भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के मामले में आठ महीनों तक हुईं 28 सुनवाईयोंके बाद, 5 जनवरी 2021 को परियोजना के लिए मंजूरी दे दी। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस संबंध में सभी वैधानिक आवश्यकताओं को पूरा किया गया है और उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए ही अनुमोदन लिया गया है। इन मंजूरी के बावजूद भी, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के खिलाफ गलत और झूठी बयानबाजी का एक अत्यंत तीखा और विरोधी अभियान जारी रहा।
31 मई 2021 को, दिल्ली के माननीय उच्च न्यायालय ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के निर्माण को राष्ट्रीय महत्व की एक आवश्यक परियोजना के रूप में जारी रखते हुएएक याचिका को खारिज कर दिया जिसमें इसके निर्माण पर रोक लगाने की मांग की गई थी। अदालत ने याचिकाकतार्ओं पर एक लाख रुपये का जुमार्ना भी लगाया। अदालत ने कहा, ‘याचिकाकतार्ओं द्वारा यह याचिका किसी खास मकसद से दायर की गई है और यह वास्तविक जनहित याचिका नहीं है।’
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के काम को रोकने का यह नवीनतम प्रयास है। परियोजना के खिलाफ दी गई अन्य कानूनी/राजनीतिक चुनौतियां विपक्ष के द्वारा लगातार चलाए जा रहे भ्रामक अभियान का हिस्सा है, जिसके माध्यम से अत्यधिक राष्ट्रीय महत्व और गौरव के लिए हो रहे इस निर्माण कार्य में बाधा डालने की कोशिश की जा रही है। संपूर्ण सेंट्रल विस्टा परियोजना में सरकार के 51 मंत्रालयों/विभागों के लिए दस भवन, एक नया सम्मेलन केंद्र, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए आवास आदि शामिल हैं और इस परियोजना को पूरा होने में पांच वर्ष लगेंगे। नए संसद भवन और सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के पुनर्विकास की केवल दो परियोजनाओं की लागत क्रमश: 862 करोड़ और 477 करोड़ पर अब तक निर्णय लिया गया है।
इस मामले मेंपरियोजना के खिलाफ किए जा रहे झूठे दुष्प्रचार और द्वेषपूर्ण बयानबाजी में सबसे दुखद की बात यह थी कि इस पक्ष को पूरी तरह से भुला दिया गया कि एक जिम्मेदार लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार का ही यह कर्तव्य है कि वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के अनुरूप शासन प्रणाली प्रदान करे। नया संसद भवन भी अब ऐसा ही बनने जा रहा है। नीति संबंधी कमियों से ग्रस्त पिछली सरकार के द्वारा बंधन में रखे गए इस फैसले कोवर्तमान सरकार द्वारा कार्यान्वित कर दिया गया। मौजूदा संसद भवन के भीतर जगह की कमी 2026 के बाद और भी गंभीर हो जाएगी जब संसद की क्षमता को बढ़ाने पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया जाएगा। भारत की जनसंख्या में वृद्धि को प्रतिबिंबित करने के लिए संसद के दोनों सदनों की संख्या में वृद्धि होना तय है।
कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने एक नए संसद भवन की आवश्यकता के बारे में लिखने के साथ-साथ इस पर बयान भी दिए हैं। 2012 में माननीय स्पीकर के कार्यालय ने, वास्तव में, एक नए संसद भवन के निर्माण को मंजूरी देते हुए शहरी विकास मंत्रालय को लिखा था। आज जब यह परियोजना अचानक ही लागू की जा रही है तो लगता है कि इसी पार्टी के नेता सामूहिक रूप से भूलने की बीमारी से पीड़ित हैं।
इस सब में सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि इस पार्टी के नेताओं के पास अपने दादा और दादियों के बंगलों को आसानी से स्मारकों में परिवर्तित करने की अरुचिकर विरासत तो है, पर यहीं लोगअब जानबूझकर इस समूची सेंट्रल विस्टा परियोजना को ‘मोदी महल’ के रूप में दिखा रहे हैं, जिसकी कुल लागत को नए ‘मोदी’ आवास की लागत के तौर पर दशार्या जा रहा है।
भले ही सरकार जमीन की मालिक है, लेकिन वर्षों से यह अपने स्वयं के कार्यालयों के लिए ही इन जगहों के लिए किराया देने के तौर पर सालाना 1,000 करोड़ रुपये का भारी भरकम खर्च कर रही है। अब इसके संबंध में इनका दोहरा चरित्र झलकता हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकारने कोरोना की दूसरी लहर के अधिकतम मामलों के बीच ही लगभग 10 लाख वर्ग फुट के एक विधायक छात्रावास के लिए ?900 करोड़ का टेंडर जारी किया! कोई भी स्वाभिमानी सरकार 1947 के बाद जल्द से जल्द एक नए सेंट्रल विस्टा की जरूरतों को पूरा करने का समाधान खोजती, और जब इसे साढ़े सात दशक बाद निर्मित किया जा रहा है, तो परियोजना की आवश्यकता कोव्यर्थ बताते हुएइसकी आलोचना करना सिर्फ धोखेबाजी है!
कोविड-19 महामारी के बीच अर्थव्यवस्था को फिर से सशक्त बनाना एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता है। ये दो निर्माण परियोजनाएं कुशल, अर्धकुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करती हैं। लगभग 1,600 और 1,250 श्रमिकों को सीधे आजीविका प्रदान करती है। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक जिम्मेदार और सहानुभूतिपूर्ण सरकार के रूप मेंमहामारी के दौरान, सभी कोविडउपयुक्त प्रोटोकॉल का ध्यानपूर्वक और उचित निगरानी के साथ पालन किया जा रहा है। जबकि भारत महामारी से लड़ रहा है, हमारे समाज के सबसे कमजोर वर्गों की देखभाल करते हुए अर्थव्यवस्था को चलाए रखना भी आवश्यक है। यदि अपने श्रमिकों की रक्षा करते हुए लाभकारी रोजगार प्रदान करना संभव है, तो राष्ट्रीय महत्व और मूल्य की इस परियोजना पर कार्य रोकने का कोई कारण नहीं हैझ्रयह एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसे न्यायपालिका ने भी सही ठहराया है। वास्तव में अगर देखा जाए तो ‘राष्ट्रीय महत्व’ की यह परियोजना, सरकार के अपने सकारात्मक विचार का सार है कि- ये देश के भविष्य की परियोजनाएं हैं और इन्हें निचले स्तर की राजनीति से ऊपर होना चाहिए। जिस नए संसद भवन का निर्माण हो रहा है, उसे अगले कम से कम अगले ढाई सौ वर्षों तक के निर्माण के रूप में देखा जा रहा हैं।
अंत में, विरासत भवनों के विनाश पर विलाप करने वाले सभी आलोचकों में से एक और सभी को मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि एक भी विरासत भवन को ध्वस्त नहीं किया जाएगा। संकट और अनिश्चितता के समय में, एक राष्ट्र की आकांक्षा अपने राजनीतिक नेताओं और नागरिक समाज को नेतृत्व और शक्ति के रूप में देखने की होती है। हालाँकि, आज भारत में विपक्ष की गतिविधियां और प्राथमिकताएँ दुखद रूप से गलत प्रतीत होती हैं। अब समय आ गया है कि कांग्रेस और अन्य मोदी-विरोधी लोग अधिक रचनात्मक रूप से विचार करें।
हरदीप एस पुरी
केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री