इशिका ठाकुर, Karnal News:
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान ने गोबर से आकर्षक उत्पाद तैयार करने की पहल की है। संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार इसे जहां स्वरोजगार के रूप में अपनाया जा सकेगा, वहीं पर्यावरण संरक्षण को भी बल मिलेगा।
गोबर से मूर्तियों को भी देंगे रूप
गाय के गोबर को पहले से ही हम पूजा-पाठ और अन्य धार्मिक कार्यों में प्रयोग करते हैं, लेकिन अब इससे आकर्षक मूर्तियां और दीप बनाए जा सकेंगे। गाय की देसी नस्लें साहिवाल, थारपारकर और गिर के गोबर से निर्मित इन कलाकृतियों से पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा साथ ही मूर्ति को जल में विसर्जन करने पर पानी को नुकसान होने की वजह जलीय जीव वनस्पतियों को खाद के रूप में खुराक भी मिलेगी। इन वस्तुओं को इस्तेमाल के बाद गमलों में डालने पर यह पौधे को खुराक देंगे।
महिलाओं को दिया जाएगा प्रशिक्षण
संस्थान में इस विधि से कलाकृतियां बनाने के लिए महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा, जिससे कि वह स्वयं रोजगार से जुड़े और स्वावलबी बने। संस्थान के जलवायु प्रतिरोधी पशुधन अनुसंधान केंद्र के प्रभारी डॉ आशुतोष ने बताया कि कलाकृतियों को चूना, हल्दी व गेरू से रंगा गया है। इसके बॉक्स भी गत्ते से निर्मित है।
गोबर से निर्मित कलाकृतियों को विसर्जन करने पर 10 मिनट में खत्म हो जाएंगी जल में कोई नुकसान नहीं होगा। डॉ आशुतोष ने बताया कि इन उत्पादों को बनाने के लिए सांचे महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से लाए हैं। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य जलवायु परिवर्तन में आए बदलाव को रोकना तथा वेस्ट को उपयोगी बनाना है।
22000 क्विंटल मिट्टी से बनते हैं 11 करोड़ दीपक
उन्होंने बताया कि यदि दिवाली पर एक परिवार 11 दीपक जलाता है तो प्रति दीपक बनाने पर 20 ग्राम मिट्टी लगती है। 11 करोड़ दीपक के लिए 22000 क्विंटल मिट्टी लगती है। 1 क्विंटल मिट्टी को 900 डिग्री सेंटीग्रेड पर पकाने के लिए लकड़ी इंधन की मात्रा 553 किलोग्राम लगती है।
22000 क्विंटल मिट्टी को पकाने के लिए 1.21 लाख 660 क्विंटल इंधन की जरूरत पड़ती है, इससे हजारों पेड़ों की बलि चढ़ती है। इसके अलावा लकड़ी महंगी भी पड़ती है। क्विंटल लकड़ी जलाने पर 175 किलोग्राम कार्बन डाइआॅक्साइड का उत्सर्जन होता है। मिट्टी से बने दिए हजारों वर्ष मिट्टी में नष्ट नहीं होते हैं। वही गोबर निर्मत दिए के लिए उपजाऊ मिट्टी और इंधन लकड़ी की आवश्यकता नहीं पड़ती।
एनडीआरआई ने की सार्थक पहल : डा. रश्मि
प्रोजेक्ट की सहयोगी वैज्ञानिक डा. रश्मि शर्मा ने बताया कि एनडीआरआई ने गोबर के विभिन्न उत्पाद बनाने की पहल की है जो पर्यावरण और प्रकृति के अनुकूल है उन्होंने कहा कि केमिकल से बने और सैनिक सिंथेटिक पदार्थों से बने उत्पाद ना तो पानी में घुलनशील है और ना ही जल्दी नष्ट होते हैं जिसके कारण ना केवल वायु बल्कि जल्दी अशुद्ध होता है।
रश्मि शर्मा ने कहा कि इसके अलावा हम इस बात पर भी शोध कर रहे हैं कि हम जो पशुओं के लिए घर बनाते हैं वह सीमेंट ईटों वगैरह से बनते हैं जो न पशुओं के लिए अनुकूल होते है न ही पर्यावरण के लिए। उन्होंने कहा कि गोबर की ईंटों से बने घर इसके लिए सबसे उत्तम है। ऐसे में गोबर का इस्तेमाल अगर पशुओं के निवास बनाने में किया जाए तो पशु ज्यादा स्वस्थ रहेगा। उन्होंने कहा कि इससे ग्रामीण अंचल में रोजगार भी बढ़ेगा।
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