- जींद में भी एक ऑडिटोरियम हो, जिसमें कलाकार अपनी नाट्य प्रस्तुतियां दे सकें
(Jind News) जींद। विश्व रंगमंच दिवस के मौके पर रंगकर्मी रमेश भनवाला ने कहा कि दुनियाभर के रंगमंच के महत्व को लोगों तक पहुंचाने और इसके प्रति लोगो में रूचि पैदा करने के मकसद से हर वर्ष विष्व रंगमंच दिवस कलाकारों द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। रंगमंच मनोरंजन का साधन मात्र नही बल्कि लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का बेहतरीन जरिया है। भारत में रंगमंच की परम्परा आदिकाल से चलती आ रही है।
भारतीय रंगमंच, जिसका इतिहास पांच हजार साल से भी अधिक पुराना
भारतीय रंगमंच ने समय के साथ-साथ विषय वस्तु में बदलाव भी किया है। यह बदलाव हमें स्वाधीनता संग्राम मे भी देखने को मिला। इससे प्रेरित होकर भारतेंदु हरिषचंद्र और उनके समकालीन लेखको ने भरपूर मात्रा में नाट्य रचना की। भारतीय रंगमंच, जिसका इतिहास पांच हजार साल से भी अधिक पुराना है, मानव इतिहास में सबसे पुराने कला रूपों में से एक, नाटक के महत्व को रेखांकित करने और लोकप्रिय बनाने के लिए 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है।
इस दिन की शुरुआत अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान ने मूल रूप से नाटक और ललित कलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 1961 में की गई थी। मानवीय भावनाओं के करीब होने के कारण, रंगमंच में विचारों को प्रभावित करने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता है। यह दिन हमें मानव जीवन में रंगमंच के महत्व को भी रेखांकित करता है। क्योंकि यह न केवल दर्शकों का मनोरंजन करता है बल्कि दुनियाभर में मौजूद संस्कृति और परंपरा को भी दर्शाता है। नाटक अपने आप में कला का एक संपूर्ण रूप है
नाटक की सजीव परम्परा का भारतीय सामाजिक व्यवस्था में प्रमुख स्थान
इसकी रूपरेखा में अभिनय, संवाद, कविता, संगीत आदि शामिल हैं। रंगमंच युगों से, समाज के आदर्शों, मानव अस्तित्व, लोकाचार, भावनाओं, मानवीय संवेदनाओं आदि के प्रति दृढ़ संकल्प को प्रतिबिंबित करता आया है। नाटक की सजीव परम्परा का भारतीय सामाजिक व्यवस्था में प्रमुख स्थान है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में, त्योहारों और उत्सवों के दौरान पारंपरिक नाट्यरूपों (सांग, नौटंकी, यक्षगान, तमाशा, भवाई, जात्रा) को प्रस्तुत किया जाता है। पारंपरिक रंगमंच के विभिन्न रूप आम आदमी के सामाजिक दृष्टिकोण और धारणाओं को दर्षाते हैं जो क्षेत्रीय, स्थानीय और लोक कला के रूप में प्रकट होती हैं।
पारंपरिक रंगमंच में सादगी के रूप में एक समान विशिष्टता पाई जाती है और पारंपरिक नाट्य रूपों का विकास ऐसी ही स्थानीय और क्षेत्रीय विशेषताओं पर आधारित है। रंगकर्मी रमेश भनवाला पिछले 25 वर्षों से रंगमंच करते आ रहे है। इसमे इन्होनें 26 नाटकों का निर्देशन 19 नाटकों में अभिनय, किया है।
पिछले नौ वर्षों से राष्ट्रीय नाट्य उत्सव व रंगमंच पर सेमिनार करते आ रहे है। चिल्ड्रन थियेटर वर्कशॉप, विभिन्न स्कुलों व संस्थाओं के साथ करते आ रहे है। रंगकर्मी रमेश भनवाला का मानना है कि रंगमंच सभी को एक बार जरूर करना चाहिए। क्योंकि इससे हमारे अन्दर आत्मविश्वास का संचार व प्रवाह होता है। जिससे हम मुश्किल से मुश्किल कार्य आसानी से कर देते है। जींद में भी एक ऑडिटोरियम होना चाहिए, जिसमें कलाकार अपनी नाट्य प्रस्तुतियां दे सकें।
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