Jain Acharya Upendra Muni ji : काल सर्प दोष निवारण महामंत्र जाप महायज्ञ अनुष्ठान का आयोजन 6 अगस्त को नई मंडी में

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काल सर्प दोष निवारण महामंत्र जाप महायज्ञ अनुष्ठान
काल सर्प दोष निवारण महामंत्र जाप महायज्ञ अनुष्ठान
  • देश विदेश से तीस हजार से अधिक धर्मालु पहुंचेंगे

Aaj Samaj (आज समाज), Jain Acharya Upendra Muni ji , करनाल,22 जुलाई (प्रवीण वालिया):
जैन जगत के आधार स्तंभ मुनि शिरोमणि आरत्मलीन जैन मुनि प्रेम सुख महाराज की स्मृति में छह अगस्त को जैन आचार्य ऊपेंद्र मुनि जी के मार्गदर्शन में विशेष मंत्रों का पाठ किया जाएगा। इन मंत्रों ने काल सर्प दोष का निवारण किया जाएगा। यह कार्यक्रम करनाल की नई अनाज मंडी परिसर में सुबह दस बजे से दोपहर बारह बजे तक किया जाएगा।

इस कार्यक्रम में हरियाणा उत्तरप्रदेश दि ल्ली, हिमाचल प्रदेश जम्मू काश्मीर, उत्तराखंड दिल्ली, राजस्थान मध्यप्रदेश पंजाब सहित विभिन्न राज्यों से लगभग तीस हजार धर्मालु भाग लेंगे। जानकारी देते हुए जैन मुनि ऊपेंद्र मुनि ने बताया कि करनाल में इस तरह का महामंत्र जाप पहली बार आयोजित किया जा रहा ळैं। इसका उद्देश्य शांति के साथ वाधाओं व्याधियों से मुकित दिलवाना हैं।

जैन मुनियों पर हमले और हादसों के लिए समाज दोषी

एक सवाल के जबाब में उन्होंने बताया कि जैन मुनियों के साथ बढ़ रहे हादसों और जैन मुनियों पर हमलों के लिए कहीं न कहीं ासमाज की उदासीनता दोषी हैं। समाज के लोग मुनियों के साथ नहीं चलते हैं। मुनियों के साथ नहीं चलते हैं। उन्होंने कहा कि मुनियों को भी सावधानी बरतना चाहिए। उन्हें सडक़ की बजाए सडक़ के नीचे चलना चाहिए। इसके अलावा सरकार को भी जैन मुनियों की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए।

मोक्ष के द्वार खोलता है संथारा : ऊपेंद्र मुनि

उन्होंने एक सवाल के जबाब में कहा कि संथारा भगवान के द्वार खोलता है। हर कोई संथारा नहीं कर सकता है। संथारा के लिए 12 साल का तप जरूरी हैं। इसके बाद इसकी चरण बद्ध प्रक्रिया हैं। उन्होंने कहा कि आत्म हत्या से जीव को अशांति मिलती हैं। जब कि संथारा से शाुति मिलती हैं। आत्म हत्या व्यक्ति क्रोध में आकर करता हैं जब कि संथारा आत्म शांति और संसार से विरक्ति की पराकाष्ठा हैं। उन्होंने कहा कि संथारा के लिए किसी की अनुमति की जरूरत नहीं हैं। आज संथारा करना हर किसी के बस में नहीं है। आत्मा को परमात्मा में मिलाने का नाम संथारा है। इसके लिए गुर की अनुमति की जरूरत हैं। समाजत से अनुमति लेना पड़ती हैं। फिर 12 साल की कठोर साधना होती हैं। उसके बाद शरीर से आत्मा को निकालने की एक देवीय क्रिया होती हैं। संथारा से मोक्ष का द्वार खुलता हैं।

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