नई दिल्ली। सीएए और एनआरसी की राजनीतिक उठापटक जारी है। पक्ष और विपक्ष इस मुद्दे पर आमने-सामने हैं। इन मुद्दों पर विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा विरोध प्रदर्शन किए गए। इन सब के बीच अब फैज अहमद फैज की कविता ‘लाजिम है कि हम भी देखेंगे’ फंस गई है। इसे हिंदू विरोधी बताया जा रहा है। हालांकि भारत के मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने कहा है कि फैज अहमद को हिंदू विरोधी बताना बहुत ही बेतुका और हास्यास्पद है। साथ ही उन्होंने कहा कि फैज अमहद फैज ने अपनी आधी जिंदगी पाकिस्तान के बाहर बिताई। उन्हें वहां पाकिस्तान विरोधी बताया गया। जावेद अख्तर ने कहा कि उन्होंने ‘हम देंखेंगे’ नामक कविता पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जिया-उल-हक की सांप्रदायिक, प्रतिगामी और कट्टरपंथी सरकार के खिलाफ लिखी थी। गौरतलब है कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-कानपुर ने एक समिति गठित की है, जो यह तय करेगी कि फैज अहमद फैज की कविता ‘लाजिम है कि हम भी देखेंगे’ हिंदू विरोधी है या नहीं। फैकल्टी के सदस्यों ने कहा था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने यह ‘हिंदू विरोधी गीत’ गाया था।’ समिति इसकी भी जांच करेगा कि क्या छात्रों ने शहर में जुलूस के दिन निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया? क्या उन्होंने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट की? क्या फैज की कविता हिंदू विरोधी है? कविता इस प्रकार है, ‘लाजिम है कि हम भी देखेंगे, जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से। सब बुत उठाए जाएंगे, हम अहल-ए-वफा मरदूद-ए-हरम, मसनद पे बिठाए जाएंगे। सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे। बस नाम रहेगा अल्लाह का। हम देखेंगे।’