हिंदुस्तान के क्लाईमेट को देखते हुए यहाँ घूमने का सबसे अच्छा मौसम सितंबर-अक्तूबर और फरवरी-मार्च होता है। मगर इधर दिल्ली के लोगों में घुमक्कड़ी का नया शौक चढ़ा है और हर वीकेंड को वे उत्तर में 200 किमी हरिद्वार या दक्षिण में 150 किमी वृन्दावन चले जाते हैं। कुछ को इतिहास का शौक चढ़ा, तो आगरा चले गए। लेकिन आगरा में क्या है! एक मकबरा, जो संगमरमर का बना है, एक आगरा फोर्ट। बस और कुछ नहीं। अब चूंकि आगरा तक के लिए सड़क अच्छी है,इसलिए लोग भागे चले जाते हैं। लेकिन मैं राय दूँगा, कि आप लोग आगरा में यह मकबरा देखने की बजाय इस जिले के फ़तेहपुर सीकरी जाएँ और पास में राजस्थान के भरतपुर तथा डीग। सीकरी में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है। और भरतपुर में बहुत कुछ है, जो नहीं देखा तो समझो कुछ नहीं देखा। एक तो घाना पक्षी विहार है, जिसे अब केवलादेव पक्षी विहार बोलते हैं। यहाँ पर हजारों मील की दूरी तय कर पक्षी जाड़े में आते हैं, खासतौर पर हंस। ये पक्षी आपको मुग्ध कर देंगे।
घाना पक्षी विहार में हिंसक पशु नहीं हैं। जंगल में मुक्त विचरण करती गायें हैं, साँड़ हैं या फिर हिरण और कुछ बारासिंघे। लेकिन असली आनंद है, यहाँ की बहुत दूर तक फैली झील में पक्षियों का कलरव। सुबह-शाम तो यहाँ का दृश्य अद्भुत होता है। हजारों पक्षी यहाँ आते हैं। यहाँ तक कि उत्तरी ध्रुव के करीब स्थित साइबेरिया के पक्षी। वे हर वर्ष जाड़ा शुरू होते ही यहाँ आ जाते हैं, और गर्मी लगते ही फुर्र अपने वतन की तरफ। यहाँ पर घूमने के लिए रिक्शा उपलब्ध हैं, बैटरी से चलने वाली गाड़ियाँ और साइकिलें भी मिल जाती हैं। बस अपना एक आईकार्ड साथ रखिए। वन विभाग की दो गाड़ियाँ भी हैं, जो 550 रुपए लेती हैं। एंट्री फीस 91 रुपए है। आप तीन से चार घंटे में यहाँ पूरी तरह घूम सकते हैं। अंदर केवलादेव महादेव मंदिर भी है। जो काफी प्राचीन बताया जाता है।
इसके बाद भरतपुर का लोहागढ़ किला देखें, जो महाराजा बदन सिंह के समय बनना शुरू हुआ था, और उनके पुत्र महाराजा सूरजमल ने इसे पूरा किया। 18 वीं सदी का यह क़िला लोहे का है, और आज तक कोई भी इस किले को जीत नहीं सका। यहाँ तक कि वे अंग्रेज़ भी नहीं,जिंका पूरे हिंदुस्तान में राज था। इसके बाद कुमहेरगढ़ जाएँ, और यहाँ का किला देखें। यहाँ पर आप किसी भी देसी ढाबे में धुली उड़द की दाल के साथ बाजरे की रोटी खाएं और आलू की सूखी सब्जी। इसके बाद डीग, जो भरतपुर से कुल 34 किमी है और कुमहेरगढ़ से 18 किमी। डीग पहुँचते ही आपकी सारी थकान लुप्त हो जाएगी। यहाँ पर महाराजा सूरजमल द्वारा बनवाया जल महल इतना सुंदर है, कि वहाँ से चलने का मन नहीं करता। छोटा-सा कस्बा है डीग। लेकिन यहाँ का जलमहल देखेंगे,तब लगेगा कि देसी हिंदू राजाओं की रुचियाँ कितनी परिष्कृत थीं। उनकी कल्पनाशीलता लाजवाब थी। किले के परकोटे के भीतर दो विशाल तालाब हैं। जिनसे पानी पाइप से ऊपर चढ़ाते हैं और फिर फव्वारों के जरिये इतनी रंग-बिरंगी छटा उपस्थित करवाते थे, कि आँखें फटी की फटी रह जाएँ। सोचिए, जब बिजली नहीं थी, तो कैसे इस जाट राजा ने यह कमाल करवाया होगा।
यहाँ आकर राजा सूरजमल और उनके बेटे महाराजा जवाहर सिंह की अद्भुत वीरता और उद्भट कल्पनाशीलता का परिचय मिलता है। यहाँ गोपाल भवन तो पानी के ऊपर बनाया गया है, जो एक तरफ से देखो तो एक मंज़िला, दूसरी तरफ से देखो तो चार मंज़िला और तीसरी तरफ से देखो तो दो मंज़िला प्रतीत होता है। गोपाल भवन में दो तरह के डाइनिंग हाल हैं। एक में जमीन पर आलथी-पालथी मार कर बैठ कर भोजन करें। अलबत्ता जिस चौकी पर थाली रखी जाएगी, वह थोड़ी ऊंची और गोलाकार है, एकदम एक बड़ी डाइनिंग टेबल की तरह। इसके भीतर सिर्फ परोसने वाला ही घुस सकता है। खाने वाले इस चौकी के बाहर जमीन पर बैठते थे। इस हाल के नीचे वाले फ्लोर पर वेस्टर्न स्टाइल की डाइनिंग टेबल है, जिस पर 20-25 लोग बैठ सकते हैं। सामने कि खिड़की से तालाब का नीला जल दिखता था। यहाँ 12 फिट बाई 9 फिट का एक काले संगमर्मर का पलंग है, जिस पर महाराजा सूरजमल लेटते थे।
केशव भवन में संगमरमर पत्थर पर नक्काशी गजब है। मुझे पूरा घूमने में तीन घंटे लगे। यहाँ एक कुश्ती कक्ष है। दरबार हाल है और सारे दरबारियों को गर्मी न लगे इसके लिए छत पर हाथ से डुलाने वाले पंखे हैं। एक विशालकाय कूलर भी है। लकड़ी से बने इस कूलर में चारा मशीन की तरह एक बड़ा सा पहिया लगा है। इस पहिये को घूमने से कूलर चलने लगता है।
किला, तो चूंकि एएसआई (आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) के अधीन है, इसलिए उसकी स्थिति तो चौकस है। जब श्री अनिल तिवारी राजस्थान के एएसआई प्रभारी थे, तब उन्होंने डीग के जल महल को सँवार कर एकदम से नया लुक दे दिया था। डीग के इस महल के स्थानीय प्रभारी श्री अशोक शर्मा भी पूरी लगन के साथ इस महल की देख-रेख करते हैं। लेकिन सबसे खराब बात तो यह है, कि इस जल महल के दोनों तालाबों को नगर निगम ने ले रखा है। और नगर निगम का हाल जैसा होता है, वैसा ही यहाँ है। तालाब का पानी गंधा रहा है। लोग इसके पानी में मल-मूत्र का विसर्जन करते हैं। हालांकि जब तक डीग के राजा मान सिंह ज़िंदा थे, तब तक तो इन तालाबों की सुरक्षा चौकस थी। लेकिन राजस्थान के कांग्रेसी मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर से अनबन के चलते वे पुलिस की गोली का शिकार हुए और उनकी मृत्यु हो गई। तब से राज्य सरकार ने इस किले को उपेक्षित करना शुरू कर दिया।
स्थानीय अखबारों से पता चलता है, कि वह 1985 की 20 फरवरी की सुबह की बात थी। राजा साहब डीग (राजा मान सिंह) को किसी ने सूचना दी कि किले में आपके झंडे को उतार कर जला दिया है। वे लक्ष्मण मंदिर पहुंचे, जहां मंच बना था। राजा साहब ने जोंगा से मंच को टक्कर मार दी बाद में स्वागत द्वारों को टक्कर मारते हुए वे सीधे स्कूल परिसर पहुंचे और हेलिकाप्टर को टक्कर मारी। दूसरे दिन अनाज मंडी की ओर जा रहे थे तभी एक पुलिस वाला जीप को जोंगा के आगे खड़ा कर भाग गया। डीएसपी कानसिंह भाटी आया और उसने राजा साहब को राम-राम की और पीछे की तरफ जाने लगा। राजा साहब ने जोंगा को बैक लेने की कोशिश की तो ट्राली से भिड़ गया। इसी दौरान पुलिस ने फायरिंग की। गोली राजा मानसिंह और गांव सेंहती निवासी सुमेरसिंह हरिसिंह के लगी। हम भाग कर सामने दुकान में घुस गए। बच्चूसिंह (सिनिसिनी निवासी बच्चू सिंह 20 और 21 फरवरी को दोनों घटनाओं के चश्मदीद हैं। वे राजा मानसिंह के साथ जोंगा में सवार थे।)
राजा मानसिंह की बेटी कृष्णेंद्र कौर ने मुकदमा प्रभावित होने की आशंका जता नवंबर 1989 में सुप्रीम कोर्ट में वाद दायर किया, जिस पर केस 10 जनवरी 1990 को मथुरा स्थानांतरित हो गया। सरकार ने 25 फरवरी को मध्यप्रदेश के हाईकोर्ट के जज वीरेंद्रसिंह ज्ञानी से जांच करवाने के आदेश दिए। लेकिन 31 अगस्त को ज्ञानी आयोग भंग कर दिया गया। कृष्णेंद्र कौर भाजपा सरकार में अभी पर्यटन मंत्री थीं। उन्होंने कहा कि फैसले का हमें लंबे समय से इंतजार है। उम्मीद है कि फैसला जल्द आएगा। क्योंकि तेजी से सुनवाई प्रारंभ हुई है। दोषियों को सजा मिलेगी ऐसी पूरी उम्मीद है। उधर, बचाव पक्ष के वकील नंदकिशोर उपमन्यु का कहना है कि कानसिंह भाटी को गोली चलाते किसी ने नहीं देखा। उस दिन 10 राइफलों से एक-एक गोली चली थी, जिसमें 9 खोखे ही बरामद हुए हैं। हमारा पक्ष मजबूत है।
रियासतका झंडा उतारे जाने से नाराज राजा मानसिंह ने मंच और सीएम का हेलिकाप्टर तोड़ दिया था, जिसे सरकार की प्रतिष्ठा पर सवाल खड़ा हो गया। पुलिस पर दबाव था। इसलिए घटना हुई। कितना वक्त और लगेगा, पता नहीं। राजा मानसिंह भरतपुर रिसायत के अंतिम महाराजा ब्रजेंद्रसिंह के छोटे भाई थे। राजा मानसिंह सेना में सैकंड लेफ्टिनेंट रहे। रियासत काल में वे 1946 में मंत्री रहे। इसके अलावा 1952 से 1984 तक लगातार सात बार विधायक रहे। वे नदबई कुम्हेर से एक-एक बार तथा पांच बार डीग से विधायक रहे। 1985 में वे आठवीं बार चुनाव लड़ रहे थे। राजस्थान में सिर्फ दो विधायक ही ऐसे हुए है जो लगातार सात बार चुनाव जीते हैं।दिल्ली से भरतपुर तथा डीग की वापसी कुल 500 किमी की है