(Jind News) जींद। सफीदों से कांग्रेस ने विधायक सुभाष गांगोली पर ही विश्वास जताते हुए दोबारा से टिकट दी है। उनकी टिकट के साथ ही भाजपा नेता बचन सिंह आर्य, जसबीर देशवाल सहित अन्य नेताओं ने बगावत के सुर अलापने शुरू कर दिए हैं। वहीं भाजपा ने नारनौंद से विधायक दादा राजकुमार गौत्तम को अपना प्रत्याशी मनाया है। अगर सफीदों की राजनीति की बात की जाए तो यहां बहुत उथल-पुथल होती है। अब तक 13 विधानसभा चुनाव में यहां से तीन बार निर्दलीय प्रत्याशी विधायक बने हैं। यहां से पांच बार कांग्रेस के विधायक बने हैं। वर्तमान में भी सुभाष गांगोली कांग्रेस के विधायक हैं। इस बार सफीदों का राजनीतिक युद्ध काफी कुछ मोड़ लेगा। यहां से भाजपा ने रामकुमार गौतम को मैदान में उतार दिया है। पहले निर्दलीय चुने जा चुके बच्चन सिंह आर्य तथा जसबीर देशवाल ने भी निर्दलीय चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया है। उम्मीद है कि कांग्रेस भी अपने वर्तमान विधायक सुभाष गांगोली को ही यहां से मैदान में उतारेगी। अभी यहां से जजपा का टिकट फाइनल नही हुआ है। ऐसे में सफीदों में इस बार कड़ा मुकाबला होगा। 2019 में कांग्रेस के सुभाष गांगोली ने भाजपा के बच्चन सिंह आर्य को 3658 वोटों से मात दी थी।
बाहरी व्यक्ति का नहीं अपनाया सफीदों ने, कांग्रेस के लिए दोबारा सीट जीतना चुनौती से कम नहीं
सफीदों की जनता कभी भी बाहरी व्यक्ति पर भरोसा नहीं करती है। रामकुमार गौतम ने 1991 में भी जनकल्याण मोर्चा की तरफ से सफीदों विधानसभा क्षेत्र में चुनाव लड़ा था। उस समय भी बाहरी का नारा लगा और उनको केवल 1570 वोट मिले थे। 2005 में कांग्रेस की लहर के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी कर्मवीर सैनी चुनाव हार गए थे। उनको 26077 वोट मिले थे। उनके खिलाफ भी बाहरी का नारा लगा था। कांग्रेस की बजाय 2005 में निर्दलीय बच्चन सिंह आर्य जीते थे।
सर्पदेवी या सर्पिदधि कहा जाता था सफीदों को
सफीदों क्षेत्र का उल्लेख महाभारत में मिलता है और इसे तब सर्पदेवी या सर्पिदधि कहा जाता था। पौराणिक कथा है कि ताक्सिलेस के नागाओं के साथ युद्ध के दौरान राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई थी और जन्मेजय ने नागाओं को हरा कर अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया था। जन्मेजय ने जिस स्थान पर सांप का बलिदान दिया था, उसे सर्पदेवी कहा गया। जिसे आज हम सफीदों के नाम से जानते हैं।
भौगोलिक स्थिति
सफीदों को धान के कटोरे के रुप में जाना जाता है। यहां गैर जाट का बाहुल्य है लेकिन जाटों की संख्या भी कम नहीं है। इस विधानसभा सीट से सभी जातियों के विधायक बनते रहे हैं। सफीदों का नाम हैचरी के व्यवसाय में पूरे एशिया में जाना जाता है। यहां पर एक लाख 94 हजार 500 मतदाता हैं। इनमें एक लाख चार हजार के आसपास पुरुष तथा 95 हजार के आसपास महिला मतदाता हैं। यहां गैर जाट मतदाताओं की संख्या 65 प्रतिशत है। यहां मुकाबला निर्दलीय तथा कांग्रेस के बीच होने की संभावना है। क्योंकि भाजपा के रामकुमार गौतम के लिए अभी से बाहरी का नारा लग चुका है।
अब तक सफीदों से बने विधायक
1967 श्रीकृष्ण
1968 सत्यनारायण
1972 धज्जाराम
1977 रामकिशन
1982 कुंदनलाल
1987 सरदूल सिंह
1991 बच्चन सिंह आर्य
1996 रामफल कुंडू
2000 रामफल कुंडू
2005 बच्चन सिंह आर्य
2009 कलीराम पटवारी
2014 जसबीर देशवाल
2019 सुभाष गांगोली
विधायक का बही.खाता
पहली बार 2019 में सुभाष गांगोली कांग्रेस के टिकट पर यहां से विधायक बने थे। वह विपक्ष में रहे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने विकास कार्य भी करवाए। डी प्लान के तहत चार करोड़ रुपये से ज्यादा के कार्य करवाए गए। विधायक सुभाष गांगोली ने कहा कि उन्होंने अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से निभाई। विधानसभा की कार्रवाई में शत.प्रतिशत हिस्सा लेकर सफीदों विधानसभा क्षेत्र के लोगों की आवाज उठाई। सरकार ने सफीदों में बनने वाले पैरामेडिकल कॉलेज को भी सफीदों से छीन लिया। इसके लिए काफी पैरवी की, धरना भी दिया लेकिन सरकार ने कोई मांग पूरी नहीं की। बार-बार सफीदों की आवाज उठाकर विकास कार्यों के लिए सरकार से ग्रांट ली। रोजगार की समस्या को दूर करने के लिए सफीदों टाउनशिप बनवाने की कोशिश कीए लेकिन सरकार की उपेक्षा के कारण यह कार्य नहीं हो पाया।
यह कार्य हुए पूरे
15-16 नई सड़कों का निर्माण करवाया। सात गांवों के खेतों के रास्ते पक्के करवाए गए। 15 गांवों में चौपालों की मुरम्मत करवाई। 12 गांवों की फिरनी पक्की करवाई गई। सफीदों शहर की सड़कों का जीर्णोद्धार करवाया गया।
यह कार्य नहीं हुए पूरे
जींद-पानीपत को फोरलेन करवाना, पिल्लूखेड़ा में कन्या कॉलेज का निर्माण करवाना, सफीदों में पैरामेडिकल कॉलेज का निर्माण, सफीदों में नर्सिंग कॉलेज के भवन का निर्माण, सफीदों के नागरिक अस्पताल के अलावा अन्य सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी को पूरा करवाना है।
पूर्व मंत्री बचन सिंह आर्य ने कहा कि सफीदों में कहीं कोई कार्य दिखाई नहीं दिया। जिस प्रकार एक सरपंच गली, फिरनी बनवाता है, विधायक यहीं तक सीमित रहे। बेरोजगारी दूर करने के लिए कुछ नहीं किया। लोगों को मिलने के लिए भी विधायक के पास समय नहीं था। विधायक का कार्य अच्छा नहीं रहा। वह जनता के किए वायदों को पूरा नहीं कर पाए।