मनोज वर्मा, Kaithal News:
साहित्य सभा कैथल और अखिल भारतीय साहित्य परिषद जिला इकाई कैथल के संयुक्त तत्वाधान में आज़ादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में प्राचार्य भूपेंद्र वालिया ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया।
साहित्यकारों को तिरंगा भेंट किया
गोष्ठी की अध्यक्षता साहित्य सभा के प्रधान प्रोफ़ेसर अमृत लाल मदान ने की। गोष्ठी का संचालन डॉ. प्रद्युम्न भल्ला ने किया। गोष्ठी में गांव पाई से पधारे श्रीकृष्ण चंद ने गोष्ठी में उपस्थित सभी साहित्यकारों को तिरंगा भेंट किया। गोष्ठी में अखिल भारतीय साहित्य परिषद हरियाणा के प्रांत महामंत्री साहित्यकार डॉ. योगेश वाशिष्ठ के आकस्मिक निधन पर शोक व्यक्त किया गया और दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
साहित्य को बच्चे-बच्चे तक पहुँचाने का आह्वान
कमलेश शर्मा ने कहा कि हमें हमारे आसपास के ज्ञात और अल्पज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों को प्रकाश में लाने का काम करना चाहिए। मुख्य अतिथि भूपेंद्र वालिया ने साहित्य को बच्चे-बच्चे तक पहुँचाने का आह्वान किया और डी. ए. वी. संस्था द्वारा आगामी सितम्बर मास में आयोजित किये जाने वाले साहित्य-सम्मेलन का आमंत्रण दिया। प्रोफ़ेसर अमृत लाल मदान ने सभी को साथ मिलकर साहित्य-कर्म करते रहने का आह्वान किया।
भारत को विश्व का सरताज बताते हुए दिनेश बंसल ने कहा कि सरताज इस जहां का हिंदुस्तान हमारा। हमको है जां से प्यारा, हिंदुस्तान हमारा। शहीदों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए रिसाल जांगड़ा ने कहा कि, खिला आज़ादी का चमन, शहीदों के लहु से। है आज जि़ंदा यह वतन, शहीदों के लहु से। देश के वीरों को नमन करते हुए हवा सिंह ने कहा कि नमन करो उन वीरों को जो देश-धर्म पै मरगे। झुकने न दिया सिर भारत का, नाम जगत मैं करगे।
मिलकर रहने का संदेश डॉ. तेजिंद्र ने इन शब्दों में दिया, यह चमन तेरा भी है, मेरा भी है। यह गगन तेरा भी है, मेरा भी है। क्यों लड़ें आपस में हम, सोचो जरा, यह वतन तेरा भी है, मेरा भी है। आज़ादी के प्रति रजनीश शर्मा के मन के भाव देखिये, मातृ-भूमि का वंदन करके, वंदे मातरम् गाऊँगी, अमृत महोत्सव मनाऊँगी, तिरंगा भी फहराऊँगी। एक सैनिक के मन के भावों को शब्द देते हुए डॉ. प्रद्युम्न भल्ला ने कहा कि, मेरा जीवन वतन के काम आ जाता तो अच्छा था। फर्जों का सही अंजाम, हो जाता तो अच्छा था।
शहीदों का लहु मुझसे यही दिन-रात कहता है, भारत मां की गोदी में मैं सो जाता तो अच्छा था। आज़ादी के दीवानों के प्रति आदर-भाव प्रकट करते हुए डॉ. विकास आनन्द ने कहा कि, आज़ादी के वीरों का फूलों से सत्कार करें। वतन के अमर शहीदों की, हम मिलकर जय-जयकार करें। विभाजन की पीड़ा का एहसास नीरु मेहता की इन पंक्तियों में महसूस कीजिए, रेत की तरह फिसल गया मुठ्ठी से, बँटवारे की टीस, नाखूनों में फंसकर रह गई। डॉ॰संध्या आर्य ने कहा कि आज़ादी की क़ीमत चुकाओ तो। सर रखकर हथेली पर आओ तो।
देश के वीरों के प्रति आभार प्रकट करते हुए महेंद्र पाल सारस्वत ने कहा कि, धन-धन भारत के वीरों, धन-धन थारी जिंदगानी। धन-धन-धन थारे मात-पिता, धन-धन थारी बहु रानी। विभाजन की पीड़ा प्रोफ़ेसर अमृत लाल मदान के इन शब्दों में व्यक्त हुई, विभाजन रेखा खिंची ज़मीन पर, दिल में दरारें छोड़ गई। गंगा-जमुनी कल्चर की, कस्में-रस्में तोड़ गई।
रचनाओं से उपस्थित-जनों को आह्लादित किया
इनके अतिरिक्त गोष्ठी में सतीश शर्मा, दिलबाग अकेला, राजेश भारती, सतबीर जागलान, अनिल कौशिक,कृष्ण चंद, मधु गोयल मधुल, श्याम सुंदर गौड़, सतपाल पराशर आनन्द, सूरजभान शांडिल्य, धर्मपाल ढुल, शमशेर सिंह कैंदल, प्रीतम सिंह, स्वामी टी. सी. अग्रवाल, भूपेंद्र वालिया, स्वामी कृष्णानंद सरस्वती, योगी यशवीर आर्य, महेंद्र पाल कण्व सारस्वत, ईश्वर चंद गर्ग और कमलेश शर्मा आदि ने भी अपनी-अपनी रचनाओं से उपस्थित-जनों को आह्लादित किया।
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