• इकट्ठे बैठ कर नाटक देखना एक सुखद अनुभव : रविंद्र कुमार

(jind News) जींद। एक्टिव थियेटर एंड वैलफेयर सोसायटी जींद द्वारा अपना सातवां तीन दिवसीय नवरस राष्ट्रीय नाट्य उत्सव का हर्षोउल्लास के साथ दिवान बाल कृष्ण रंगशाला में मनाया जा रहा है। दूसरे दिन सोसाइटी ने बिच्छु नाटक का शानदार मंचन किया। जिसका निर्देशन रंगकर्मी रमेश भनवाला ने किया।

कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्यअतिथि रवींद्र कुमार प्राचार्य मोतीलाल नेहरू पब्लिक स्कुल, डॉ. मिनाक्षी जैन, डॉ. रमेश बंसल, मंगतराम शास्त्री, अंजु सिहाग, डॉ. सुरेश जैन, प्रवीण दुग्गल ने द्वीप प्रज्जवलित करके किया। मुख्यअतिथि रविंद्र कुमार ने कहा कि आज के दौर में जहां माता पिता के पास बच्चों के लिए समय नही है।

रंगमंच हमारे जीवन की जरूरत

इस दौर में इकट्ठे बैठ कर नाटक देखना एक सुखद अनुभव रहता है। बच्चे और माता-पिता एक दूसरे के करीब आते हैं। रंगमंच हमारे जीवन की जरूरत है। जिंदगी इतनी तेज हो गई है कि बहुत सारी चीजे हमसे छुटती जा रही हैं। नाटक समाज में जो घटीत होता है वही मंच पर प्रस्तुत करता है।

रंगमंच के कलाकार उसको आत्मविश्वास के साथ मंच पर प्रस्तुत करते हंै। हमारी युवा शक्ति में राष्ट्र प्रेम व उच्च स्तर के संस्कारों का निर्माण करता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. मिनाक्षी जैन ने कहा कि नाटकों से समाज में सकारात्मक सोच का निर्माण होता है।

नाटक गरीब व वंचित लोगों की आवाज बन कर मंच के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का काम करता है। यह नाट्य उत्सव लोगों के लिए एक नई मिसाल बन रहा है। बच्चे संस्था के साथ जुड़े व अपनी कलाओं को निखारे। यह राष्ट्रीय नाटृय उत्सव हमारे अंदर एक नया जोश भरता है व अवसाद को कम करता है। ऐसे नाट्य उत्सव लगातार होने चाहिए।

रंगकर्मी रमेष कुमार ने कहा कि नाटक की शुरूआत ऐसे होती है कि रहमत, एक चतुर सेवक है, जो दो अमीर आदमी, नवाब बन्ने मियां और नवाब मुन्ने मियां द्वारा नियुक्त किया गया है। रहमत लगातार झूठ बोलते हैं और लोगों को आगे निकलने के लिए बरगलाते हैं। वह एक घमंडी, तुनकमिजाज इंसान है, जो ऐसे काम करता है जैसे उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं था।

हालांकि उसमे राजनयिक प्रतिभा भी है। वह कहानी के अन्य पात्रों के साथ खेलने और उन्हें उलझाए रखने का प्रबंधन करता है और साथ अपने एकमात्र लक्ष्य जो की प्रेमी जोड़ी को भागने में में मदद करना है। उसे भी कुशलतापूर्वक पूरा करता है। अपने पिता की अनुपस्थिति में, मुनीर ने चुपके से रजिया से शादी कर ली और अफजल को चुपके से नील से प्यार हो गया लेकिन पिता अपने बेटों के लिए शादी की योजना बना कर यात्रा से लौटकर आ रहे होते हैं।

नवाब के बेटे, अफजल और मुनीर, रहमत की मदद से अपनी प्रेमिकाओं को भगाकर लाने में सफल हो जाते हैं। रहमत, मदद के लिए कई दलीलें सुनने के बाद, उनके बचाव में आता है। रहमत दो बुजुर्ग दादाजी को एक सवारी के लिए लेजाते हैं, उनसे पैसे निकलवाकर हैं और दोनों बेटों को दे देते हैं। कई चालबाजियों और झूठों का सहारा लेते हुए, रहमत माता-पिता से पर्याप्त धन जुटा लेते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि युवा जोड़ों को शादी करने के लिए पर्याप्त धन मिल जाए और वह अपना आगे का जीवन भी कुशलतापूर्वक बिता सकें।

नाटक एक यादगार पंकितयों के साथ समाप्त होता हैं

लेकिन कोई नही जानता कि रजिया और निली वास्तव में कौन हैं,  यह नाटक एक यादगार पंकितयों के साथ समाप्त होता हैं और वे सभी खुशी से रहने लगे और रहमत को भी अंतिम दावत पर भी बुलाया जाता है। भले ही उसे ऐसा करने के लिए एक घातक घाव का नकली नाटक करना पड़ा हो। नाटक आज के माता-पिता के लिए एक सीख है, जो अपने बच्चों को एक देखभाल करनेवाले दूसरे व्यक्ति के पास छोड़ देते हैं।

यह इस समय का और समाज का विरोधाभासी सत्य है कि जिसके पीछे उसका सारा जीवन चलता रहता है, वे उसे कभी प्राप्त नहीं कर सकते और अंतत: वे पश्चाताप और अपने हाथों को रगडऩे के बाद अपने जीवन को छोड़ देते हैं।

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