8 दिसंबर 2020 को लिखे गए अपने लेख में मैं एक कहानी बता चुका हूं। कहानी एक शहरी लड़के समर और गाँव के एक बुजुर्ग पर आधारित थी। कहानी कुछ यूं थी कि शहर से पढ़ कर आए समर से गांव के बुजुर्ग ने पूछा कि इतना पढ़े लिखे हो तो ये बताओ कि आसमान में कितने तारे हैं? समर ने कहा कि बाबा आसमान में 57 करोड़ 41 लाख 35 हजार 343 तारे हैं।
अगर आपको मेरी बात पर यकीन नहीं तो आप खुद गिनकर देख सकते हैं और बुजुर्ग के पास इसका कोई जवाब नहीं था। या यूं कहें कि अल्पज्ञान के कारण बुजुर्ग के पास समर की बात ना चाहते हुए भी मानने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। यह कहानी मैंने उन लोगों का हाल बताने के लिए कही थी जो दूसरी तिमाही में आए अर्थव्यवस्था के आंकड़ों को चमत्कारिक बता रहे थे।
प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे डेविड लॉयड जॉर्ज कहते थे कि- संकेत मिलने पर एक बड़ा कदम उठाने से डरो मत। दो छोटी छलांगों में एक क्रॉस को पार नहीं किया जा सकता है। लेकिन क्या हमने जॉर्ज कि बात सुनी? नहीं।
लोग दूसरी तिमाही के आंकड़ों को चमत्कारिक बता रहे थे। मैंने उस वक्त लिखा था कि वास्तविक चमत्कार को देखने के लिए हमें थोड़ा और इन्तजार करना पड़ेगा। मेरा जो डर था उसका अब आंकड़ों के रूप में प्रत्यक्षीकरण हो रहा है। हालिया आंकड़े बताते हैं कि नवंबर 2020 के अंत में केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा 10.75 लाख करोड़ रुपये या 2020-21 बजट अनुमानों का 135.1 प्रतिशत हो चुका था, जो मुख्य रूप से व्यावसायिक गतिविधियों में व्यवधान के कारण राजस्व की कम प्राप्ति के कारण था।
नवंबर 2019 के अंत में राजकोषीय घाटा 2019-20 बजट अनुमानों के 114.8 प्रतिशत पर था। नियंत्रक महालेखाकार (सीजीए) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2020 के अंत में राजकोषीय घाटा 10,75,507 करोड़ रुपये था। ट्रेड घाटा भी अब बढ़कर 15 बिलियन डॉलर के पार पहुंच गया है। हालांकि आयात का थोड़ा बढ़ना एक सकारात्मक खबर है। सितंबर 2020 तक ठीक होने के बाद भारत के प्रमुख उद्योगों का उत्पादन नवंबर में एक बार फिर से गिर गया। बुनियादी ढांचा उत्पादन अप्रैल में 37.9 प्रतिशत कम हो गया था, जिसके बाद अक्टूबर में यह धीरे-धीरे घटकर मात्र 0.1 प्रतिशत की गिरावट पर था। हालांकि, पछले दो महीनों में, अक्टूबर में संकुचन एक बार फिर 0.9 प्रतिशत हो गया और नवंबर के महीने में तो यह गिरावट 2.6 प्रतिशत पर पहुंच गई। आठ मुख्य उद्योगों में से पांच के उत्पादन में पिछले महीने गिरावट आई। ये उद्योग कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, इस्पात और सीमेंट के हैं। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार कच्चे तेल का उत्पादन 4.9 प्रतिशत, प्राकृतिक गैस का 9.3 प्रतिशत, रिफाइनरी उत्पादों का उत्पादन 4.8 प्रतिशत, इस्पात का 4.4 प्रतिशत और सीमेंट का 7.1 प्रतिशत गिर गया। दूसरी ओर, महीने में कोयला, उर्वरक और बिजली का उत्पादन बढ़ा। कोयले के उत्पादन में 2.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई, उर्वरकों में 1.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और नवंबर में बिजली की 2.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। दूसरी तरफ बेरोजगारी के आंकड़े भी चौकाने वाले हैं। भारत में रोजगार की स्थिति तीसरी तिमाही की शुरूआत के बाद से विकास कर रही थी वो फिरसे गिर गई। इस वित्त वर्ष कि पहली तिमाही में रोजगार 20.3 प्रतिशत गिर जाने के बाद, यह दूसरी तिमाही में 3.5 प्रतिशत के संकुचन पर आ गई, क्योंकि अर्थव्यवस्था ठीक होने लगी थी। हालांकि, इस सुधार ने तीसरी तिमाही में गति खो दी। सीएमआईई के उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण के अनुसार अक्टूबर में 50,000 नौकरियों को खो दिया गया था, लेकिन नवंबर में तो 35 लाख से अधिक नौकरियां खत्म हुईं।
नवंबर 2020 में 39.36 करोड़ रोजगार मार्च 2020 की तिमाही से लगभग 1 करोड़ कम थे। जहां नवंबर में रोजगार की दर 37.4 प्रतिशत से बढ़कर तीन सप्ताह के औसत में 37.5 फीसदी पर पहुंच गई, वहीं इसी अवधि में बेरोजगारी दर 6.5 प्रतिशत से बढ़कर 9.5 प्रतिशत हो गई। शायद यह समझना मुश्किल नहीं कि बेरोजगार और कम आय वाले लोग महंगाई और अव्यवस्था से किस कदर गरीब हो रहे होंगे।
वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की वैश्विक सामाजिक गतिशीलता रिपोर्ट के अनुसार, भारत में औसत आय प्राप्त करने के लिए एक गरीब परिवार के सदस्य को 7 पीढ़ियों का समय लगता है। डेनमार्क में, ऐसा करने में सिर्फ 2 पीढ़ियों का समय लगेगा। फिर फ्रÞांसिस बेकन याद आ गए जिन्होंने कहा था कि आशावाद एक अच्छा नाश्ता हो सकता है, लेकिन इससे पेट नहीं भरता।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)
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