Tributes To Jallianwala Bagh Martyrs, (आज समाज), नई दिल्ली: जलियांवाला बाग हत्याकांड की आज 105वीं वर्षगांठ है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अन्य नेताओं ने हत्याकांड के पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में प्रधानमंत्री ने लिखा, हम जलियांवाला बाग के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। उन्होंने आने वाली पीढ़ियां हमेशा उनके अदम्य साहस को याद रखेंगी। यह वास्तव में हमारे देश के इतिहास का एक काला अध्याय था। उनका बलिदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक बड़ा मोड़ बन गया।
हत्याकांड स्वतंत्रता संग्राम का काला अध्याय : अमित शाह
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान 13 अप्रैल, 1919 को हुए क्रूर हत्याकांड के पीड़ितों और उसके प्रभावों को कई अन्य नेताओं ने भी याद किया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने कहा, जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक काला अध्याय है, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। अमानवीयता की पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी ब्रिटिश हुकूमत की क्रूरता के कारण देशवासियों में जो आक्रोश पैदा हुआ, उसने स्वतंत्रता आंदोलन को जन-जन के संघर्ष में बदल दिया।
शहीदों का बलिदान कभी नहीं भुलाया सकता : जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी एक्स पर अपनी श्रद्धांजलि पोस्ट की, उन्होंने लिखा, ‘जलियांवाला बाग हत्याकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि। हमारी स्वतंत्रता के लिए उनका दृढ़ संकल्प, साहस और बलिदान कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।’ 13 अप्रैल, 1919 को हुआ जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के औपनिवेशिक इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक है।
भारत सदैव शहीदों का ऋणी रहेगा : धर्मेंद प्रधान
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, जलियांवाला बाग हत्याकांड के निर्दोष शहीदों को श्रद्धांजलि। भारत सदैव उनका ऋणी रहेगा। 1919 में उस दिन औपनिवेशिक बर्बरता ने राष्ट्रीय चेतना की एक नई लहर को जन्म दिया, जो अधिक उग्र, निडर और स्वतंत्रता के लिए दृढ़ थी। उन्होंने कहा, बहादुर पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का बलिदान हमें अपनी संप्रभुता, समावेशिता और स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए प्रेरित करता है।
पंजाब : अमृतसर में आज के दिन हुआ था हत्याकांड
जलियांवाला बाग हत्याकांड पंजाब के अमृतसर में हुआ था। बता दें कि बैसाखी के त्यौहार के दौरान हजारों लोग जलियांवाला बाग में एकत्र हुए थे। यह सभा रौलट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने और नेताओं डॉ. सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू की रिहाई की मांग करने के लिए भी आयोजित की गई थी।
ब्रिटिश अधिकारी ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने बिना कोई चेतावनी दिए अपने सैनिकों को निहत्थे भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया। संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, 1650 राउंड फायर किए गए। गोला-बारूद खत्म होने के बाद ही गोलीबारी बंद हुई। जबकि आधिकारिक ब्रिटिश रिकॉर्ड में मरने वालों की संख्या 291 बताई गई थी, मदन मोहन मालवीय जैसे भारतीय नेताओं ने 500 से ज्यादा लोगों के मारे जाने का अनुमान लगाया था।
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