ओम प्रकाश नापित:
जयपुर। राजस्थान में 30 साल से तबादला नीति का इंतजार कर रहे सरकारी कर्मचारियों को इस बार भजन लाल सरकार से नीति बनाए जाने की पूरी आशा थी। सरकार ने इस ओर इशारा भी किया था। भाजपा सरकार के कार्यकाल को एक साल पूरा होने को है, लेकिन कर्मचारियों की यह मांग अब भी पूरी होती नजर नहीं आ रही है। तबादला नीति लागू नहीं होने से विशेषकर शिक्षकों को बड़ा झटका लगा है, क्योंकि प्रदेश के तृतीय श्रेणी शिक्षक वर्षों से तबादलों की बाट जोह रहे हैं। तृतीय श्रेणी के शिक्षकों के तबादले आखिरी बार वसुंधरा राजे सरकार में हुए थे, उसके बाद से शिक्षक तबादलों का इंतजार कर रहे हैं।
विधानसभा चुनाव के बाद सत्तारूढ़ होने पर भाजपा सरकार ने 100 दिन की कार्ययोजना से इस मुद्दे को कर दिया गायब
तबादला नीति सियासत का भी बड़ा मुद्दा बना हुआ है। अशोक गहलोत शासन में 13 बार तबादला नीति को लेकर घोषणा हुई, लेकिन सार्वजनिक नहीं हो सकी। विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने इस मुद्दे पर सियासी मास्टर स्ट्रोक लगाते हुए सत्ता में आने पर 100 दिन में नीति जारी कराने की बात कही। सत्ता में आने के बाद सरकार ने 100 दिन की कार्ययोजना से इस मुद्दे पर चुपके से कैंची चला दी। नीति नहीं होने से शिक्षा, चिकित्सा, विद्युत, जलदाय व पंचायती राज सहित अन्य विभागों के कर्मचारी तबादलों का इंतजार कर रहे हैं। स्पष्ट नीति के अभाव में कभी भी तबादलों का दौर शुरू हो जाता है और कभी भी रोक लग जाती है। बता दें कि पंजाब, हरियाणा, केरल, दिल्ली सहित कई राज्यों में शिक्षा सहित अन्य विभागों के कर्मचारियों के तबादलों के लिए नीति बनी हुई है, लेकिन राजस्थान के कर्मचारियों को इसका 30 साल से इंतजार है। इस संबंध में राजस्थान प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक संघ के मुख्य महामंत्री महेंद्र पांडे का कहना है कि सरकार को तबादला नीति जारी करनी चाहिए। तबादला नीति नहीं होने से अधिकारी व कर्मचारियों को मजबूरी में जनप्रतिनिधियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। वहीं एक जानकारी के अनुसार राजस्थान सिविल सेवा अपील अधिकरण सहित अन्य न्यायालयों में हर साल औसतन 13 हजार मामले अधिकारी और कर्मचारियों के तबादले के पहुंचे रहे हैं।
यह कहना था भजन लाल सरकार का
विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने तबादला नीति को लेकर दावा किया था कि सत्ता में आने पर 100 दिन में नीति जारी की जाएगी। जून 2024 में भाजपा सरकार ने नीति लाने की घोषणा की। सरकार ने कहा था कि केंद्र सरकार की तर्ज पर तबादला नीति बनाई जाएगी। तबादलों को लेकर एक ऑनलाइन पोर्टल बनाया जाएगा, जिसमें किसी तय महीने में आवेदन हो सकेगा। कहा गया था कि प्रोबेशन काल में तबादला नहीं हो सकेगा और तबादले के लिए राजकीय सेवा के दौरान ग्रामीण क्षेत्र में सेवा का अनुभव भी जरूरी होगा।
सवाल को यूं टाल गए दिलावर
थर्ड ग्रेड शिक्षकों की तबादला नीति पर इस साल जुलाई में शिक्षा मंत्री मदन दिलावर गोलमोल बयान देते नजर आए थे। उन्होंने कहा था कि जो 100 फीसदी मूक बधिर और दिव्यांग हैं, वह जहां कहेंगे वहां ट्रांसफर कर देंगे। राजस्थान में हजारों की संख्या में शिक्षक डेपुटेशन पर लगाए गए हैं। जो बिना किसी काम के डेपुटेशन पर लगाए गए हैं, उनका डेपुटेशन निरस्त किया जाएगा। तृतीय श्रेणी शिक्षकों की तबादला नीति पर शिक्षा मंत्री दिलावर ने कुछ भी साफ-साफ नहीं बताया।
तबादलों में डिजायर को तवज्जो
हर सरकार आवश्यकता के हिसाब से कर्मचारियों के तबादले और पदस्थापन का दावा करती है, लेकिन हकीकत तो यह है कि अब भी प्रदेश में सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के तबादलों में विधायकों की डिजायर को पूरी तवज्जो मिलती है। इसे लेकर कई बार जनप्रतिनिधियों पर गंभीर आरोप भी लग चुके हैं। इसमें पैसे लेकर डिजायर करने तक के आरोप भी लगते रहे हैं। तबादलों में विधायकों की डिजायर को प्राथमिकता मिलने से अधिकारी-कर्मचारियों को जनप्रतिनिधियों के यहां चक्कर लगाने और जी-हजूरी करनी पड़ती है। क्षेत्रीय नेताओं की चापलूसी करनी पड़ती है।
गहलोत शासन में भी लटका रहा मामला
राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार के शासनकाल में 3 जनवरी 2020 को तबादला नीति का आदेश जारी हुआ था। इसके लिए बाकायदा सेवानिवृत्त आईएएस ओंकार सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी भी बनाई गई। इस कमेटी ने दिल्ली, पंजाब, आंध्र प्रदेश सहित अन्य राज्य की नीति का अध्ययन करने के बाद अगस्त 2020 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी, लेकिन गहलोत सरकार के पूरा कार्यकाल में तबादला नीति की घोषणा नहीं हो पाई।
कब-क्या हुआ तबादला नीति को लेकर
सबसे पहले वर्ष 1994 में पूर्व शिक्षा सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी। वर्ष 1997-98 में भी तबादला नीति लाने के लिए कोशिश तो हुई, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। वसुंधरा राजे के कार्यकाल में साल 2005 में शिक्षकों के तबादलों में राहत देने के लिए दिशा-निर्देश जारी हुए। इसके बाद फिर वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में 2015-18 के दौरान तत्कालीन मंत्री गुलाबचंद कटारिया की अध्यक्षता में इसे लेकर कमेटी बनी। फिर गहलोत सरकार में जनवरी 2020 में कमेटी बनी और कमेटी ने अगस्त में रिपोर्ट दी, पर कुछ हुआ नहीं। वर्ष 2024 में भजन लाल सरकार ने केंद्र की तर्ज पर नीति बनाने का दावा किया, लेकिन यह सिर्फ दावे तक ही सीमित रहा।
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