आज पूरा विश्व कोरोना से आतंकित हैं, हम सब , घर में कैद हैं। जिसे अंग्रेजी सेल्फ इम्पोज्ड हाउस अरेस्ट कहते हैं | ऐसे वक्त में कोई सूचना नहीं मिल रही कि कोरोना का कहर कब रुकेगा या रुकेगा ही नहीं , न नेता , न वैज्ञानिक कुछ बता पा रहे हैं.
लगभग साथ पैंसठ साल पहले एक लोक गायकों से अनेक कथाये सुनी थी | लोक गायक हर कथा का आरम्भ बड़े मनहर तरीके से करते थे यथा ` बादल बिजली पानी की तरह कहानी भी कभी पुरानी नहीं होती आदि | जो कहानी उस दिन सुनी उसकी शुरुआत कुछ ऐसे थी | दुनिया बनाने वाले ने जीवों की उम्र व् संख्या बड़ी सोच समझ कर रची थी | सबसे ज्यादा वे जीव बनाये जो प्रकृति से बहुत कम ग्रहण करते हैं जैसे पेड़ पौधे घास दूब और जलचर मछलियाँ आदि क्योंकि ये केवल हवा पानी के मोहताज होते हैं इन्हे और किसी चीज की दरकार नहीं होती | फिर वे जीव बनाये जो इन वनस्पतियों को खाकर जिन्दा रहते हैं | अब आप बताएं कि कहीं हाथी मांसाहारी होता तो एक समय के भोजन में कितने जीव डकार जाता | यह सुनकर भला बच्चे क्यों नहीं हंस पड़ते और आगे सुनाने को उत्सुक हो जाते | फिर उन जीवों का नम्बर आया जो इन जीवों को खाकर जीवित रहते हैं यथा शेर बाघ चीते आदि और सबसे कम संख्या में बांये मानव क्योंकि मानव सब कुछ खाने का लालची होता है | तो आज हम मनुष्य के लालच की कहानी बताएँगे | आपने आदमी के दिमाग केअनेक दिलचस्प किस्से जरूर सुने होंगे क्योंकि आदमी के दिमाग की कोई और मिसाल वाकई नहीं है। आदमी के दिमाग की हिमाकत ही तो है कि वह कहता है कि भगवान ने आदमी को अपने रूप जैसा बनाया है। जब आदमी ने भगवान को देखा ही नहीं तो कैसे कह सकता है कि भगवान उस जैसा है? यही नहीं, उसने भगवान की प्रतिमाएं देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी स्त्री-पुरुषों जैसी गढ़ कर, अपने इस भ्रम को विश्वास में बदल लिया है। आदमी की खोपड़ी भी प्रकृति की तरह जाने कैसे-कैसे गुल खिलाती है।
एक था किसान। किसान आप जानते ही हैं खेती वर्षा पर निर्भर है। वर्षा नहीं हुई तो अकाल, वर्षा ज्यादा हो गई तो बाढ़ में फसल तबाह और किसान बेचारे की किस्मत में फाके। नवलगढ़ ठेठ राजस्थान का एक छोटा सा गाँव तथा फकीरा उस गाँव का छोटा सा किसान। एक बार ऐसा हुआ कि चार-पाँच साल से बारिश नहीं हुई और भंयकर अकाल पड़ा। फकीरा तथा उसके बच्चे भूख से बिल-बलाने लगे। ऐसे में, नारद ऋषि पधार गए, उनसे फकीरा की व्यथा देखी नहीं गई। उन्होंने फकीरा से कहा कि वह एक छोटा-सा थैला ले ले। वे उसे पर्याप्त धन दिला देंगे। फकीरा के पास थैला कहाँ से आता, उसने खाद का बोरा साथ ले लिया। नारद ऋषि अपने योगबल उसे कुबेर देवता के खजाने में ले गए तथा फकीरा से कहा कि वह जितना उसके बोरे में रत्न, मणि आदि आए, भर ले। पहले तो फकीरा चौंका। फिर उस अकूत खजाने को देखता रह गया। फिर जल्दी से जल्दी बोरा भरने लगा वह कुबेर के खजाने से, जिसकी थाह दुनिया में कोई नहीं ले सकता। मणि, रत्न माणिक उस छोटे से बोरे में डाल रहा था। मगर बोरा था कि भरने का नाम ही नहीं ले रहा था। कुबेर, नारद तथा कुबेर के पार्षद मुँह बाए इस अजब गजब बात देख-देखकर हैरान हो रहे थे। कुबेर तो, महर्षि नारद के अतिथि को क्या कहते! मगर महर्षि अपने कौतुहल को न रोक सके, उन्होंने आगे बढ़कर बोरा फकीरा के हाथ से लेकर फर्श पर उलट दिया। वे देखकर हैरान रह गए कि बोरे के तले में एक आदमी की खोपड़ी थी, जिसमें सारे रत्न, माणिक, मणि पड़े थे मगर खोपड़ी अभी भी खाली थी। अब आप समझ गए न कि मनुष्य की खोपड़ी तथा उसके लालच की, उसकी चाह की, उसकी प्यास की, तृष्णा की कोई थाह नहीं है और यही एक मात्र कारण है मानव के सारे दु:खों का।
साठ साल पहले जब यह कहनी सुनी थी तो मेरे गाँव में अनेक छोटे बड़े ताल तलैया थे एक छोटा सा वन भी था जिसे बणी कहते थे और केवल मेरे गाँव में नहीं तब हर गाँव में यही कुछ दृश्य होते थे। मगर आदमी के दिमाग ने कहर ढा कर पहाड़ नंगे कर दिया नदियों पर बाँध बना नदियां सुखा डाली। यही नहीं अपने लालच के चलते धरती की कोख भी खाली कर दी पेट्रोल कोयला व अनेक अन्य खनिजों का बिना सोचे समझे दोहन कर | परिणाम ये हुआ की हवा ही विषैली नहीं हुई नभ की ओजोन चादर में छेद कर दिया | अनेक पशु पक्षियों वनस्पतियों की प्रजाति लुप्त हो गई लोक भाषा लोक कथाएं खत्म हो रही हैं तथाकथित विकास के नाम पर |
एक कवि ने इसे बड़े मार्मिक ढंग से बयान किया है ` थोथी धरती कर दई , काढ़-काढ़ पटरोल / एक दिन ये पिचकेगी, नहीं रहेगी गोल |
आज कोरोना वायरस से भयभीत संसार के सामने अपने अस्तित्व को बचाने की समस्या मुँह बाए खड़ी है | स्वनाम धन्य संत कबीर के एक गीत की दो पंक्ति हैं
सो चादर सुर नर मुनि ओढी,ओढि कै मैली कीनी चदरिया
दास कबीर जतन करि ओढी,ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया
आपने देखा होगा कि आजकल अनेक एयरपोर्ट के रेस्ट रूम में लिखा होता है कि टॉयलेट के इस्तेमाल के बाद इसे आगे आने वाले व्यक्ति के लिए साफ़ कर के जाएँ | हमें टॉयलेट की चिंता है लेकिन आने वाली पीढ़ी को कैसी धरती देकर जाएंगे इसकी नहीं | भक्त कबीर की दूसरी पंक्ति को ध्यान दें दास कबीर जतन से ओढ़ी ज्यों की त्यों धार दीनी चदरिया अभी भी समय है कि अपनी धरती को अपने बच्चों के लिए साफ सुथरी वैसा छोड़ जाएँ जैसा हमारे पुरखे हमें छोड़ गए थे | एक और संत कवि बाबा तुलसी ने लिखा है | धीरज धर्म मित्र अरु नारी / आपत काल परखिये चारी | इस का उपयोग हम कोरोना से बचाव में कर सकते हैं. उपनिषदों का सूत्र है धर्म का आचरण देश काल परिस्थिति के अनुसार करें तो कोरोना काल की परिस्थिति में ये चार हैं isolate, test , treat and trace यानी सोशल डिस्टेंसिंग , कोरोना हेतु टेस्ट , इलाज व संदिग्ध के संसर्ग में आये लोगों को ट्रेस करना | सोशल डिस्टन्सिंग में मेड [ महरी , काम वाली बाई को भी छुट्टी दें लेकिन वेतन सहित आप दान वीर कर्ण के देशवासी हैं आप तो सूर्य ग्रहण चंद्रग्रहण पर भी दान करते हैं तो यहाँ कंजूसी न करें न केवल बाई को अपितु आसपास के जरूरत मांडो की भी सहायता करें | जय हिन्द
डॉ श्याम सखा श्याम – ह्यूस्टन अमेरिका
पूर्व अध्यक्ष हरियाणा प्रदेश IMA एवं निदेशक हरियाणा साहित्य साहित्य अकादमी