Israel-Iran War News: कभी ईरान ने ही इजराइल के गठन को दी थी मान्यता

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कभी ईरान ने ही इजराइल के गठन को दी थी मान्यता
Israel-Iran War News: कभी ईरान ने ही इजराइल के गठन को दी थी मान्यता

ईरान के लिए इराक से लड़ गया था इजरायल
Israel-Iran War News (आज समाज) नई दिल्ली: 25 दिन पहले अपने उपर हुए हमला का करारा जवाब देते हुए आज इजराइल ने ईरान के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। हमले इजराइली समयानुसार रात करीब 2 बजे इजराइल डिफेंस फोर्स ने हमले शुरू किए जो सुबह करीब 5 बजे तक जारी रहे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आईडीएफ ने महज तीन घंटे में ईरान की सैन्य फैक्टरी व अन्य सैन्य ठिकानों समेत 20 जगह हमले किए हैं। आज एक दूसरे की जान के प्यासे ईरान और इजराइल कभी दोस्त हुआ करते थे।

सबसे पहले ईरान ने ही इजराइल के गठन को दी थी मान्यता दी थी। वहीं अपनी दोस्ती को निभाते हुए इजरायल ईरान के लिए इराक से भी लड़ गया था। लेकिन समय बीतने पर यह दोस्ती दुश्मनी में तब्दील होती चली गई। आज यह दोनों देश एक दूसरे को खत्म करने पर तुले हुए है। इस लेख के जरिए हम जा आपकों इनकी दोस्ती और दुश्मनी कहानी बता रहे है।

इजराइल के साथ ईरान के संबंध काफी दोस्ताना थे

1948 में अब इजराइल अस्तिव में आया तो तुर्की के बाद ईरान उसे मान्यता देने वाला दूसरा मुस्लिम देश था। साल 1979 की इस्लामी क्रांति से पहले तक इजराइल के साथ ईरान के संबंध काफी दोस्ताना थे। इस्लामी क्रांति से पहले तक ईरान में पहलवी राजवंश का शासन था। उस वक्त ईरान मध्य-पूर्व में अमेरिका के बड़े सहयोगियों में से एक हुआ करता था।

खुमैनी ने बोए नफरत के बीज

इजराइल के फाउंडर और उसकी पहली सरकार के प्रमुख डेविड बेन गुरियन ने अपने अरब पड़ोसियों को साधने के लिए ईरान से दोस्ती कर ली थी, ताकि नए यहूदी देश को लेकर कोई कुछ बोल न सके। मगर, 1979 में कट्टर अयातुल्लाह खुमैनी की क्रांति ने शाह को उखाड़ फेंका और एक इस्लामी गणतंत्र लागू किया। खुमैनी ने खुद को ईरान का रक्षक करार दिया था। उन्होंने ईरान में अमेरिका और इजरायल के प्रति नफरत के बीज बोए।

ईराक के परमाणु ठिकानों को इजराइल ने किया तबाह

इजराइल और ईरान के बीच दोस्ती इतनी गहरी थी कि खुमैनी के आने के बाद भी इजराइल ने 1980 से 1988 तक ईरान-इराक युद्ध के दौरान ईरान को काफी मदद दी थी। 22 सितंबर 1980 को सद्दाम हुसैन की सेना ने अचानक ईरान पर हमला कर दिया था। युद्ध के दौरान ईरान को सैन्य साजोसामान मुहैया कराने वालों में सबसे आगे इजराइल ही था। इजराइल ने ईरान के युद्ध को प्रत्यक्ष समर्थन दिया था। इजराइल ने आॅपरेशन बेबीलोन के तहत इराक के ओसिरक परमाणु रिएक्टर पर बमबारी करके उसे नष्ट कर दिया। 1982 में इजरायल ने लेबनान पर आक्रमण कर फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को बाहर कर दिया था। दक्षिण लेबनान में सुरक्षा क्षेत्र के आगामी निर्माण से लेबनान में इजरायली सहयोगियों और नागरिक इजरायली आबादी को अस्थायी रूप से लाभ हुआ। नतीजा यह हुआ कि दक्षिण लेबनान के भीतर फिलीस्तीनी के बजाय घरेलू लेबनानी प्रतिरोध आंदोलन का उदय हुआ, जहां हिजबुल्लाह मजबूती के साथ उठ खड़ा हुआ।

परमाणु हथियारों को लेकर दोस्ती दुश्मनी में बदली

इजराइल में ईरान को लेकर दुश्मनी का भाव 1990 के दशक तक शुरू नहीं हुआ था, क्योंकि तब सद्दाम हुसैन के इराक को एक बड़ा खतरा माना जाता था। यह भी कहा जाता है कि इजराइल सरकार ईरान कॉन्ट्रा प्रोग्राम में मध्यस्थ थी। इस प्रोग्राम के तहत 1980 से 1988 के बीच इराक के खिलाफ युद्ध में ईरान को हथियार मुहैया कराए गए थे। दोनों देशों में संबंध तब और बिगड़ गए जब ये खुलासा हुआ कि ईरान परमाणु हथियार हासिल करने का काम शुरू कर चुका है। इजरायल किसी भी कीमत पर ये नहीं चाहता है कि मध्य पूर्व में किसी देश के पास परमाणु हथियार हो। तब से दोनों देशों के रिश्तों में और खटास आती गई, जो अब कट्टर दुश्मनी में बदल गई।

‘एक्सिस आॅफ रेजिस्टेंस’ नेटवर्क

ईरान ने जब क्षेत्र में अपना दबदबा बनाने की शुरूआत की तो उसे दूसरी बड़ी क्षेत्रीय शक्ति सऊदी अरब का भी सामना करना पड़ा। शिया बहुल ईरान को सुन्नी बहुल सऊदी अरब से लोहा लेने के लिए एक अलग स्ट्रैटेजी बनाई और इजरायल के खिलाफ दुश्मनी को और हवा दी। मकसद था कि अरब जगत में ईरान खुद को मुस्लिमों का रहनुमा बन सके। इसके बाद ईरान ने हमास, हिजबुल्लाह और हूती के रूप में ‘एक्सिस आॅफ रेजिÞस्टेंस’ नेटवर्क बनाया, जो लेबनान, सीरिया, इराक और यमन तक फैला हुआ है।

ईरान के लिए अमेरिका बड़ा तो इजरायल छोटा शैतान

ईरान की दुश्मनी की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि वह यह मानने लगा है कि इजराइल के वजूद में रहने का हक नहीं है। ईरान इजरायल को छोटा शैतान तो अमेरिका को बड़ा शैतान मानता है। मध्य-पूर्व में ईरान चाहता है कि अमेरिका और इजरायल इस क्षेत्र से गायब हो जाएं।

अयातुल्लाह ने तोड़ लिए इजरायल से सारे संबंध

अयातुल्लाह की सरकार ने इजराइल के साथ संबंध तोड़ लिए। उसने उसके नागरिकों के पासपोर्ट की वैधता को मान्यता देना बंद कर दिया और तेहरान में इजराइली दूतावास को जब्त कर फिलिस्तीन लिबरेशन आॅर्गनाइजेशन को सौंप दिया।

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