विचार का जिंदा रहना और क्रियाशील होना जरूरी: डॉ. राही

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The Idea Must be Alive and Active
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मनोज वर्मा, Kaithal News:
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् जिला ईकाई कैथल की ओर से परिषद् के प्रांत संयुक्त मंत्री डा. जगदीप शर्मा राही के मार्गदर्शन में नगर के जवाहर पार्क में स्थित सेवा संघ के कार्यालय में एक बैठक और काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।

डा. जगदीप थे मुख्य अतिथि

इसमें डा. जगदीप शर्मा राही ने मुख्य अतिथि के रूप में और समाजसेवी शिवशंकर पाहवा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लिया। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ हरियाणवी साहित्यकार महेंद्र सिंह कण्व सारस्वत ने की। कार्यक्रम का संचालन सतबीर जागलान ने किया।

गोष्ठी के आरंभ में परिषद की जिला ईकाई कैथल के संयोजक डॉ. तेजिंद्र ने आज की गोष्ठी के उद्देश्यों और बिंदुओं पर प्रकाश डाला। अपने उद्बोधन और संदेश में डॉ. जगदीप शर्मा राही ने परिषद् के स्वरुप, उद्देश्यों और क्रियाकलापों पर प्रकाश डाला। उन्होंने साहित्य की चर्चा करते हुए कहा कि विचार का जिंदा रहना और क्रियाशील रहना जरूरी है।

औरों के दुख: देखकै, नाच रहा मन मोर : पराशर

बैठक में परिषद् की कैथल ईकाई के विस्तार को लेकर चर्चा की गई और दायित्व सौपने के लिये कुछ नामों पर विचार किया गया। काव्य-गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए सतपाल पराशर आनन्द ने यह दोहा पढ़ा : औरों के दु:ख देखकै, नाच रह्या मन-मोर। झगड़ रहे किस बात पर, एक डाकू एक चोर।

जिंदगी को परिभाषित करते हुए राजेश भारती ने कहा : जिंदगी मेरी मां के दुपट्टे से बंधा अठ्ठन्नियों का गुच्छा जो अब चलन में नहीं। महेंद्र सिंह कण्व सारस्वत ने पौराणिक प्रतीकों का प्रयोग करते हुए कहा : हनुमान का सा सेवक, भाई लक्ष्मण जैसा, अनुसुइया जैसी सती और शांति जैसा शस्त्र नहीं।

शोर शराबे की दुनिया में प्यार ढूंढता हूमं: तेजिंद्र

प्रेम सिखाने वाली रीत ढूंढते हुए डा. तेजिंद्र ने कहा: शोर-शराबे की दुनियां में, गीत ढूंढता हूं। साथ हमेशा देने वाला, मीत ढूंढता हूँ। लोग रहा करते थे प्रेम-भावना से प्रेम सिखाने वाली मैं वह, रीत ढूंढता हूँ। माँ को आदरांजलि अर्पित करते हुए शिवशंकर पाहवा ने कहा: उदारता की मूरत है मां, संस्कारों की क्यारी, माँ तुम जैसा कोई नहीं।

एक सैनिक के विषम जीवन को प्रतिबिंबित करते हुए डॉ. जगदीप शर्मा राही ने कहा: लाम पै फौजी, घर मैं भौजी, दो-दो जिंदगी सिसक रही। पल-पल खटका, सांस है अटका, पांव से धरती सिसक रही। पलभर में क्या हो जायेगा, कोई किसी को खबर नहीं, मां की ममता, बहन की राखी, बापू की खांसी हिचक रही। कार्यक्रम के दौरान रचनाकारों ने अपनी-अपनी पुस्तकों का आदान-प्रदान किया।

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