- रानी लक्ष्मी बाई का अदम्य साहस प्रेरणास्त्रोत : सत्येंद्र त्रिपाठी
(Jind News) जींद। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा सुप्रीम वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की 189वीं जयंती पर विचार संगोष्ठी की गई। जिसमें मुख्यअतिथि प्रधानाचार्य सत्येंद्र त्रिपाठी रहे। प्रधानाचार्य सत्येंद्र त्रिपाठी ने कहा कि भारत में 1857 के संग्राम को देश की आजादी की पहली लड़ाई माने जाता है। इसे पहले स्वतंत्रता आंदोलन ने भारत को कई देशभक्ति वीर दिए, जिसने देश में अंग्रेजों के खिलाफ एक जनमानस तैयार किया। जिसने भविष्य में स्वाधीनता की लड़ाई के बीज का काम किया। इन्ही वीर योद्धाओं में से एक थी झांसी की रानी लक्ष्मी बाई। उस दौर में जब भारत में महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां थी।
एक रानी ने सबसे वीर योद्धा बन कर पूरी दुनिया को चौंका कर रख दिया था लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि रानी की वीरता ही नहीं उनका सौंदर्य भी चौंकाने वाली थी। वशिष्ठ अतिथि प्रदेश सह मंत्री एबीवीपी रमन शर्मा ने कहा की रानी लक्ष्मीबाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी नायिका रही हैं, जिनके पराक्रम और साहस का जिक्र आज भी समय-समय पर किया जाता है। रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजी हुकूमत के आगे कभी झुकना स्वीकार नही किया और आखिरी दम तक झांसी की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लड़ती रही।
जो आज भी दुनिया को महिला सशक्तिकरण की राह दिखाती है। वो क्रांतिकारी महिलाएं जो झांसी की रानी के नाम से आज भी भारत की बहादुर महिलाओं में जिंदा हैं। एबीवीपी के जिला संयोजक परमिंदर सैनी ने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही युद्ध कौशल और कलाओं में रुचि थी। उन्होंने घुड़सवारी तलवारबाजी जैसी कलाएं सीख। रानी लक्ष्मीबाई ने 61 अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा। यह संघर्ष छह जून से आठ जून 1857 तक चला।
जिसमें कैप्टन डनलप, लेफ्टिनेंट टेलर और कैप्टन गॉर्डन मारे गए। कैप्टन ने बचे हुए अंग्रेज सैनिकों सहित बागियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। इस मौके पर अभाविप विभाग संयोजक रोहन सैनी, नगर कार्यालय मंत्री प्रतीक शर्मा, शोभा जांगड़ा सहित स्कूल प्रबंधन मौजूद रहा।
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