Aaj Samaj (आज समाज), Justice B.V. Nagaratna, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 25 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता के अबॉर्शन की तारीख बदलने पर गुजरात हाईकोर्ट को कड़ी फटकार लगाई है। आज अवकाश होने के बावूजद जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की विशेष पीठ ने इस मामले पर अर्जेंट सुनवाई की। पीड़ित 28 हफ्ते से प्रेग्नेंट थी। गुजरात हाईकोर्ट ने अबॉर्शन को लेकर दायर की गई याचिका पर 11 अगस्त को तत्काल सुनवाई न करते हुए 12 दिन बाद मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 23 अगस्त मुकर्रर की है। इस पर जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने हाईकोर्ट से सवाल किया, जब अबॉर्शन जैसे मामलों में एक-एक दिन अहम होता है तो सुनवाई की तारीख क्यों टाली गई?
- 25 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता ने मांगी है अबॉर्शन की अनुमति
- गुजरात हाईकोर्ट ने 11 अगस्त को नहीं की तत्काल सुनवाई
- अवकाश होने के बावूजद मामले पर आज अर्जेंट सुनवाई की
सात अगस्त को हाईकोर्ट में याचिका दायर की
हाईकोर्ट ने हालांकि अबॉर्शन वाली याचिका खारिज करते हुए आर्डर की कॉपी जारी नहीं की थी जिसके बाद याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। पीड़ित महिला की तरफ से शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में वकील शशांक सिंह और दूसरे पक्ष की वकील स्वाति घिल्डियाल मौजूद रहीं। याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सात अगस्त को हाईकोर्ट में अबॉर्शन को लेकर एक याचिका दायर की गई थी। अदालत ने आठ अगस्त को मामले की सुनवाई की। उसी तारीख को गर्भावस्था की स्थिति का पता लगाने के लिए एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश पारित किया गया था। 10 अगस्त को बोर्ड की रिपोर्ट सौंपी गई। 11 अगस्त को कोर्ट ने रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लिया और मामले को 23 अगस्त के लिए पोस्ट कर दिया।
बहुमूल्य समय नष्ट हो गया : जस्टिस नागरत्ना
जस्टिस नागरत्ना ने कहा, चूंकि बहुमूल्य समय नष्ट हो गया है, इसलिए मेडिकल बोर्ड से नई रिपोर्ट मांगी जा रही है। हम याचिकाकर्ता को एक बार फिर से एग्जामिन करने का निर्देश देते हैं। नई स्टेटस रिपोर्ट 20 अगस्त तक इस अदालत को सौंपी जाए। 21 अगस्त को इसे कोर्ट के सामने रखा जाएगा। अबॉर्शन को लेकर गुजरात हाईकोर्ट ने एक नाबालिग से दुष्कर्म मामले में भी अबॉर्शन देने की अनुमति देने से मना कर दिया था।जस्टिस समीर दवे ने सुनवाई के दौरान कहा था कि यदि लड़की और भ्रूण दोनों स्वस्थ हैं तो वह एबॉर्शन कराने वाली याचिका की अनुमति नहीं दे सकते हैं।
मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्ट
मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट के तहत, किसी भी शादीशुदा महिला, दष्कर्म पीड़ित, दिव्यांग महिला व नाबालिग लड़की को 24 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी अबॉर्ट करने की इजाजत दी जाती है। 2020 में एमटीपी एक्ट में बदलाव किया गया था। उससे पहले 1971 में बना कानून लागू होता था।
अभद्र और अपमानजनक पोस्ट पर भी कोर्ट सख्त
सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर अभद्र और अपमानजनक पोस्ट को लेकर भी सख्त रुख अपनाया है। शुक्रवार को ऐसे मामले में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया पर अभद्र पोस्ट करने वाले लोग माफी मांगकर आपराधिक कार्यवाही से नहीं बच सकते हैं। उन्हें अपने किए का नतीजा भुगतना होगा। कोर्ट ने तमिल एक्टर और पूर्व विधायक एस वे शेखर (72) के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज करने से इनकार कर दिया। उनके खिलाफ 2018 में महिला पत्रकारों पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने का केस दर्ज है।
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