(Jind News) जींद। हमेटी में निदेशक डॉ. कर्मचंद की अध्यक्षता में कृषि सेवाओं में कर रहे डेसी डिप्लोमा के प्रशिक्षणार्थियों को कृषि यांत्रिकी की प्रोफेसर डॉ. रवीना कारगवाल ने फसल अवशेषों, विशेष तौर पर पराली के प्रबंधन में प्रयोग होने वाले बेलर, चॉपर, मल्चर, सुपरसीडर आदि कृषि यंत्रों की विस्तार से जानकारी दी। डॉ. रवीना ने कहा कि जिस पराली को किसान जाने- अनजाने में जलाकर नष्ट कर रहे हैं, यदि किसान कृषि यंत्रों की मदद से उसे जमीन में मिलाते हैं तो वह खेत की मिट्टी को ताकतवर बना देती है।
इससे मिट्टी में जैविक कार्बन व पौधों के लिए आवश्यक फास्फोरस,पोटाश, सल्फर जैसे आवश्यक तत्वों को प्रचुर मात्रा में बढ़ाती है। मिट्टी में पानी को सोख कर रखने की क्षमता में बढ़ोतरी होती है तथा भूमि में मौजूद लाभकारी जीवाणुओं को भोजन उपलब्ध होता है। वहीं जो किसान पराली को जलाते हैं वे अपने खेत की मिट्टी को बंजर बना रहे हैं। पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद आवश्यक तत्व, लाभकारी जीवाणु व भूमि का जैविक कार्बन सब जलकर नष्ट हो जाता है। पर्यावरण को भी नुकसान होता है। डॉ. रवीना ने कहा कि चोपर या मल्चर चलाने के बाद गेंहू की बिजाई सुपरसीडर से बढ़िया तरीके से की जा सकती है।
इससे समय की बिजाई व खाद का सही तरीके से प्रयोग होने पर गेहूं की पैदावार में बढ़ोतरी होती है। फैसिलिटेटर डॉ. बीपी राणा ने कहा कि जहां पर धान की कटाई हाथ से की गई है, उन खेतों में फानों को जलाए बगैर जीरो टिलेज मशीन से गेहूं की बिजाई की जा सकती है। इससे गेहूं में उगने वाले मडुंसी जैसे खरपतवारों का भी जमाव नहीं होता। हमेटी के प्रशिक्षक डॉ. सुभाष चंद्र ने कहा कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग हरियाणा किसानों को पराली प्रबंधन के लिए कृषि यंत्र उपलब्ध करवा रहा है।
किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन में प्रयोग होने वाले यंत्रों पर 50 प्रतिशत अनुदान दिया गया है। बेलर से गांठ बनवाने या पराली का चारे के लिए भंडारण करने वाले किसानों को एक्स सीटू स्कीम में एक हजार रुपए प्रति एकड़ की मदद दी जा रही है। पराली जलाने से पर्यावरण में होने वाले अत्यधिक प्रदूषण व भूमि की उर्वरा शक्ति को होने वाले नुकसान की गंभीरता को देखते हुए पराली जलाने वाले किसानों के साथ प्रशासन सख्ती से पेश आ रहा है। जिसमें जुर्माना लगाने के साथ-साथ किसान के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हो सकता है।
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