मातृभाषा को मिले मातृभूमि और मां जैसा सम्मान: डॉ. चौहान

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Respect for Mother Tongue
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आज समाज डिजिटल, Karnal News: जैसे मां और मातृभूमि के सम्मान के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता, वही अपनापन और सम्मान का भाव अपनी मातृभाषा के प्रति भी होना चाहिए। आजादी के बाद जिन लोगों ने देश की बागडोर संभाली, दुर्भाग्यवश वे अंग्रेजी के चक्रव्यूह में फंसे हुए थे। यही वजह है कि आज स्वाधीनता के 75वें साल में भी भारत में हिंदी सहित भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी के सामने अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है।

तकनीकी शिक्षा व भारतीय भाषाएं

हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष और निदेशक डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने स्वामी ब्रह्मानंद राजकीय पॉलिटेक्निक के विद्यार्थियों और शिक्षकों से संवाद के दौरान यह टिप्पणी की। ‘तकनीकी शिक्षा व भारतीय भाषाएं’ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में डॉ. चौहान ने भावी इंजीनियरों और उनके गुरुजनों के साथ विस्तार से मंथन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कॉलेज के प्राचार्य जेपी खीची ने की। डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि वर्तमान सरकार हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं का सम्मान बहाल करने के लिए हर संभव उपाय कर रही है। हरियाणा के तीन विश्वविद्यालयों में इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में करने का विकल्प उपलब्ध कराया जाना इस दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है।

पालीटेक्निक किताबें हिंदी में लिखवाने की वकालत

उन्होंने बताया कि हरियाणा ग्रंथ अकादमी पॉलिटेक्निक की किताबें हिंदी में लिखवाने के लिए हरियाणा तकनीकी शिक्षा बोर्ड के साथ मिलकर कार्य कर रही है। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने इस कार्य के लिए अकादमी को धनराशि उपलब्ध कराई है। ग्रंथ अकादमी उपाध्यक्ष ने कहा कि जब चीन, जर्मनी, फ्रांस और रूस जैसे देश अपनी भाषा में तकनीकी शिक्षा और विज्ञान का अध्ययन-अध्यापन कर सकते हैं तो भारत भी यह कार्य अपनी भाषाओं में बहुत पहले शुरू कर सकता था, लेकिन अंग्रेजी की गुलाम मानसिकता वाले नेतृत्व ने ऐसा नहीं होने दिया। वर्तमान सरकार में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद से लेकर प्राथमिक शिक्षा तक स्वदेशी भाषाओं को महत्व देने के लिए नीति और कार्यक्रम तैयार किए गए हैं।

विद्यार्थियों ने भी रखे अपने विचार

प्राचार्य ज्वाला प्रसाद ने सरकार के हिंदी भाषा को तकनीकी शिक्षा का माध्यम बनाए जाने के प्रयासों की सराहना की। इस काम में आने वाली चुनौतियों की भी चर्चा की। कार्यक्रम के संयोजक अशीत बजाज ने डॉ. चौहान का स्वागत किया। प्राध्यापक परमिंदर मान ने शिक्षकों का परिचय कराया। शिक्षकों में सतविंदर, बीनूँ, कंचन और सत्यवान ढाका ने भी इस विषय पर अपने विचार प्रकट किए। विद्यार्थियों में से हरप्रीत, अजीत और ज्योति आदि ने अपना पक्ष रखा।

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