करनाल : शहीदों की शहादत की बदौलत आज हम खुली हवा में ले रहे  हैं सांस : निर्मल

0
324
Offering flowers to Udham Singh and paid tribute to him
Offering flowers to Udham Singh and paid tribute to him

प्रवीण वालिया, करनाल :

नगरपालिका इन्द्री के प्रांगण में आयोजित शहीद शिरोमणि उधम सिंह के शहीदी दिवस समारोह में सामाजिक, धार्मिक एवं सभी राजनीतिक दलों के लोगों ने शहीद उधम सिंह को पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्वाजंलि दी। समारोह में शहीद उधम सिंह समिति के प्रधान एमएस निर्मल ने कहा कि आज हम शहीद उधम सिंह व अन्य असंख्य शहीदों की शहादत की बदौलत खुली हवा में सांस ले रहे हैं। शहीदों जैसा ही देश प्रेम का जज्बा हर युवा के मन में होना चाहिए। शहीदों ने देश के इतिहास को अपने खून से लिखा है। अत: उनकी शहादत को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि शहीदों की चिताओं पर लगेगे हर वर्ष मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा। शहीद उधम सिंह समिति के अध्यक्ष एम.एस. निर्मल ने कहा कि शहीद उधम सिंह जिनका बचपन का नाम शेर सिंह था का जन्म  26 दिसम्बर 1899 को सुनाम में माता हरनाम कौर व पिता सरदार टहल सिंह के घर हुआ था। छोटी सी ही उम्र में ही इनके मामा पिता का देहांत हो गया और इन्हे अमृतसर के अनाथालय में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ी। शहीद उधम सिंह का जीवन संघर्षपूर्ण रहा है, जिसने देश के लिए अपने प्राणों की आहूति देकर लोगों को देश के प्रति के कुछ करने व सोचने की प्ररेणा दी। उधम सिंह अल्प आयु में ही अनाथ हो गए थे।

उन्होंने अमृतसर के अनाथ आश्रम में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ी। जब उधम सिंह ने जवानी की तरफ  कदम रखा तो 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में अंग्रेज हकूमत के गवर्नर माईकल ओयडवायर और जरनल डायर ने बैसाखी के पर्व के दौरान इकट्ठे हुए निर्दोष लोगों पर गोलियां चलवा दी। अंग्रेजों द्वारा निहत्थे लोगों की हत्या से उधम सिंह का खून खोल उठा और इस घटना के दोषियों को सजा देने का संकल्प लिया। इस संकल्प को पूरा करने के लिए शहीद उधम सिंह अंग्रेजों के देश इंग्लैंड में गए। उन्होंने बताया कि शहीद उधम सिंह दोनों हत्यारों की हत्या करने का इंतजार करीब बीस वर्ष तक करते रहे। उन्होंने बताया कि 13 मार्च 1940 को गवर्नर माईकल ओडवायर पर ताबड़तोड़ गोलियों की बरसात कर उसकी हत्या कर दी। उधम सिंह ने मौके से भागने की बजाय शहीद होने का निर्णय लिया। उन पर मुकद्दमा चलाया गया और 5 जून 1940 को उन्हे फांसी की सजा सुना दी गई तथा 31 जुलाई 1940 को शहीद हो गए।  शहीद उद्यम सिंह के बलिदान दिवस समारोह में सूचना, जन सम्पर्क एवं भाषा विभाग करनाल की ड्रामा पार्टी ने गीतों एवं भजनों के माध्यम से लोगों को देशभक्ति के प्रति जागरूक किया। उन्होंने कहा कि हमें देश के ऐसे वीर शहीदों को हमेशा नमन करना चाहिए।