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दिव्यांगता को ताकत बना बढ़ाये कदम किया मुकाम हासिल

इशिका ठाकुर, Karnal News : लक्ष्य को हासिल करने के लिए जो हौंसलों से उड़ान भरते हैं, वहीं मंजिल तक पहुंचे हैं, चाहे वह दिव्यांग ही क्यों न हो। ऐसा कर दिखाया है करनाल के गांव शेरगढ़ टापू निवासी सतीश कुमार ने, जो एक टांग से चल फिर नहीं सकते। इसके बावजूद भी उन्होंने कड़ी मेहनत की और अब वह इंडियन स्पेस रिसर्च आग्रेनाइजेशन (इसरो) में साइंटिस्ट बन चुके हैं।

उन्हें ज्वाइन लेटर भी मिल चुका है। ऐसा कर सतीश कुमार ने दिव्यांग लोगों के लिए एक मिसाल पेश की है, दिव्यांगता को अपनी कमजोरी न समझे बल्कि उसे अपनी ताकत बनाकर आगे बढ़ें। सतीश कुमार ने 2020 में इसरो में साइंटिस्ट पद के लिए परीक्षा दी थी, 2021 में उस परीक्षा का परिणाम आया था और इंटरव्यू हुआ था। अब 2022 में उन्हें जॉइनिंग लेटर मिला है।

दिव्यांग सतीश कुमार ने बताया

Karnal News Steps taken to make Disability a Strength

दिव्यांग सतीश कुमार ने बताया कि पांचवीं कक्षा उसने गांव के स्कूल में की। इसके बाद हाई स्कूल में जाना था तो स्कूल गांव से दूर था, जहां जाने में वह असमर्थ था, इस कारण उसके माता पिता ने उसे मामा के घर भेज दिया तो वहां वह 12वीं कक्षा तक पढ़ा। इसके बाद उसने जगाधरी इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई की ओर कंप्यूटर का डिप्लोमा भी किया। इसी दौरान उनकी प्रोफेसर अनुभुती बंसल इसरो में साइंटिस्ट के लिए तैयारी कर रही थी तो उन्हीं से उसे प्रेरणा मिली और फिर उसने भी इसकी तैयारी शुरू कर दी।

नौकरी छुटने पर कोरोना काल में की कड़ी मेहनत

दिव्यांग सतीश कुमार ने बताया कि प्राइवेट नौकरी करता था। कोरोना काल में उसकी वह नौकरी भी चली गई। इस कारण उसने कोरोना काल में करनाल शहर में किराए पर कमरा लिया और साइंटिस्ट बनने के लिए दिन रात तैयारी की। इसके बाद ही उसका चयन इसरो में हुआ। सतीश कुमार का कहना है कि कोरोना काल में उसे पढ़ाई करने का अच्छा मौका मिला, क्योंकि उस दौरान लॉकडाउन लगा था और घर से बाहर भी नहीं निकल सकते थे। ऐसे में उसने पूरा दिन घर रहकर पढ़ाई की।

इस बार था अंतिम समय, माता पिता का किया सपना साकार

Karnal News Steps taken to make Disability a Strength

सतीश कुमार ने बताया कि उसके माता पिता का सपना था कि उसके बेटे सरकारी अधिकारी लगे। उसका बड़ा भाई को सरकारी अधिकारी बन नहीं सका, इस कारण उसने अपने माता पिता के सपने को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत की। इतना ही नहीं यह उसका अंतिम समय था क्योंकि साइंटिस्ट के लिए 35 उम्र तक ही फॉर्म भर सकते हैं, जिस दौरान उसने फार्म भरा था उस दौरान उसकी उम्र 35 वर्ष थी। वह परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होता तो वह दोबारा फार्म नहीं भर सकता था।

Neelima Sargodha

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