- साध्वियों के सानिध्य में अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की
- आयड़ जैन तीर्थ में चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृृंखला जारी
Aaj Samaj (आज समाज), Jain Shwetambar Mahasabha, उदयपुर, 25 सितम्बर:
श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में सोमवार को विविध आयोजन हुए।
महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। महासभा अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा की निश्रा में जगत्गुरु आचार्य हीर सूरिजी महाराज की 428वीं पुण्य तिथि मनाई गई। साध्वी प्रफुल्लप्रभा ने उनके जीवन चरित्र के बारे में बताया कि तपागच्छालंकार अकबर प्रतिबोधक गुरु हीरसूरि महाराज का जन्म विक्रम संवत 1583 मृगशीर्ष सुदी नवमी पालनपुर मँ हुआ। दीक्षा विक्रम संवत 1596 कार्तिक यदि दोज पारण तेरह वर्ष से कुछ न्यून उम्र में हुई।
आचार्य पद विक्रम संवत 1690 पोष सुद पंचमी सिरोही में तब उनकी उम्र सताईस वर्ष और दीक्षा पर्याय चौदह वर्ष की थी। जैन शासन के बेजोड़ शासन प्रभावक आचार्य हीर विजय सूरि महाराज का तपोबल जबरदस्त था। सूरिजी को जब कोई विशिष्ट कार्य करना होता तब आयंबिल तप अवश्य करते थे। पूज्यश्री ने सिर्फ अकबर बादशाह को ही प्रतिबोध किया हो वैसा नहीं पा कितने ही सुवाओं को भी प्रतिबोध किया था। जब अकबर की विनंती से दिल्ली पहुँचे थे तब प्रवेश के समय छ: लाख लोग लेने हेतु पहुँचे थे। गुरु के उपदेश से अकबर ने अपने राज्य में जयीयावेरा बंध करवाया। शत्रुंजय आदि तीर्थयात्रा को कर माफ करवाया।
समग्र हिन्द में गौ वध बंधी करवाई (पर्युषण पर्व में हिंसा बंध करवाई। अंत में प्रभावित हो अकबर के पास से छ: मास तक हिंसा बंध करवाई। ऐसे महान आचार्य महाराज के चरणों में वन्दना। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।
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