Tax will be imposed on worship in Kashi Ghats, pilgrims protest: काशी के घाटों में पूजा पर लगेगा कर, तीर्थ पुरोहितों ने किया विरोध, बोले,यह जजिया कर

0
423

काशी के तमाम पहचानों में एक पहचान का यहां के घाट भी है इन घाट से मां गंगा का दर्शन करना और साथ ही साथ गंगा की लहरों की अठखेलियां का लुफ्त उठाना हर किसी को भाता है । कहते है अड़भंगी शिव की नगरी पृथ्वी से अलग बसी हुई है और यही वजह है कि धार्मिक दृष्टि से काशी को विशेष स्थान प्राप्त है काशी के घाटों पर धार्मिक आयोजनों को कराना अति फलदाई भी माना जाता है । यहां लोग न केवल धार्मिक गतिविधियों का संचालन करते हैं बल्कि अपने इस धार्मिक कृत्यों से अपने और अपने परिजनों के सलामती की प्रार्थना भी। करने के लिए अब नगर निगम से केवल अनुमति लेना होगा बल्कि उसके लिए शुल्क भी देने होंगे ।

ये हैं नगर निगम का नोटिफिकेशन

नगर निगम ने  घाट पर बैठे तीर्थ पुरोहित, चौकी लगाए हुए ब्राह्मण यही नहीं घाटों पर आयोजन करना अब थोड़ा मुश्किल होगा ऐसा इसलिए क्योंकि नगर निगम के22 जुलाई के एक नोटिफिकेशन के बाद काशी के गंगा घाट के तीर्थ पुरोहित, चौकी लगाने वाले ब्राह्मण घाट पर धार्मिक सांस्कृतिक या फिर सामाजिक करने वाले आयोजक नगर निगम को शुल्क देने के बाद ही अपने आयोजन को करा सकते हैं ।

ये शुल्क हैं देय

नगर निगम ने घाट पर धार्मिक आयोजन सम्पन्न कराने वाले ब्राह्मण और चौकी लगाने वालों के रजिस्ट्रेशन पर ₹100 प्रति वर्ष का शुल्क निर्धारित किया है तो वही  दूसरी तरफ घाट पर किसी संस्था या व्यक्ति द्वारा कराये जाने वाला सांस्कृतिक आयोजन के लिए ₹4000 धार्मिक कार्य के लिए ₹ 500  और सामाजिक कार्य यदि  हो तो ₹200 प्रतिदिन शुल्क होगा ।15 दिन से 1 साल या अधिक होने वाले आयोजक चाहे वह सामाजिक या फिर संस्कृति हो , को ₹5000 वार्षिक देने होंगे।

विरोध भी हुआ शरू

नगर निगम के नोटिफिकेशन आने के साथ इस आदेश का विरोध भी शुरू हो गया है स्वाभाविक सी बातें हैं जिस काशी की पहचान अपने धार्मिक अनुष्ठान के लिए हो वहां ये बातें निश्चित तौर पर किसी को भी स्वीकार नहीं होगा बनारस के घाट से जुड़े तमाम तीर्थ पुरोहित ,ब्राह्मण और निरन्तर आयोजन करने वाले आयोजकों ने अपना विरोध दर्ज कराते हुए इसे जजिया कर बताया। इन आयोजकों की माने तो  उनका साफ कहना है कि ये टैक्स धार्मिक भावनाओं का अनादर करना है जिसे बिना सोचे समझे लागू किया गया है ।

नगर निगम के इस नए नियम का विरोध भी शुरू हो गया है। कांग्रेस पार्षद रमजान अली ने बताया कि उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम-1959 की धारा-540 के अंतर्गत राज्य सरकार को उपविधि बनाने का अधिकार है। लेकिन धारा-541 में 49 उपधाराएं मौजूद हैं। किसी भी उपधारा में घाटों से संबंधित उपविधि बनाने का वर्णन नहीं है। बल्कि कुल 49 उपधाराओं में घाट शब्द का भी उल्लेख नहीं है। ऐसी स्थिति में यह उपविधि नगर निगम अधिनियम-1959 के प्रावधानों का उल्लंघन है। कांग्रेस महानगर अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे ने कहा कि पुरोहितों से भी अब नगर निगम शुल्क लेने जा रहा हैजो निंदनीय है। हर जगह नगर निगम राजस्व बढ़ाने की तरकीबें निकलाता हैजबकि सुविधाओं के नाम पर आम लोगों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।  समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष विष्णु शर्मा ने कहा कि प्रदेश सरकार का यह फैसला गलत है। यह काला कानून है। घाट और घाटिया काशी की पहचान हैं। यहां सांस्कृतिक आयोजन करने पर भी शुल्क लगाना अनुचित है। समाजवादी पार्टी इसका विरोध करेगी। सपा प्रबुद्ध प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ. आनन्द प्रकाश तिवारी ने कहा कि यह सांस्कृतिक नगरी काशी के व्यवसायीकरण का प्रयास है।

इतिहास के पन्नो में भी विरोध है दर्ज

बात 1916 की है जब कृष्ण लाल नाम के एक पुरोहित ने अपना लाइसेंस न बनवाते हुए विरोध में अपनी गिरफ्तारी दी थी , दरअसल 1916 में भी बनारस के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट ने घाट पर बैठने वाले सभी तीर्थ पुरोहितों के लिए लाइसेंस और पंजीयन कराने आदेश जारी किया था उस समय भी इसका विरोध हुआ था मामला प्रयागराज स्थित उच्च न्यायालय तक पहुँचा जहां मुकदमे के दरमियान जिला मजिस्ट्रेट को ऐसा करने को उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर बताया था ।

निगम का पक्ष

नगर निगम के अनुसार यह व्यवस्था 22 जुलाई से लागू कर दी गई है इस मद से प्राप्त धनराशि का प्रयोग घाटों के  रखरखाव और साफ सफाई पर खर्च करने की बात भी कही गई है