Jind News : नवग्रहों के अधिपति भगवान सूर्य की उपासना का महापर्व है छठ पूजा : आचार्य पवन शर्मा

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Chhath Puja is a great festival of worshiping Lord Surya, the lord of the nine planets: Acharya Pawan Sharma
सूर्य को अघ्र्य देते हुए महिलाएं।
  • महिलाओं ने संतान की दीर्घायु व उन्नति की करी कामना

(Jind News) जींद। आचार्य पवन शर्मा ने कहा कि सृष्टि के नियामक हैं भगवान सूर्य। पृथ्वी के प्रत्यक्ष देव हैं भगवान सूर्य। जिनकी ऊर्जा से जीवन चक्र चलता है, जिनकी किरणों से धरती में प्राणों का संचार होता है, जिनकी कृपा से पृथ्वी पर फल-फूल, धान्य व वनस्पतियां उत्पन्न होती हैं। यही वर्षा का आकर्षण करते हैं, यही ऋतु चक्र को चलाते है। भगवान सूर्य की इस अपार कृपा के लिए जनमानस के द्वारा उनके प्रति कृतज्ञता व समर्पण को दर्शाता है सूर्य षष्ठी अर्थात छठ पूजा का महापर्व।

आचार्य पवन शर्मा गुरूवार को माता वैष्णवी धाम में छठ पूजा के उपलक्ष में उपस्थित श्रद्धालओं को संबोधित कर रहे। सजी-संवरी महिलाओं ने इस अवसर पर सांयकाल को अस्तांचल की ओर प्रस्थान करते हुए सूर्य को अघ्र्य अर्पित कर उनसे अपनी संतान की दीर्घायु व उन्नति की कामना की। आचार्य ने कहा कि यह पर्व मूलत: प्रकृति आराधना का पर्व है। शुचिता और पवित्रता का पर्व है। त्याग, तितिक्षा और तपस्या का पर्व है। पांच नवंबर से आरंभ हुआ 36 घंटे की कठिन साधना का यह पर्व आठ नवंबर के सूर्योदय तक चलेगा।

सर्वप्रथम देव माता अदिति ने छठ पूजा की

इस पर्व में भगवान सूर्य के साथ-साथ छठ मैया अर्थात मां कात्यायनी की भी पूजा की जाती है। ये वही मां कात्यायनी हैं जिनकी षिषु के जन्म लेने के छठे दिन माता-पिता बच्चे के स्वास्थय व दीर्घायु की कामना से छठी मैया के रूप में हर-घर में पूजा करते है। सर्वप्रथम देव माता अदिति ने छठ पूजा की थी। तब प्रसन्न होकर छठ मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया था। भगवान श्री राम बनवास के बाद जब अयोध्या लौटे तब राज्याभिषेक के पश्चात माता सीता सहित इसी सूर्य षष्ठी का व्रत किया था तब से यह पर्व जन-जन में मान्य हो गया है। महाभारत काल में माता कुंती ने सूर्य षष्ठी व छठ मैया की पूजा के द्वारा अत्यंत तेजस्वी पुत्र कर्ण की प्राप्ति की थी।

सूर्यपुत्र कर्ण तो भगवान सूर्य के परम भक्त थे, जो प्रतिदिन घंटों तक कटि पर्यंत पानी में खड़े रहकर सूर्यदेव की आराधना किया करते थे। सूर्य नारायण की कृपा से ही वे विश्व के महान योद्धा बने। च्यवन मुनि ने इस व्रत के प्रभाव से खोई हुई नेत्र ज्योति को पाया और वृद्धावस्था से युवावस्था को प्राप्त हुए। सूर्य सभी ग्रहों के अधिपति हैं। यदि समस्त ग्रहों को प्रसन्न करने की अपेक्षा केवल सूर्य नारायण की ही आराधना की जाए तो सब कार्य स्वत: ही सिद्ध होते चले जाते हैं। सूर्य उपासना का यह महापर्व सभी कर्मकाण्डों की जटिलता से ऊपर सामाजिक समता का सर्वोच्च महोत्सव है।

 

 

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