Jind News : श्री गुरु ग्रंथ साहिब के प्रथम प्रकाश पर्व को श्रद्धा से मनाया

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The first Prakash Parv of Shri Guru Granth Sahib was celebrated with devotion
प्रथम प्रकाश पर्व पर सजाए गए श्री गुरु ग्रंथ साहिब।

(Jind News) जींद। सुखमनी सेवा सोसायटी गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा द्वारा रविवार को श्री गुरु ग्रंथ साहिब के प्रथम प्रकाश पर्व को समर्पित अपने 20वें गुरमत समागम का आयोजन किया गया। समागम में रागी विद्वान, कथा वाचक तथा ढाढी जत्थो ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब की महिमा का गुणगान किया। गुरुघर के प्रवक्ता बलविंदर सिंह के अनुसार गुरमत समागम में सबसे पहले गुरुद्वारा साहिब के रागी भाई गुरदित्त सिंह के रागी जत्थे द्वारा शब्द कीर्तन गायन किया गया। इसके बाद तख्त श्री दमदमा साहिब से आए प्रसिद्ध कथा वाचक ज्ञानी गुरसेव सिंह अपने कथा प्रवचनों में श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी की विशेषताओं का व्याख्यान करते हुए बताया कि इस पवित्र ग्रंथ में गुरुओं, भक्तों की बाणी पर हम सभी को अमल करना चाहिए। हमेशा सच के मार्ग पर चलना चाहिए। अपने मन को परमात्मा के मन से जोडऩा चाहिए। जरूरतमंद लोगों की मदद हमेशा करनी चाहिए। गुरु ग्रंथ साहिब हमें अपना जीवन जीने के तरीके के बारे में मार्गदर्शन करते हैं। यह मानवता की एकता के बारे में सिखाता है।

रागी विद्वान, कथा वाचक तथा ढाढी जत्थो ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब की महिमा का गुणगान किया

The first Prakash Parv of Shri Guru Granth Sahib was celebrated
इसके बाद दरबार साहिब अमृतसर से आए हजूरी रागी भाई गुरदित्त सिंह के रागी जत्थे ने निरोल गुरबाणी कीर्तन करके संगतों का मन मोह लिया। समागम के अंत में गुरु की नगरी सुल्तानपुर लोधी से आए भाई सुखदेव सिंह चमकारा के इंटरनेशनल गोल्ड मेडलिस्ट ढाढी जत्थे ने गुरू श्री ग्रंथ साहिब के गुरु इतिहास को अपनी ढाढी वारों में पिरोकर संगतों को बताया कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पहला प्रकाश 1604 में हरमंदिर साहिब अमृतसर में किया गया। जिसका संपादन पांचवें  गुरु अर्जुन देव ने किया था। 1705 में दशम पिता गुरू गोबिन्द सिंह ने दमदमा साहिब में इसमें अपने पिता गुरु तेग बहादुर साहिब के 116 शब्द दर्ज करके इसको संपूर्ण किया। इसमें कुल 1430 पृष्ठ हैं।

रागी जत्थे ने निरोल गुरबाणी कीर्तन करके संगतों का मन मोह लिया

The first Prakash Parv of Shri Guru Granth Sahib was celebrated with devotion
गुरूघर के प्रवक्ता बलविंद्र सिंह ने कहा कि श्री गुरू ग्रंथ साहिब में मात्र सिख गुरूओं के उपदेश ही नही है बल्कि 30 अन्य संतों और अलग धर्म के मुस्लिम भक्तों की वाणी भी सम्मलित है।  पांचों वक्त नमाज पढऩे में विश्वास रखने वाले शेख फरीद के श£ोक भी श्री गुरू ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं। अपनी भाषायी अभिव्यक्ति, दार्शनिकता, संदेश की दृष्टि से गुरू ग्रंथ साहिब अद्वितीय है। इनकी भाषा की सरलता, सुबोधता, स्टीकता जहां जनमासन को आकर्षित करती है। वहीं संगीत के सुरों व 31 रागों के प्रयोग ने उपदेशों को भी सारग्रही बना दिया है। उन्होंने कहा कि गुरूग्रंथ साहिब की उल्लेखित दार्शनिकता कर्मवाद को मान्यता देती है। गुरूबाणी के अनुसार व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार ही महत्व पाता है। गुरूबाणी के अनुसार ईश्वर को प्राप्त करने के लिए सामाजिक उत्तरदायित्व से विमुख होकर जंगलों में भटकने की आवश्यकता नही है। ईश्वर हमारे हृदय में ही है। अच्छी सोच से ही इंसान को हमेशा अच्छा रास्ता मिलता है। ईश्वर पर वही भरोसा कर सकता है, जो खुद पर भरोसा करता हो और ईश्वर को वही व्यक्ति प्राप्त कर सकता है जो सबसे प्रेम करता हो। इसके बाद गुरु का अटूट लंगर भी इस अवसर पर संगतों में बरताया गया। इस अवसर पर हरबंस सिंह, दर्शन सिंह, सतनाम सिंह,  गुरविंदर सिंह, गुरप्रीत सिंह, मोनू, विक्की गुंबर, गुरुद्वारा प्रधान किरपाल सिंह, सचिव सुरेंद्र सिंह टक्कर, कैशियर हरबंस सिंह, संतोख सिंह, एवं समस्त सुखमनी सेवा सोसायटी के पदाधिकारी उपस्थित रहे।

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