15 दिसंबर 2020 को मेरा एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें मैंने ईंधन कि बढ़ती कीमतों के बारे में लिखा था। उसी लेख में मैंने शेक्सपियर के जूलियस सीजर में कैसियस और ब्रूटस के संवाद का एक अंश भी लिखा था, कि- खोट हमारे सितारों में नहीं है बल्कि हम ही गए बीते हैं।
सच है कि सब ठीक हो जाएगा का आशावाद सुधार के मौकों को खत्म कर देता है। उस लेख में मैंने बताया था कि कागजों पर, भारत में पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों से जुड़ी हैं। यानी अन्तराष्ट्रीय तेल की कीमतें घटने बढ़ने से भारत में तेल की खुदरा कीमतें घटती-बढ़ती हैं। असल में यह पेट्रोल, डीजल और एटीएफ के मूल्य डीकंट्रोल हो जाने कि वजह से होता है।
लेख में मैंने ये भी बताया था कि डीकंट्रोल कैसे काम करता है और यह भी कि भारत सरकार ने 2002 में एटीएफ की कीमतों को मुक्त किया, वर्ष 2010 में पेट्रोल और अक्टूबर 2014 में डीजल की कीमतों को मुक्त कर दिया था। इससे पहले, सरकार कीमत तय करने में हस्तक्षेप करती थी। घरेलू एलपीजी और केरोसिन जैसे ईंधन अभी भी मूल्य नियंत्रण में ही हैं।
जब मैं यह लेख लिख रहा था उस वक्त राष्ट्रीय राजधानी में पेट्रोल का दाम 90.58 रूपए प्रति लीटर था और आर्थिक राजधानी मुंबई में डीजल 88 रूपए प्रति लीटर के ऊपर बिक रहा था। शायद यही वजह थी कि एक बार इस विषय पर लिखने के बावजूद मैं दोबारा इसपर लिखने से अपने आपको नहीं रोक सका। सरकार इसके पीछे का कारण बता रही है कि अक्टूबर के बाद से वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें 50 प्रतिशत से अधिक बढ़कर 63.3 डॉलर प्रति बैरल हो गई है, जिससे तेल के खुदरा विक्रेताओं को कीमतें बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह कारण केवल आंशिक रूप से सच है।
भारतीय उपभोक्ता पहले से ही जनवरी से भी बहुत अधिक भुगतान कर रहे हैं जबकि इस वक्त कच्चे तेल कि कीमतें जनवरी से काफी कम हैं। दरअसल अप्रैल 2020 में दुनिया भर में महामारी फैलने के बाद कच्चे तेल की कीमतें गिर गईं और मांग कम हो गई। लेकिन जैसा कि अर्थव्यवस्थाओं ने यात्रा प्रतिबंधों को कम किया और अब वैश्विक मांग सुधरने के कारण कीमतें ठीक होने लगीं। ब्रेंट क्रूड, जो जून और अक्टूबर के बीच लगभग 40 डॉलर प्रति बैरल था और यह नवंबर में बढ़ना शुरू हुआ, और 60 डॉलर प्रति बैरल से आगे निकल गया। तेल की बढ़ती कीमतों का एक कारक नियंत्रित उत्पादन भी है। दरअसल सऊदी अरब ने फरवरी और मार्च के बीच स्वेच्छा से अपने दैनिक उत्पादन में प्रतिदिन 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती की है जो तेल कि कीमतें बढ़ने के पीछे का एक बड़ा कारक है।
दूसरी तरफ राजस्व बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने 2020 की शुरूआत में 19.98 रुपये प्रति लीटर से पेट्रोल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क 32.98 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर उत्पाद शुल्क 15.83 रुपये प्रति लीटर से बढ़ाकर 31.83 रुपये प्रति लीटर कर दिया है। वर्तमान में, पेट्रोल के आधार मूल्य पर राज्य और केंद्रीय करों का हिस्सा लगभग 180 प्रतिशत करों का है। वहीं सरकार ने अब एक्साइज कम करने कि संभावनाओं को भी खारिज कर दिया है। तुलना में यदि हम अन्य देशों को देखें तो पायेंगे कि खुदरा कीमतों के आधार पर ईंधन पर जर्मनी और इटली में कर लगभग 65 प्रतिशत, यूनाइटेड किंगडम में 62 प्रतिशत, जापान में 45 प्रतिशत और अमरीका में लगभग 20 प्रतिशत है। वैश्विक तेल की कीमतों में गिरावट के बावजूद उत्पाद शुल्क में तेजी से बढ़ोतरी कर सरकार ने आॅटो ईंधन की कीमत को नियंत्रित किया है। यानी जनता को डी-कंट्रोल का कोई लाभ नहीं हुआ।
सनद रहे कि भारत की क्रूड बास्केट की औसत कीमत बढ़कर अब 63 डॉलर प्रति बैरल के पार हो गई है। अन्य देशों के साथ तुलना करने पर हम पाएंगे कि – जबकि पेट्रोल की कीमत अन्य देशों में पूर्व-महामारी के स्तर से कम हैं वहीं भारत में उच्च राज्य और केंद्रीय करों के कारण कीमतें रिकॉर्ड उचाई पर हैं।
भारत में दिल्ली (जनवरी) में पेट्रोल की औसत कीमत में साल भर पहले की तुलना में 13.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी, जबकि ब्रेंट क्रूड की औसत कीमत भी इसी अवधि में लगभग 14 प्रतिशत गिरी थी। दूसरी ओर अमेरिका, चीन और ब्राजील के उपभोक्ताओं को जनवरी में 1 वर्ष पूर्व कि तुलना में 7.5 प्रतिशत, 5.5 प्रतिशत और 20.6 प्रतिशत तक कम भुगतान करना पड़ा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)
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