Jamiat Ulama-E-Hind Reached Supreme Court
आज समाज डिजिटल, नई दिल्लीः
Jamiat Ulama-E-Hind Reached Supreme Court: देश के कई राज्यों में हो रही हिंसा पर जमीअत उलमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama-E-Hind) ने चिंता व्यक्त की है। कई राज्यों में बुलडोजर से घरों को गिराए जाने के खिलाफ जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया है। जमीयत ने आरोप लगाए हुए कहा है कि “भाजपा शासन वाले राज्यों में अपराध की रोकथाम की आड़ में अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों को तबाह करने के उद्देश्य से बुलडोजर से बेघर किया जा रहा है।”
इस पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है जिसमें जमीअत उलमा-ए-हिन्द कानूनी इमदादी कमेटी के सचिव गुलजार अहमद आजमी वादी बने हैं। याचिका में अनुरोध किया गया है कि “वह राज्यों को आदेश दे कि अदालत की अनुमति के बिना किसी का घर या दुकान को गिराया नहीं जाएगा।”
भारत में कानून का राज समाप्त हो गया
याचिका में उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात में हाल के दिनों में मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार किया गया। याचिका ऐडवोकेट सारिम नवेद ने सीनीयर ऐडवोकेट कपिल सिब्बल से सलाह-मशविरा करने के बाद तैयार की है। ऐडवोकेट आन रिकार्ड कबीर दीक्षित ने इसे ऑनलाइन दाखिल किया।
मुसलमानों के मकानों और दुकानों के तोड़े जाने पर मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि “जो काम अदालतों का था अब सरकारें कर रही हैं। ऐसा लगता है कि भारत में अब कानून का राज समाप्त हो गया है। सजा देने के सभी अधिकार सरकारों ने अपने हाथों में ले लिए हैं, उस के मुंह से निकलने वाला शब्द ही कानून है और घरों को गिरा कर मौके पर ही फैसला करना संविधान की नई परंपरा बन गई है। ऐसा लगता है अब न देश में अदालतों की जरूरत है और न ही जजों की।”
उन्होंने आगे कहा कि “देश के मजलूमों को न्याय दिलाने, देश के संविधान और लोकतंत्र को बचाने और कानून का शासन बनाए रखने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, इस उम्मीद के साथ कि अन्य मामलों की तरह इस मामले में भी न्याय मिलेगा। जब सरकार संवैधानिक कर्तव्य निभाने में असफल हो जाए और मजलूमों की आवाज सुनकर भी खामोश रहे तो अदालतें ही न्याय के लिए एकमात्र सहारा रह जाती हैं।”
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