Jharkhand and Maharashtra Elections : मुफ्त की रेवड़ियों की भी कड़ी परीक्षा

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Jharkhand and Maharashtra Elections : मुफ्त की रेवड़ियों की भी कड़ी परीक्षा
Jharkhand and Maharashtra Elections : मुफ्त की रेवड़ियों की भी कड़ी परीक्षा

Jharkhand and Maharashtra Elections | अजीत मेंदोला । नई दिल्ली। झारखंड और महाराष्ट्र को जीतने के लिए सभी प्रमुख दलों ने मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन वाली कहावत का अनुसरण किया हुआ है। देखना होगा कि जनता इस बार किसी की रेवड़ियों पर मोहर लगाती हैं।

क्योंकि दोनों राज्यों में जिसकी भी सरकार बनेगी उसके सामने गारंटियों को पूरा करना बड़ी चुनौती होगी। चुनाव के समय वोटर को रिझाने के लिए घोषणा करने में कोई हर्ज भी नहीं है। क्योंकि किसी को अपनी जेब से कुछ देना नहीं है। वो तो सालों बाद जो भुगतेगा सो भुगतेगा।

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुफ्त की रेवड़ी के खिलाफ बोलते रहे हैं, लेकिन चुनाव जीतने के लिए प्रतिस्पर्धा इतनी हो गई है कि कोई खजाने में बढ़ते बोझ की चिंता ही नहीं कर रहा है। खैर बुधवार को झारखंड की 43 सीटों समेत कुछ राज्यों में हुए उप चुनाव के लिए वोट डाले गए।

20 नवंबर को महाराष्ट्र और झारखंड की बची हुई सीटों पर वोट डाल दिए जाएंगे। इसके बाद 23 नवंबर को परिणाम आएंगे। दोनों राज्यों के चुनाव जीतने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने सहयोगियों दलों के साथ पूरी ताकत लगाई हुई है। इस बार दिलचस्प यह है कि बीजेपी ने भी महाराष्ट्र में किसानों के कर्जा माफी का वायदा कर दिया है।

चुनावों में घोषणाओं का रिवाज पुराना

इससे चुनाव दिलचस्प हो गया है। दअरसल चुनावों में घोषणाओं का रिवाज तो रहा है, लेकिन बाद में उन्हें अमल करने के दौरान ज्यादा महत्व मिलता नहीं था। लेकिन यूपीए के समय कर्जा माफी की खिलाफत करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में किसानों का जहां करोड़ों का कर्जा माफ किया वहीं मनरेगा जैसी योजना ला सरकारी खजाने पर भार बढ़ाने की जो प्रक्रिया शुरू की वह आज तक जारी है।

लेकिन कांग्रेस लंबे समय तक इसका लाभ नहीं ले पाई। दूसरी पारी में सरकार तो बन गई लेकिन भ्रष्टाचार उसे ले डूबा। बीजेपी ने सत्ता में आने के लिए 2014 के लोकसभा में तमाम ऐसी घोषणाएं की कि जनता ने भारी मतों से जिता दिया। बीजेपी के साथ अच्छी बात यह रही कि उसे अपने दम पर बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी जैसा नेतृत्व।

मोदी ने घोषणाओं से ज्यादा देश के लिए ऐसे फैसले किए कि आम जन उनके फैसलों से प्रभावित होता रहा। मोदी की अगुवाई ने बीजेपी ने तीसरी बार सरकार बना नया रिकॉर्ड बनाया। लेकिन वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस मुफ्त की योजनाओं और घोषणाओं पर केंद्रित हो गई। उसे 2018 के विधानसभा के चुनाव में किसानों की कर्ज माफी की घोषणा का लाभ मिला, लेकिन पार्टी संगठनात्मक रूप से कमजोर होने के चलते बहुत लाभ उठा नहीं पाई।

2018 में राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने के बाद अशोक गहलोत ने जनता को लुभाने के लिए कई ऐसे फैसले किए कि जिनकी चर्चा देशभर में होने लगी। पुरानी पेंशन योजना बहाली, 25 लाख तक फ्री इलाज, 500 का गैस सिलेंडर, 8 रुपए भर पेट खाना, पेंशन तमाम ऐसे फैसले थे जिसका कांग्रेस को तेलंगाना, कर्नाटक और हिमाचल जैसे राज्यों में तो लाभ मिला लेकिन राजस्थान में कांग्रेस हार गई।

कांग्रेस कमजोर केंद्रीय नेतृत्व और आपसी लड़ाई के चलते राजस्थान में हारी

कांग्रेस के कमजोर केंद्रीय नेतृत्व और आपसी लड़ाई के चलते कांग्रेस राजस्थान में हारी। राजस्थान की हार से सबक लिया होता तो कांग्रेस हरियाणा नहीं हारती। इसके बाद लोकसभा में मुफ्त की कई घोषणाओं के साथ जातपात की राजनीति को कांग्रेस ने आगे बढ़ाया लेकिन सत्ता नहीं मिली, लेकिन संघर्ष करने लायक सीट मिल गई।

कांग्रेस ने हरियाणा में फिर वही फार्मूला अपनाया लेकिन बीजेपी की सूझबूझ की राजनीति भारी पड़ गई। एक बार फिर महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस और बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ आमने सामने है। कांग्रेस के सामने झारखंड में सहयोगी की सरकार वापसी कराने की चुनौती है तो महाराष्ट्र में सरकार बनाने की।

बीजेपी कांग्रेस से हर मामले में मजबूत दिखती है। मजबूत केंद्रीय नेतृत्व,केंद्र में सरकार जिसका लाभ बीजेपी को मिलेगा। संघ जैसे संगठन का साथ। अब सवाल यही है कि महाराष्ट्र जहां पर बीजेपी को सहयोगी की सरकार रिपिट करानी है के लिए मुफ्त की रेवड़ियां कितनी असर डालती है।

बीजेपी ने तो इस बार किसानों का कर्जा माफी की बात कह दी है। कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने भी मुफ्त की रेवड़ियां की तमाम घोषणाएं की हैं। कर्जा माफी से लेकर पैसा बांटना सब झोंक दिया है। इसी तरह झारखंड में भी मुफ्त की रेवड़ियां का भी मुकाबला है।

लिस्ट देखें लाडली बहिन योजना, मुफ्त बिजली, महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा, मुफ्त गैस सिलेंडर, बेरोजगारी भत्ता तमाम ऐसी घोषणाएं हैं जिनका खामियाजा कांग्रेस शासित कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल भुगत रहे है। कांग्रेस ने हरियाणा में हारने के बाद पुरानी पेंशन योजना बहाली और 25 लाख तक मुफ्त इलाज का वायदा ठंडे बस्ते में डाल दिया। देखना होगा कि 23 नवंबर को मुफ्त का चंदन किसे फायदा पहुंचाता है।

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