मनोज वर्मा, कैथल:
स्थानीय आरकेएसडी कॉलेज में आज साहित्य सभा कैथल की मासिक गोष्ठी संपन्न हुई जिसमें बतौर अध्यक्ष प्रोफेसर अमृतलाल मदान ने शिरकत की व गोष्ठी का संचालन डॉक्टर प्रद्युम्न भल्ला ने किया। आज की इस गोष्ठी में सबसे पहले सभी सदस्यों ने अपनी अपनी उपलब्धियों का जिक्र किया और उसके बाद बलवान कुंडू सावी की पुस्तक तमाशा जारी है का विमोचन मंचासीन अतिथियों के माध्यम से हुआ।
लोगों की पुस्तकें भेंट की
इसी कड़ी में कुछ अन्य लेखकों ने भी पुस्तकें साहित्यिक लोगों को भेंट की। गौरतलब है कि काफी अंतराल के बाद आज साहित्य सभा की यह गोष्ठी हुई। इस गोष्ठी में यह भी निर्णय लिया गया कि साहित्य सभा की गोष्ठियों में अब लेखकों द्वारा रचित पुस्तकों की समीक्षाओं को भी शामिल किया जाएगा। आज की गोष्ठी का आगाज करते हुए श्यामसुंदर गौड ने कहा, आज के युग में किस-किस से बचेंगे, यह चयन हम कैसे करेंगे। इसी कड़ी में दिलबाग अकेला ने अपनी बात कुछ इस तरह से रखी, अपना बनाना किसी को आसान नहीं है, इंसान है यह आपका मकान नहीं है। इसी कड़ी में गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए खरक पांडवा से आए सुभाष शास्त्री ने यह कहा, लिफाफे में बंद बिकती लाशें, टूटती सांसें, कराहते परिजन, मृत शरीर की अंत्येष्टि, व्यापार बनी अब।
युद्ध को बताया पीड़ादायक
गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए आज इसी कड़ी में राजेश भारती ने अपनी बात कुछ इस तरह रखी, युद्ध होता है पीड़ादायक, छीन लेता है बच्चों के सिर से बाप का साया। इसी कड़ी में मेहरू शर्मा प्यासा ने हरियाणवी भाषा में अपनी बात करते हुए कहा, कर्म नेक पाखंडी ले और धर्म की बिगन तार रे सैं, अनपढ़ पढ़े-लिखे की मति मार सैं।
श्मशाम की लाइन लंबी थी
श्मशेर सिंह कैंदल ने अपनी बात कुछ इस तरह से रखी, शमशान की लाइन लंबी थी, लड़कियों की भी तंगी थी। इसी प्रकार गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए गज़लकार ईश्वर गर्ग ने हिंदी गज़ल के माध्यम से एक बानगी पेश की, वही हैं धन्य हैं जो संघर्षरत हैं, निठल्ला आदमी तो भारवत है।
बुझाओ प्यास प्यासे की
बुझाओ प्यास प्यासे की समय पर, यही तो हकीकत भागवत है। इसी कड़ी में गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए बलवान सिंह कुंडू सावी ने कहा, लंबी उड़ान के लिए चाहिए सपनों के छोटे छोटे पंख, कल्पना से भरे पंख, एक हल्की सी दुम भी। इसी प्रकार गोष्टी को आगे बढ़ाते हुए रिसाल जांगड़ा ने कहा, अपने अपने हाथ पर जब सब अड़े रहे, नाजुक मसले अनसुलझे ही पड़े रहे।
चरणां च रैहण दे
आगे बढ़ते हुए इसी कड़ी में डॉ प्रदयुम्न भल्ला ने पंजाबी रूहानी गीत पेश किया जिसके बोल कुछ यूं थे, अस्सी हां मुरीद सानू, चरणां च रैहण दे, जग यौन कि लैणा जग, जो भी कैंहदा कैहण दे। इसी प्रकार गोष्टी को आगे बढ़ाते हुए डॉ हरीश चंद्र झंडई ने कहा, कहां से लाऊं लोकतंत्र की सुगंध, खेला हो रहा है आज लोकतंत्र के मंदिर में। भंजन हारी कोटि-कोटि गोष्ठी में महेंद्र पाल सारस्वत ने अमृत लाल मदान पर केंद्रित कुछ पंक्तियां यू रखी, हंस वाहिनी, ज्ञान निधि अज्ञान तिमिर भय भंजन हारी कोटि-कोटि नमन तुम्हे मां सरस्वती भक्तों की प्यारी। इसी प्रकार गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए अमृतलाल मदान ने भी अपनी लघु कविता के माध्यम से अपनी उपस्थिति कुछ यूं दर्ज करवाई, चाहे तमस घना यहां पर, यहां सूर्य गायब नदारद, कहीं धूप की खिली इबारत।
अन्य कवियों ने भी रखी बात
इसी प्रकार कमलेश शर्मा ने भी अपनी बात कुछ यूं रखी, कैसा बदल गया है मौसम, जम गई है मन की संवेदनाओं की झील। गोष्ठी में प्रीतम शर्मा ने भी अपनी कविता पढ़ी। गोष्ठी का समापन जलपान से हुआ।