Jind News : गोपियों संग श्रीकृष्ण की महारास का महोत्सव है शरद पूर्णिमा : आचार्य पवन शर्मा

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Sharad Purnima is the festival of Shri Krishna's Maharas with Gopis: Acharya Pawan Sharma
शरद पूर्णिमा पर मां भगवती की पूजा करते हुए श्रद्धालु। 
  • शरद पूर्णिमा महालक्ष्मी की पूजा का भी पर्व

(Jind News) जींद। आचार्य पवन शर्मा ने कहा कि ब्रह्म व जीव के मधुर मिलन की पवित्र रात्रि है शरद पूर्णिमा। गोपियों संग श्रीकृष्ण की महारास का महोत्सव है शरद पूर्णिमा। शरद पूर्णिमा की पावन रात्रि में गोपियों ने प्रेम योग के बल पर श्रीकृष्ण के संग नृत्य कर उनको सहज ही में प्राप्त कर लिया था। श्रीकृष्ण के संग नृत्य ही तो महामुक्ति है और यही है भगवत्प्रेम की सर्वोच्च स्थिति।

आचार्य पवन शर्मा शरद पूर्णिमा की प्रात: गुरूवार को व कार्तिक महोत्सव के शुभारंभ पर माता वैष्णवी धाम में आयोजित सत्संग में उपस्थित श्रद्धालुओं के समक्ष अपने प्रवचन में व्यक्त किए। आचार्य ने कहा कि श्रीकृष्ण जगत की आत्मा हैं व राधा है आत्माकारवृति और गोपियां हैं-आत्माभिमुख वृतियां। इन सभी का रमण ही महारास है। यह महारास शरद पूर्णिमा की रात्रि को घटित हुआ था। इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। गोपियां भगवान तो नहीं थी किंतु वे भगवान से भिन्न भी नही थी। जो प्रभु सारे जगत को नचाते हैं, वहीं शरद पूर्णिमा की रात गोपियों के मध्य उनके प्रेम पॉश में बंधे नृत्य करते हैं।

भगवान शिव भी गोपी का रूप धारण करके इस अद्वितीय महारासलीला का दर्षन करने पहुंचे थे। इसलिए तो भगवान शिव का एकनाम गोपीश्वर महादेव भी हैं। उन्होंने कहा-श्रीकृष्ण को पूर्ण काम कहा गया है अर्थात् उनके मन में कभी कोई कामना आती ही नहीं और उनका पावन सान्निध्य प्राप्त कर गोपियां भी निष्काम बन गई थी। शरद पूर्णिमा की पावन रात्रि में चंद्रदेव ने अपनी शीतल रष्मियों से प्रकृति को आच्छादित कर पृथ्वी पर अमृतवर्षा की थी। इसी कारण वैष्णवजन इस रात्रि को खीर का प्रसाद बना कर खुले आकाष के नीचे झीने कपड़े से ढ़क कर रख देते हैं। जिससे चन्द्रमा की शीतल किरणों के प्रभाव से यह खीर औषधीय गुणों से युक्त होकर अमृत तुल्य बन जाती है।

जिसका सेवन करने से शरीर निरोग व मन प्रफुल्लित हो उठता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि को चंद्रमा की शीतलता और सुन्दरता देखते ही बनती है। क्योंकि इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे अधिक निकट होता है। आचार्य ने कहा कि शरद पूर्णिमा महालक्ष्मी की पूजा का भी पर्व है । ऐसी मान्यता है कि भगवती महालक्ष्मी इस पवित्र रात्रि में पृथ्वी पर भ्रमण करती है इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा गया है । यदि हमें भी परमात्मा श्रीकृष्ण की महारास में सम्मिलित होना है तो हमें भी गोपियों की भांति अपने अहंभाव का परित्याग कर परमतत्व से जुडऩा होगा। सत्संग में श्रद्धालुओं द्वारा श्री राधा-कृष्ण की आरती उतारी गई व शरद पूर्णिमा के चंद्रमा की किरणों से सिंचित खीर के प्रसाद का वितरण किया गया।

 

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