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हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। साल में कुल 24 एकादशी आती हैं। हर माह के शुक्ल व कृष्ण पक्ष को एकादशी व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रत करने से हजारों सालों की तपस्या का फल मिलता है। हिंदू नववर्ष के पहले माह में पड़ने वाली एकादशी को कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi) कहते हैं।
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चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे की हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमन करता हूँ। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi ) के बारे मे विस्तार पूर्वक बतलाया। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि एवं महात्म्य क्या है? भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे धर्मराज! चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। एक समय की बात है, यही प्रश्न राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने बतलाया, वही मैं तुमसे कह रहा हूँ।
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कामदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। नगर में अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहाँ तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे।
ललित उसी क्षण महाकाय राक्षस हो गया
एक समय पुण्डरीक सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने से गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अत: तू नरभक्षी दैत्य बनकर कर्म का फल भोग। पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय राक्षस हो गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी। नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी। सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे तथा भुजाएँ अत्यंत लंबी हो गईं। कुल मिलाकर उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया। इस प्रकार वह अनेक प्रकार के दुःख भोगने लगा।
ललिता श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई
जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह सब मालूम हुआ तो उसे दुःख हुआ और वह पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दुःख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती। एक बार ललिता पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गई, जहाँ पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहाँ जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी। उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले: हे सुभगे! तुम कौन हो और यहाँ किस लिए आई हो? ललिता बोली: हे मुने! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से राक्षस होने के कारण दुःख झेल रहा है। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए। श्रृंगी ऋषि बोले: हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है।
व्रत कर पुण्य का फल सारा फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो
इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi) का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा। मुनि के वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने व्रत का फल पति को देती हुई भगवान से प्रार्थना करने लगी: हे प्रभो! मैंने जो व्रत किया है इसका सारा फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए। एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए। वशिष्ठ मुनि कहने लगे: हे राजन्! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश (Papmochani Ekadashi) हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
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