम उठाया है।मल्टीप्लेक्स में दिखाई जाने वाली अन्य फिल्में को भी इससे नुकसान होता जिस कारण यह फैसला लिया गया है।
द केरला स्टोरी’ फिल्म केरल में कथित धार्मिक धर्मांतरण के बारे में है और कैसे चरमपंथी इस्लामी मौलवी हिंदू और ईसाई महिलाओं को निशाना बना रहे हैं। फिल्म के अनुसार, इन महिलाओं को इस्लाम में परिवर्तित किया गया और फिर अफगानिस्तान, यमन और सीरिया जैसे देशों में स्थानांतरित कर दिया गया।
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